नहीं रहे सच्चिदाजी भारतीय समाजवादी विचार परम्परा के एक युग का अवसान हो गया

नहीं रहे सच्चिदाजी भारतीय समाजवादी विचार परम्परा के एक युग का अवसान हो गया

जे टी न्यूज

भारतीय समाजवादी विचार परम्परा के एक युग का अवसान हो गया। मुझ जैसे ना जाने कितने युवाओं का वैचारिक प्रशिक्षण सच्चिदानंद सिन्हा को पढ़कर और सुनकर हुआ था। हिंदी और अंग्रेज़ी में दर्जनों किताबें, सैकड़ों लेख — अधिकांश बिहार के एक गाँव में बैठकर लिखे गए। अर्थव्यवस्था से लेकर कला तक, गांधी से मार्क्स और नक्सलवाद तक — हमारे युग का कोई कोना सच्चिदाजी की कलम से ना छूटा। उम्मीद है अकादमिक जगत आने वाले समय में उनके आंतरिक उपनिवेशवाद के सिद्धांत, जाति व्यवस्था की नई व्याख्या, पूंजीवाद के पतझड़ के विश्लेषण और अन्य स्थापनाओं पर गौर करेगा।

किशन (पटनायक) जी, अशोक (सेकसरिया) जी और अब सच्चिदा जी के जाने के बाद मुझ जैसे ना जाने कितने लोगों के सर से वैचारिक छतरी उठ गई।

अलविदा सच्चिदाजी! मेरा सौभाग्य था कि आपका सानिध्य और आशीर्वाद मिला। सुखद संयोग था कि पिछले महीने मुजफ्फरपुर में आपसे मुलाक़ात हो पायी। आपकी नई नवेली दाढ़ी के पीछे चिर परिचित निश्छल मुस्कान और खिली हँसी संजो कर रखूँगा। अच्छा हुआ आपने मना करने पर भी आपके चरण छू सका।

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