राष्ट्रीय जनता दल को आंतरिक सफाई करने की आवश्यकता – राम सुदिष्ट यादव
राष्ट्रीय जनता दल को आंतरिक सफाई करने की आवश्यकता – राम सुदिष्ट यादव

जे टी न्यूज, मधुबनी: विधानसभा चुनाव में खुलकर पार्टी केलिए काम करने वाले नेता, कार्यकर्ता, समर्थित स्थानीय जनप्रतिनिधि को चिन्हित करने का काम करें। उसे पार्टी का रीढ़ समझें।
दुसरा पार्टी संगठन के पद पर रहते हुए जिम्मेदारी निभाने वालों की शिनाख्त करें ऐसे लोगों के कारण पार्टी का सही छवि जनता के बीच जायेगा।
तीसरा पार्टी संगठन के पदों पर रहते हुए चुनाव में उनके एक्टिविटी संदिग्ध है तो ऐसे लोगों को चिन्हित कर सूची पार्टी के पास रखनी चाहिए। ऐसे लोग कैंसर बीमारी की तरह होते हैं जिससे पार्टी को सबसे अधिक नुकसान होता है। ऐसे लोगों की एक अलग श्रेणी रखनी चाहिए।
सिर्फ जाति देखकर पार्टी संगठन में जगह देने की परिपाटी में सुधार की आवश्यकता है। संगठन में किसी को जिम्मेदारी देने से पहले काम करने की क्षमता, उत्साह, उसके जज्बा को प्राथमिकता दें।
संगठन के लोगों को पार्टी के विचारधारा के संबंध में बात रखने, विचार गोष्ठी चलाने, लोगों से सादगी भरे वातावरण में मिलने बात करने की प्रशिक्षण देकर वैचारिक समझ विकसित करें।
पार्टी की ओर से बातें अखबार, मीडिया में रखने के लिए जिला स्तर, प्रखंड स्तर, पंचायत स्तर पर संगठन की ओर से सुनिश्चित हो।
चुनावों में पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाने में पिछले चुनाव से लेकर अभी तक काम करने की क्रिया कलाप, उनकी पार्टी के प्रति आस्था, लोगों के बीच उनकी भूमिका को आधार बनाना चाहिए।
पार्टी की ओर से पार्टी की मेनीफेस्टो व पार्टी के विचारधारा के अनुसार वैचारिक समझ रखने वाले लोग जीत कर आवें इस पर जोर अधिक रहना चाहिए।
आज बिहार सहित देश में मुद्दे आधारित राजनीति को छोड़कर धार्मिक व जातिय राजनीति की ओर तेजी से बढ़ गई है। जिसके कारण देश में पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था समाप्त हो चुकी है। अब संवैधानिक व्यवस्था भी समाप्ति की ओर अग्रसर हो चुकी है। इसे अंतिम छन्न तक बचाने की कोशिश होनी चाहिए।
हम लोग समाजवादी विचारधारा से भटक गये है, सिर्फ एमएलए एमपी बनने बनाने को ही समाजवाद मान बैठे हैं। सैकुलरवादी वोट को वोट कटवा उम्मीदवार बनकर या बनाकर छिन्न-भिन्न करने को ही समाजवाद मान बैठे हैं, साम्प्रदायिक पार्टी के साथ समझौता कर सिर्फ एक नंबर कुर्सी हासिल करने को ही समाजवाद मान बैठे हैं। यह अवधारणा न समाजवादी चिंतक डॉ लोहिया जी का था, न जननायक कर्पूरी जी का था। वहीं कहने केलिए सभी समाजवादी नेता कहते हैं हमारा आदर्श डा लोहिया और कर्पूरी जी है। लेकिन व्यवहार में ऐसा मैच करते दिखाई नहीं देता है, इस अवधारणा को फ्रेस करना आवश्यक है।


