प्रवासी मजदूर हैं अपराधी नही _ डॉ मिथिलेश


बिहारी मजदूर दिल्ली-मुम्बई की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और दिल्ली-मुम्बई की उत्पादकता और जीडीपी बढ़ाने में इन मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।अप्रत्यक्ष रुप से प्रदेश सरकार उसका नियोजक भी है।लोकडॉन की अवधि में उन मजदूरों को दोनों समय सम्मानपूर्वक भोजन कराना प्रदेश व केन्द्र सरकार का दायित्व था, जिसमें प्रदेश व केन्द्र सरकार विफल साबित हुई हैं। इसलिए मजदूरों में घर लौटने के लिए बेचैनी बढ़ी। हजारों – लाखों मजदूर अपने आशियाने से पैदल निकलकर लोकडॉन में दिल्ली-मुम्बई की सड़कों और राज्यों की सीमा को पार किया।

क्योंकि प्रदेश व केन्द्र सरकार की चुप्पी इन मजदूरों को 1000 से 2000 किलोमीटर पैदल चलकर अपने प्रदेश,अपने गाँव व अपने घर चले जाने के लिए प्रेरित कर रही थी। दिल्ली- मुंबई दिन-व-दिन कामगारों /श्रमिकों से खाली होती जा रही है। लोग बाल-बच्चों समेत पैदल,साईकल,रिक्शा, ठेला,टेम्पू व ट्रकों में भेड़ बकरियों की तरह लदे अपने- अपने गांव लौटने की कवायद कर रहे हैं। किराए के नाम पर उनकी आखिरी पूंजी भी लूटी जा रही है।दिल्ली-मुंबई पहले उन्हें नरम फूलों की तरह भाती थी मगर अब वह बबूल के कांटों की तरह चुभ रही है।

प्रिन्ट, विजुअल व सोशल मीडिया पर आप बहुत सारे तस्वीर व वीडियोज देख रहे होंगे ।लोग किस तरह अंधेरे में झुंड के झुंड पैदल ही अपने गाँव की तरफ बढ़े जा रहे हैं।सिर और कंधों पर सामान लदे हैं। गर्भवती महिलाये एवं नन्हें-मुन्हे बच्चे भी सामान ढोते हुए चल रहे हैं।बड़े होकर ये बच्चे अपने इन कटु अनुभवों को किस तरह याद करेंगे? ऐसा लगता है जैसे 1947 में हुए बंटवारे के दृश्य सामने से गुजरते जा रहे हों।लोगों को लगता है कि अगर मरना ही है तो गाँव में जाकर क्यों न मरें?

कम – से – कम घर का किराया तो नहीं देना पड़ेगा?यहाँ तो सरकारी आदेश के बावजूद उनसे घर खाली कराया जा रहा है? इनकी गिनती तो शरणार्थियों की श्रेणी में भी नहीं होती। एक हुंकार के साथ स्वीकार कीजिए कि भूख सर्वशक्तिमान है। वो कोरोना को भी दुत्कार कर भगा सकती है । जब तक उन से काम लेना था ,खूब लिया गया। यथाशक्ति शोषित भी किया गया और महा संकट की इस बेला में उनको उनके हाल पर छोड़ दिया गया।इस कलंक से कई सरकारें अपने चेहरे धो नहीं पाएंगी।ताकीद रहे कि मानवता के साथ यह दुर्व्यवहार आने वाले समय में भारी कहर बरपा करेगा l

आने वाले दिनों में श्रमिकों का बहुत बड़ा टोटा होने वाला है। उत्पादक प्रतिष्ठानों से लेकर फिल्म इंडस्ट्री तक की कमर टूटने वाली है ।ये श्रमिक जल्दी दिल्ली-मुंबई वापस नहीं आएंगे ।जब भी आने की सोचेंगे ,उनका कटु अनुभव उनके पांवों को जकड़ लेगा। हां, दक्ष श्रमिकों के लौटने की संभावना बन सकती है। खुशकिस्मती से अगर श्रमिक लौटे भी तो इस बार सौदेबाजी और सावधानी के नुस्खे जरूर आजमाएंगे।श्रमिकों के संकट से सारे उद्योग जूझने वाले हैं ।उसकी पूरी जिम्मेदारी उद्योगपतियों और सरकार की होगी ।

खाने के पैकेट देते समय फोटो खिंचवाने वाले तो जिम्मेदारियों का पत्तल उठाते हुए कभी नजर ही न आएंगे ।इस आफत काल में एकदम से असहाय पड़े श्रमिकों को छोड़ और भुला दिया गया है। श्रमिक भी शायद ही इसे भूलें।वो अब रोजी-रोटी का विकल्प अपने गांव और आसपास के जिला शहरों में ही ढूंढने की कोशिश करेंगे। राज्य सरकारों को भी चाहिए कि उनके लिए वहीं रोजगार की व्यवस्था करें। ताकि दूसरे राज्यों में जाकर उन्हें अपनी तौहीन न करानी पड़े ।महाराष्ट्र ,गुजरात, असम ,बंगाल जैसे राज्यों में जहां उत्तर भारतीयों को हमेशा मारा-पीटा और अपमानित किया जाता रहा है।

शायद इस बार गंभीर सबक मिले। क्योंकि कोरोना के कारण लोगों के दिलों पर पड़ा इस बार का असर एकदम से अलग है। कोरोना का तासीर दंगे -फसाद, युद्ध, भूखमरी ,अकाल, सूखा, बाढ़ आदि से एकदम जुदा रहा है ।इसने हमें बहुत कुछ सिखाया ही नहीं ,हमारी जीवनशैली तक को बदल दिया है। वो सदी का सबसे कठोर शिक्षक साबित हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि “भइयों” की कमी एक दिन सबको बुरी तरह खलने वाली है।

लापरवाही और उपेक्षा नुकसान का प्रतिफल लेकर आने वाली हैं ।ईश्वर से प्रार्थना है कि उन कामगारों को अपने गांव में सुरक्षित रखे। उन्हें वहीं जीविका के साधन उपलब्ध कराए।घर के बाहर जाकर जो जलालतें उन्होंने झेली हैं, कम से कम उनकी संतानें तो न झेलें। यूपी ,बिहार जैसे राज्य थोड़ा समझें और वहीं पर उद्योग धंधे खोलकर उन्हें बेहतर जिंदगी देने की कोशिश करें।राज्य अपनी तरक्की का चाहे जितना ढिंढोरा पीट लें, अगर उनके नागरिकों को रोजी-रोटी के लिए अगर अन्य प्रदेशों का रूख करना पड़े तो राज्य का साधुवाद छिन जाता हैं।

आइसोलेशन व क्वारंटाइन केन्द्रों पर देश के विभिन्न प्रदेशों से आने वाले मजदूरों को कोरोना के सामुदायिक संक्रमण को रोकने हेतु 21 दिनों तक अपने पंचायत व प्रखंड के विद्यालयों व महाविद्यालयों आइसोलेट करने का प्रावधान हैं ।आइसोलेशन व क्वारंटाइन केन्द्रों पर पहुँचने वाले सभी लोगो की चिकित्सकीय जाँच करा कर इनमे से कौन कोरोना नेगेटिव व पॉजिटिव हैं इसका पता लगाया जाता हैं।21 दिनों तक उन केन्द्र पर प्रवासियों के रहने,खाने,सोने,मनोरंजन व खेल के साधन के साथ-साथ स्वच्छता और सफाई की व्यवस्था की जानी थी।

लेकिन प्रत्येक दिन प्रदेश के विभिन्न जिलों में अवस्थित आइसोलेशन व क्वारंटाइन केन्द्रों से अव्यवस्था, कुप्रबंधन व असंवेदनशीलता के कारण लोग केन्द्रों से भाग रहे,हंगामा कर रहे और रोड जाम कर रहे है।केन्द्रों पर आवासितों की संख्या के अनुपात में शौचालय एवं स्नानागार की व्यवस्था के साथ ही पानी, बिजली एवं साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था का अभाव है।आवसितो की संख्या कमरे में अधिक होने से भौतिक दूरी का पालन ठीक से नही हो पा रहा हैं।अधिकांश केन्द्रों पर नास्ता व दो बख्त का भोजन नही मिल रही और कुच्छ केन्द्रों पर मिल रहे है तो इसकी गुणवत्ता मानव के खाने योग्य नही है।केन्द्रों पर सुरक्षा प्रहरी के नही होने से कई ग्रामीण आइसोलेशन व क्वारंटाइन केन्द्रों से रात में आवासित लोग घर चले जाते है और सुबह केंद्र पर आ जाते है जिससे संक्रमण फैलने की संभावना रहती हैं।

डॉक्टरों की कमी के कारण आवसितो की चिकित्सकीय जाँच नही हो पाती।यहाँ तक कि समस्तीपुर में कोरोना पॉजिटिव मरीज का चिकित्सकीय जाँच तीन दिनों के बाद मरीज द्वारा वीडियो रिकॉर्डिंग कर मीडिया से शिकायतोपरांत हुआ। सरकार कोरोना संभावितों व संक्रमितों के साथ बन्दियों से बदतर सलूक कर रही हैं।बन्दियों के भी अपने सम्मान, समानता,मौलिक व मानवाधिकार है।

लेकिन सरकार कोरोना संभावितों व संक्रमितों से संविधान प्रदत अधिकार यथा सम्मान का अधिकार, भोजन का अधिकार,समानता का अधिकार व मानवाधिकार छीन कर जानवरों सा व्यवहार कर रही हैं।जिसके परिणति के रूप में प्रवासी आइसोलेशन व क्वारंटाइन केन्द्रों की कुव्यवस्था से ऊब कर भाग रहे,हंगामा कर रहे और रोड जाम कर रहे है।सरकार उनके प्रतिरोधो से ससमय नही सचेत होती हैं तो उनके अधिकारों की लड़ाई अधिक उग्र होने की संभावना हैं जिसका प्रभाव समाज व सरकार पर दूरगामी पड़ेगा व कोरोना संक्रमण के रोकथाम की लड़ाई प्रभावित होगी।

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