कहीं राहत पैकेज के नाम पर मजाक तो नहीं ?

9 माह की गर्भवती महिला,बिस्किट के पैकेट के लिए लड़ने को मजबूर

ट्रॉली बैग पर बच्चे को लिटा कर ले जाती महिला 800 km पैदल चलने को मजबूर

सड़क दुर्घटना में एवं रेल ट्रैक पर दुर्घटना में मर रहे मजदूर

गरीबों को है भूख रोटी की,उनको चाहिए नकद रुपये

20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा,कबतक धरातल पर असर दिखेगी?

क्या तब तक देश के हालात ऐसे ही रहेंगे ?

क्या इस आपदा की स्थिति में लोग हो पाएंगे इस घोषणा से लाभांवित?

*आर.के रॉय/ संजीव मिश्रा*

नई दिल्ली :

ट्रॉली बैग पर बच्चे को लिटा कर ले जाती महिला,सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर नौ माह की गर्भवती महिला,बिस्किट के पैकेट के लिए लड़ते मजदूर,सड़क दुर्घटना में एवं रेल ट्रैक पर दुर्घटना में मर रहे मजदूर,पत्ते खाकर भूख मिटाने की कोशिश करता मजदूर,ट्रकों में जानवर की तरह ठूंस-ठूंस कर अपने घर को जाते मजदूर,भूख-प्यास से बिलखते मजदूर।

दो महीने होने को चले, ये सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन से बेपटरी हुई देश की *अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ के* आर्थिक पैकेज की घोषणा की।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पिछले तीन दिनों से विस्तार पूर्वक इस बीस लाख करोड़ के पैकेज को देश को समझा रही हैं।केंद्र सरकार के एक मंत्री ने जानकारी दी कि देश के 13 करोड़ गरीबों के खाते में पैसे गए,केंद्र ने राज्यों को मजदूरों के लिए 11 हजार करोड़ रुपए दिए,दो महीने मजदूरों को मुफ्त राशन मिलेगा और ये राशन उन्हें भी मिलेगा जिनके पास राशन कार्ड नहीं है।सरकार ने घोषणा की है कि रेहड़ी पटरी वालों को तुरंत 10 हजार का कर्ज दिया जाएगा। जिससे वो अपना व्यवसाय कर सकें।

सरकार ने घोषणाऐं की और ढेर सारी की।सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्योग और किसानों के लिए भी घोषणाएं की।इन घोषणाओं को देखकर लगता है मानो हमारे देश से सारी समस्याएं समाप्त होने वाली है।अब न कोई भूखा मरेगा, न कोई बेरोजगार होगा और न ही कोई समस्या रह जाएगी।लेकिन क्या सिर्फ घोषणाओं से सारी समस्या खत्म हो जाएगी,निःसन्देह नहीं।पहले भी कई घोषणाएं हो चुकी हैं,परंतु देश के हालात नहीं बदले।महत्वपूर्ण है घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने की,घोषणाओं को धरातल पर लाने की।महत्वपूर्ण है कि सरकार की घोषणाओं का शत प्रतिशत लाभ उन्हें मिल सके जिनके लिए सरकार ने घोषणाऐं की है।

घोषणाओं को धरातल पर आने में मालूम नहीं कितना वक्त लगेगा,तो क्या तब तक देश के हालात ऐसे ही रहेंगे ?लाखों की संख्या में लोगों का पलायन आज भी जारी है।सरकार की घोषणाऐं उन्हें नहीं रोक सकी।एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मजदूरों के पैदल जाने का कोई मतलब नहीं, मजदूरों को थोड़ा धैर्य रखना चाहिए।

मंत्री जी की बातें बड़ी अव्यावहारिक और हास्यास्पद लगती है।मजदूरों के पास न रोजगार है,न रोटी है और न ही पैसा है।उन मजदूरों को तत्काल रोटी चाहिए,उन्हें तत्काल नगद रुपए चाहिए और चाहिए रोजगार का भरोसा।जो दे पाने में सरकार विफल रही है।सरकार बड़े-बड़े दावे कर रही है,मुफ्त राशन उपलब्ध करवाने की बात कर रही है।यदि ऐसा है तो फिर कहां गए वो राहत के नाम पर मिलने वाला मुफ्त राशन और नकद ?क्यों देश के कोने-कोने से पलायन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

सरकार राहत के नाम पर लोगों से मजाक कर रही है।सरकार ने तीन महीनों के लिए ईएमआई आगे बढ़ाने की बात कही थी,बावजूद बैंक खाते से ईएमआई का पैसा बगैर सूचना दिए काट रहे हैं।सरकार रेहड़ी पटरी वालों, किसानों और सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के लिए राहत देने की बात करती है,जबकि सरकार राहत के नाम पर उन्हें कर्ज दे रही है जो उन्हें बैंक से लेना है।दुनिया जानती है कि बैंकों से कर्ज लेना कितना मुश्किल काम है।एक तरफ राहत के नाम पर सरकार देशवासियों को सपने दिखा रही है,वहीं दूसरी ओर इसी सरकार ने कई उद्योगपतियों का लाखों करोड़ माफ किया है,तब जबकि देश में लॉकडाउन नहीं था।

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