हार स्वीकार कर

हार स्वीकार कर

जे टी न्यूज
कंटक-पथ है पद धर,
ना फिकर कर,
टेढे़-मेढे़ रास्तों का…
बढ़ धीरज धर,
ओ पथिक! स्वेद बहा
अटल बन…
चढ़ दिशा निरंतर,
हो निशा में भी
तमस को पार कर!
गिरना लुढ़कना फिर चढ़ना,
ओ पथिक! हार स्वीकार कर!!

जीतना है जरूरी किन्तु
हारना भी है।
स्वयं को ज्वाला-धार में
उतारना भी है।
तज कर प्रेम,मोह,घर,
एकान्त मन सहारा कर,
धारा मुश्किल सागर की…
हाथों से नाव किनारा कर,
बाना गंभीर आचरण का…
ले स्वयं से प्यार कर!
जब पाना है अटल मंजिल,
ओ पथिक! हार स्वीकार कर!!

यह कुसुम निराले
चकाचौंधी के,
पथ से यूं भटकाए।
वो मधुप तन्हा
कितना सच्चा?
गीत बुलंदी नित्य गाए।
कलियां देगी स्नेहाशीष
फूलवारी बागानों में।
तब होगा विजय-नाद
कच्चे तेरे मकानों में।
असहज मंजिल पाकर
हल्का कंधे का भार कर!
खिले चेहरा टूटा हुआ,
ओ पथिक! हार स्वीकार कर!!

रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’
खरसंडी, राजस्थान

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