जीवित किंवदंती थे किशोरी जी उर्फ स्नेहलता – कन्हैया मिथिला की सांस्कृतिक विरासत है उनके गीत


कार्यालय, जेटी न्यूज।
समस्तीपुर। कपिल देव ठाकुर उर्फ स्नेहलता मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति के बाद एक मात्र शख्सियत जिसके गीतों में मिथिला की संस्कृति अठकेलियां करती है। जी हां! स्नेहलता जी के गीत अपने लालित्य और माधुर्य के दम पर पूरे प्रदेश में मिथिला की पहचान बन गई हैं।

शायद ही कोई गांव, जहां जन्मोत्सव से लेकर विवाहोत्सव तक विभिन्न संस्कारो के अवसर पर, अथवा पर्व त्योहारों के समय स्नेहलता के गीत नहीं गूंजते हों और जहां की महिलाएं इन गीतों को न गाती हो। बिहार में खास कर मिथिला में वर को राम लला और वधू को जनक लली किशोरी जी यानी सीता का प्रतिरूप मानकर महिलाएं स्नेहलता के गीतों से विवाह संपन्न कराने की परंपरा है।

युवा और बुजुर्ग ही नहीं बच्चे भी स्नेहलता जी के गीतों की मधुरता का कायल है। किशोरी जी के रूप में एक अन्य उपनाम से विभूषित स्नेहलता जी मूल रूप से जिले के कल्याणपुर प्रखंड स्थित डरोड़ी के निवासी नथुनी ठाकुर के पुत्र थे।दिनांक 17 जनवरी 1993 को परलोक प्रयाण के पूर्व अपने जीवन काल में ही किंवदंती बन चुके श्री किशोरी जी / स्नेहलता जी मिथिला की लोक संस्कृति को समृद्ध बनाने में अपने समकालीन अन्य गीतकारों से कहीं आगे थे।

एक मिथक प्रचलित मिथक इनकी लोकप्रियता को इंगित करती है कि वेद मंत्रो के बिना संस्कार पूरे हो भी जाए, मगर विद्यापति या स्नेहलता के गीतों के बिना पूरे नहीं हो सकते। सरस्वती पूजा, महा शिवरात्रि, होली, रामनवमीं, जानकी नवमी, झूला, कांवर गीत, विश्वकर्मापूजा, नवरात्रा, दीवाली, छठ, और राम जानकी विवाहोत्सव के प्रचलित व लोकप्रिय गीतों में से आधे से अधिक गीत स्नेहलता जी के ही गाए और सूने जाते हैं।

स्नेहलता जी के सोहर, बधाइया, समदाउन, ‌झूमर, कजरी, पूर्वी, पराती, महेशवाणी, नचारी, डोमकच, सामा चकेबा, होली, फाग, चैतावर, इत्यादी को भी देश के हिंदीभाषी क्षेत्रों में खासी लोकप्रियता हासिल है। इस बाबत संगीत मर्मज्ञ पत्रकार सह चिंतक संजय कुमार राजा व स्थानीय सुप्रसिद्ध लोकप्रिय गायक कृष्ण कुमार कन्हैया बताते हैं

कि स्नेहलता के गीत-जाति संप्रदाय से ऊपर उठ कर सांसारिकता से इतर आध्यात्मिक आत्म उन्नयन का मार्ग प्रशस्त करते है। यही कारण है कि वे सभी जाति संप्रदाय में समान रूप से स्वीकार्य है। उनके गीत श्रृंगार की सात्विकता व मधुरोपासना की पराकाष्ठा का प्रतिनिधित्व करते है।

इसलिए ये नारी पुरुष भेद से भी मुक्त हमारे साझा सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। यूं तो स्वर कोकिला पद्मश्री शारदा सिन्हा, सुरेश पंकज जैसे कई लोक गायकों ने लोकप्रियता के शिखर तक का सफर इनके गीतों के सहारे पूरा किया किन्तु विडंबना है

कि राष्ट्रीय व राजकीय सम्मान तो छोड़िए जिले के सम्मानित विभूतियों मै भी मैथिली और मिथिला कि पहचान स्नेहलता जी का नाम शुमार नहीं हो सका है। अभी हाल ही में श्री कन्हैया जी ने स्नेहलता जी को कम से कम जिला स्तर पर प्रतिष्ठा व पहचान दिलाने की मुहिम छेड़ी है।

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