लॉक डाउन में बढे घरेलू हिंसा के मामले, खोखली हो रही भावी पीढ़ी – शहनाज़

कार्यालय, जेटी न्यूज
समस्तीपुर।

इस समय देश अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगे लॉक डाउन श्रृंखला ने आम जनजीवन को बुरी तरह से तहसनहस कर दिया है । इस महामारी से बचने के लिए प्रधानसेवक ने देर से ही सही मगर पहली बार 24 मार्च को सम्पूर्ण भारत मे लॉकडाउन की पोषणा कर दी और तीन बार लोक डाउन अवधि विस्तार किया।

इस लॉक डाउन से कोरोना कितना प्रभावित हुआ यह तो पता नहीं किंतु इससे एक खास वर्ग अत्यधिक प्रभावित हुआ है वह है महिला वर्ग। जी हां इस अवधि में महिलाओ के साथ घरेलू हिंसा में व्यापक वृद्धि दर्ज की गई है। राष्ट्रीय महिला आयोग के प्रस्तावित आकड़े के अनुसार इस अवधि में महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा में दोगुनी वृद्धि दर्ज की गई है।

आयोग की रपट के हवाले से युवा सामाजिक चिंतक शहनाज़ फ़िरदौस ने कहा कि जहाँ एक ओर मार्च के पहले सप्ताह ( 2-3 मार्च ) में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा 116 मामले सामने आए थे, वहीं मार्च के अंतिम सप्ताह ( 23 मार्च से 1 अप्रैल ) में मामले बढ़ कर 257 के पास पहुंच गए। इस दौरान बलात्कार अथवा बलात्कार के प्रयास के मामलों में भी 6गुना से अधिक वृद्धि देखी गई यह आंकड़ा 2 से बढ़कर 13 पर पहुंच गया हैं ।

सुश्री फ़िरदौस ने बताया कि एक गैर सरकारी संगठन चाइल्डलाइन इंडिया की माने मुताबिक पिछले 11 दिनों में ( 25 मार्च से 24 अप्रैल ) में घरेलू हिंसा के खिलाफ 92000 कॉल प्राप्त हुए है । इससे प्रकार देखा जाय तो गरिमामयी जीवन के अधिकार ( अनुच्छेद -21 ) से संबंधित शिकायत 35 से दोगुना से अधिक बढ़ कर 77 हो गए है। इस अवधि में घरेलू हिंसा के साथ साथ महिलाओं की शिकायत के प्रति पुलिस की उदासीनता के मामलों में भी लगभग तीन गुनी वृद्धि हुई है ।

सुश्री फ़िरदौस की मानें तो लॉकडाउन में घरेलू हिंस होने के कई कारण देखें गए, यथा – रोजगार का अभाव यह पहला कारण है जिससे उत्पन्न आर्थिक तंगी जन्य महिला और पुरुष का मानसिक तनाव हिंसा का रूप ले लेता है । बंद स्कूल और पार्क बच्चों के विद्यालय अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए गए है साथ ही साथ खेल का मैदान ओर पार्क पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

जिस कारण बच्चे घर मे ही खेलते नजर आते है जिसके परिणामस्वरूप अनावश्यक शोरगुल बेकारी के मानसिक तनाव झेल रहे पति पत्नी सहन नहीं कर पाते जिसने घरेलू हिंसा को बढ़ावा मिला है। महिलाओं पर परिवार , बच्चों के देखभाल , घरेलू कार्य , स्वादिष्ट भोजन का नहीं बनाना तथा सामाजिक मेल मिलाप के कम होने से सोशल साइट्स पर अधिक समय बिताना भी महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा का सबब बन गया है ।

गौरतलब यह है कि घरेलू हिंसा से होने वाले प्रभाव भी समाज के लिए चिंता का विषय है। हिंसा से पीड़ित व्यक्ति मानसिक तनाव से घंटो तक उबर नहीं पाता है । ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठते है या फिर मानसिक अवसाद से ग्रसित हो जाते है । सबसे दुखद स्थिति यह है कि हम जिन लोगो पर भरोसा करते है जिनके सहारे रहते है वही इस तरह दुःख देते है तो रिश्तों पर से विश्वास उठ जाता है।

कई बार वह अकेले रहना पसंद करते है कई बार वह आत्महत्या तक कर लेते है। हिंसा से पीड़ित महिला अपने आप को समाजिक गतिविधियों से अलग थलग कर लेती है। अंततः घरेलू हिंसा का सबसे व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है जो देश की बुनियाद को दीमक की तरह खोखला कर रहा है।

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