नई शिक्षा नीति कितनी सार्थक – भाग 1

नई शिक्षा नीति कितनी सार्थक – भाग 1बेगूसराय::- दरभंगा स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार रामनंदन प्रसाद सिंह ने हमारे संवाददाता से बात करते हुए नई शिक्षा नीति के विषय में कुछ बताया। आइए जानते हैं क्या कुछ कहा इंजीनियर रामनंदन प्रसाद सिंह ने-

पिछले दिन केंद्र सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति की घोषणा के साथ ही इसके पक्ष और विपक्ष में चर्चाएँ जोर पकड़ने लगी हैं।

 

34 साल बाद यह नई शिक्षा नीति आई है, जिस पर विचार मंथन आवश्यक है।

 

इससे पहले 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय नई शिक्षा नीति आई और इस शिक्षा नीति में व्यापक पैमाने पर 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के द्वारा संशोधन किया गया था।

पिछले कई दशकों से चली आ रही शिक्षा नीति के आधार पर ही शिक्षा के सारे सिस्टम चलाए जाते रहे हैं।

 

शिक्षाविदों का कहना है कि चालू शिक्षा नीति 21वीं सदी की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए सक्षम नहीं साबित हो रही थी और उसमें दूरगामी परिवर्तन की जरूरत थी।

पहले की शिक्षा नीति में रट्टू तोता बन कर छात्रों को ज्ञानार्जन करने के बजाए नई शिक्षा नीति में सीखने पर ज्यादा जोर दिया गया है।

 

“कोठारी आयोग” (1966)

 

देश में पहली शिक्षा नीति 1968 में आई, जो “कोठारी आयोग” (1966) की सिफारिशों पर आधारित थी।

 

“कोठारी आयोग” (1966) ने “शिक्षा” को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया।

 

“कोठारी आयोग” (1966) वाली शिक्षा नीति में 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा के साथ ही शिक्षकों के प्रशिक्षण और योग्यता का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।

 

“कोठारी आयोग” (1966) ने शिक्षा पर जीडीपी (GDP) की 6% राशि खर्च करने का प्रावधान रखा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

 

इसके बाद 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जिसे शिक्षा के क्षेत्र में असमानताओं को दूर करने वाला कदम माना जाता है।

 

1986 की शिक्षा नीति में महिलाओं, अनुसूचित जनजातियों (ST) और अनुसूचित जाति समुदायों (SC) को शैक्षणिक अवसर प्रदान करने पर विशेष जोड़ दिया गया था।

 

इनके अलावा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) के साथ ओपन यूनिवर्सिटी प्रणाली का विस्तार किया गया।

 

1986 की इस शिक्षा नीति में भारत में जमीनी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना था।

 

1992 में 1986 से चली आ रही शिक्षा नीति में संशोधन किया गया, और इस संशोधन का मूल उद्देश्य देश में व्यवसायिक और तकनीकी क्षेत्रों में प्रवेश हेतु राष्ट्रीय स्तर पर एक “आम प्रवेश परीक्षा” का आयोजन करना था।

इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर “संयुक्त प्रवेश परीक्षा” (JEE) और “अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा” (AIEEE) तथा राज्य स्तर के संस्थानों के लिए राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (SLEEE) के नियम निर्धारित किए गए।

 

घोषित नई शिक्षा नीति पर अनेक शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस नीति को जमीनी स्वरूप देना बेहद कठिन होगा हालांकि सरकार संपूर्ण नीतियों को समग्र रूप से लागू करने की अवधि 2040 तक रखी है।

नई शिक्षा नीति में पाठ्यक्रमों में कैसे बदलाव होगा, और इस बदलाव का आधार क्या होगा?

 

स्कूलों में अधिक नामांकन बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसे बिना निजी भागीदारी के कैसे पूरा किया जा सकता है?

किसी देश की शिक्षा प्रणाली की बुनियाद वहां के शिक्षक होते हैं।

 

देश में कुशल और प्रशिक्षित शिक्षकों का घोर अभाव है और इनके अलावा सरकारी शिक्षण संस्थानों में शैक्षणिक संसाधनों की भी भारी कमी है।

 

नई शिक्षा नीति में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों को, जो पुराने नीति में वर्ग 8 तक ही सीमित था, उसे 12 वीं तक लागू करने की योजना है, लेकिन न तो केंद्र सरकार ने और न तो राज्य सरकार इसमे पूरी दिलचस्पी दिखायी । स्कूल कॉलेजों शिक्षकों की भारी कमी, संविदा और अतिथि शिक्षक की बहाली इन्ही तथ्यों की ओर इशारा करते है।

आज की तारीख में बिहार जैसे राज्यों के सरकारी स्कूल और कॉलेजों में शिक्षकों के 48 प्रतिशत पद खाली हैं, साथ ही शिक्षकों को प्रशिक्षण देने वाले संस्थान पंगु बने हुए हैं ।

दुनिया में सबसे ज्यादा युवा मानव संसाधन भारत में है, इस समय अगर हम सबके लिए सुलभ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बूते इस अपार मानव संपदा को संवार सके तो हमारा समाज और देश सही मायनों में  विकास कर सकता है । नई शिक्षा का विश्लेषण आगे भी जारी।

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