*पंजाब विधानसभा चुनाव में कौन होंगे ‘कैप्टन’ अमरिंदर सिंह या भाजपा?*

*पंजाब विधानसभा चुनाव में कौन होंगे ‘कैप्टन’ अमरिंदर सिंह या भाजपा?*

जेटी न्यूज।

पंजाब::- मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो बीजेपी इस बार पंजाब में 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और उसने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के लिए 35 सीटें छोड़ने का मन बनाया है. जबकि 12 सीटें सुखदेव सिंह ढींडसा की पार्टी को देने पर बातचीत चल रही है.

पंजाब का सियासी सेज सज चुका है. तमाम राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत के लिए कमर कस चुके हैं. लेकिन इन सबके बीच कैप्टन अमरिंदर सिंह और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन सीटों के बंटवारे के बीच अटका हुआ है. हालांकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ये ऐलान जरूर कर दिया है कि वह आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ ही मैदान में उतरेंगे. लेकिन समस्या इस बात की है कि इस गठबंधन में वह ‘कैप्टन’ रहेंगे या नहीं इस पर कई सवाल हैं.

दरअसल बीते 22 सालों से भारतीय जनता पार्टी पंजाब विधानसभा का चुनाव शिरोमणि अकाली दल के साथ मिलकर लड़ती आ रही थी और इस गठबंधन में बीजेपी हमेशा छोटे भाई की भूमिका में नजर आती थी. लेकिन बीते वर्ष 3 नए कृषि कानूनों की वजह से 22 साल पुराना यह गठबंधन टूट गया और भारतीय जनता पार्टी पंजाब में अकेली पड़ गई. हालांकि इसी बीच पंजाब कांग्रेस के भीतरी सियासत ने ऐसी करवट ली कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और कांग्रेस छोड़कर अपनी नई पार्टी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ बनानी पड़ी. और बीजेपी को इसी का इंतजार था.

गठबंधन में कैप्टेंसी को लेकर मामला अटका हुआ है
ऐसे तो अमरिंदर सिंह का नाम कैप्टन अमरिंदर सिंह है, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी इस बार कप्तानी अपने हाथों में लेना चाहती है. यानि की बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी को 117 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में अपने से कम सीटें देना चाहती है. मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो बीजेपी इस बार 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और उसने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के लिए 35 सीटें छोड़ने का मन बनाया है. जबकि 12 सीटें सुखदेव सिंह ढींडसा की पार्टी को देने पर बातचीत चल रही है.

हालांकि अगर बीजेपी के इतिहास को देखें तो अकाली दल ने बीते 22 सालों में बीजेपी को कभी भी 23 सीटों से ज्यादा पर चुनाव नहीं लड़ने दिया. अब कैप्टन अमरिंदर सिंह इसी पशोपेश में हैं कि अगर भारतीय जनता पार्टी को इतनी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने दिया गया और परिणाम उसके पक्ष में नहीं हुए, तो उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट सकता है. दूसरी समस्या यह है कि अगर बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी से ज्यादा सीटें निकाल लेती है तो फिर वह पंजाब में अपना मुख्यमंत्री चाहेगी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए फिर से मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

सात दौर की बातचीत के बाद भी फैसला नहीं हो पाया
सोचिए की सीट बंटवारे को लेकर मामला कितना ज्यादा फंसा हुआ है कि इस मुद्दे को लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह और बीजेपी के बीच लगभग 7 दौर की बातचीत हो गई है. हालांकि इस दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब बीजेपी प्रभारी गजेंद्र सिंह शेखावत ने यह जरूर ऐलान कर दिया है कि वह गठबंधन में पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे. लेकिन सीटों को लेकर अभी भी बात सामने नहीं आ पाई है. एक तरफ पंजाब का एनडीए गठबंधन जहां सीटों के बंटवारे में उलझा हुआ है. वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर रही हैं.

जाहिर सी बात है चुनाव होने में अब महज 2 महीने का वक्त और है और अगर बीजेपी इसी तरह से उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने में देरी करती है तो उतने बेहतर ढंग से चुनाव प्रचार एनडीए गठबंधन नहीं कर पाएगा जितने बेहतर ढंग से और राजनीतिक पार्टियां कर लेंगी. इसलिए अब भारतीय जनता पार्टी और कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीट बंटवारे को लेकर फैसला जल्द करना चाहिए.

बीजेपी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती है तो क्या होगा
पंजाब विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इस बार अपने आप को स्थापित करना चाहती है, इसीलिए वह ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रयास कर रही है. उसे लगता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी फिलहाल नई है और वह बीते 4 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे हैं, ऐसे में एंटी इनकंबेंसी भी उनके लिए नेगेटिव प्वाइंट साबित हो सकती है. हालांकि बीजेपी को समझना चाहिए कि उसने तीनों कृषि कानूनों को वापस भले ही ले लिया है, लेकिन किसानों के मन से खासतौर से पंजाब के वोटर के मन से अभी भी इन कानूनों की कसक गई नहीं है.

बीजेपी की पकड़ केवल पंजाब के शहरी हिंदू वोटरों में है, जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह मालवा रीजन से लेकर पंजाब के शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में अपनी पैठ बनाए हुए हैं. आपको याद होगा कि 2017 में जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी तब उस वक्त कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने बलबूते पर पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनवाई थी. इसलिए जमीनी तौर पर कैप्टन का पलड़ा भारी है. हालांकि राजनीति में सभी अपना नफा नुकसान देखते हैं. अब बीजेपी अपना इसमें कितना नफा नुकसान देख रही है यह तो वक्त ही बताएगा.

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