डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा भ्रस्टाचार में सरोबर

डॉ.राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा भ्रस्टाचार में सरोबर

*सूत्रों की मानें तो विश्वविद्यालय के कुलपति की संलिप्ता के कारण ही बना है भ्रस्टाचार का अड्डा*

अगर राष्ट्रपति सहित भारत सरकार के ‘भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र परिषद ‘ स्तर से हो जांच हो जाय,
तो हो सकता है बड़ा खुलासा

जेटीन्यूज़

आर के राय

समस्तीपुर: इन दिनों समस्तीपुर जिले में स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा भ्रस्टाचार के मामले में नित्य दिन नए-नए रिकॉर्ड बना रहे हैं।
हैरत की बात है यह सबकुछ विश्वविद्यालय के कुलपति के निगरानी में सारा कुछ हो रहा है। वहीँ सूत्रों की माने तो कुलपति के निगरानी में ही भ्रस्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। जब आका का ही सहमति मिल जाये तो भला वहां भ्रस्टाचार कैसे नहीं फले फूलेगा।
स्थानीय छात्रों से लेकर स्थानीय लोगों तक का कहना है कि हर मामले में विश्वविद्यालय भ्रस्टाचार को लेकर नए नए रिकॉर्ड बना रहे हैं।
हम बात करते छात्रों के नामांकन का मामला हो , विश्व विद्यालय में नियुक्ति का मामला हो, या कृषि विश्वविद्यालय में चल रहे निर्माण कार्य मे कंस्ट्रक्शन का मामला हो हर तरफ लूट ही लूट मचा है।
वहीं छात्रों के हॉस्टल फीस में बढ़ोतरी एवं राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाली छात्रवृत्ति छात्रों को समय पर नहीं देकर उसे हजम करने की भी काली करतूतों से विश्वविद्यालय प्रशासन नित्य दिन नए नए रेकॉर्ड बना रहा ।

यह सब गोरखधंधा विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा भारत सरकार के कुछ सांसद और समस्तीपुर के पूर्व जिलाधिकारी के संरक्षण में फल फूल रहा है . हालांकि जिलाधिकारी अब नए आ चुके हैं जिन्होंने अपना योगदान भी दे दिया है ।
विश्विद्यालय में इतना ज्यादा भ्रस्टाचार वयाप्त है कि किसी भी क्षण विश्वविद्यालय में विस्फोटक स्थिति पैदा हो सकती है। वहीं कुछ छात्रों से जानकारी मिली कि छात्रों से मेस चार्ज के नाम पर अतिरिक्त चार्ज लिए जा रहे हैं। रुपए का हिसाब -किताब नहीं कर पुनः इस बार कोरोना अवधि का भी नेट चार्ज लिया जाना छात्रों के जीवन से खिलवाड़ किया जाना बताया जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कभी भी मेस का हिसाब -किताब समय पर नहीं किया जाता है ।वहीं कइयों का कहना है इस पैसे को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हजम कर लिया जाता है । केंद्र सरकार के स्पष्ट आदेश के बाद भी छात्रों के एक ही हिसाब वेबसाइट पर दिखाया जाना और वेबसाइट खराब होने का बहाना बनाकर विश्वविद्यालय प्रशासन अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

कभी भी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय स्तर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं किए जाते है ।अगर किए भी जाते हैं तो अपने चहिते लोगों को बुलाकर खाना पूर्ती केवल किया जाता है । मुख्यमंत्री के शराबबंदी कानून को भी विश्वविद्यालय प्रशासन धड़ल्ले से धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं। कई बार विश्वविद्यालय परिसर से भारी मात्रा में शराब की बोतलें भी बरामद की गई परंतु विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस पर कोई सफाई देना उचित नहीं समझा गया। बल्कि ऐसे पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी चेतावनी डाल देते रहे हैं। कई छात्रों ने बताया कि ऐसे दर्जनों छात्र हैं जो अपने पढ़ाई पूरा कर नौकरी कर रहे हैं लेकिन उनका मेस का हिसाब -किताब आज तक नहीं किया जा सका है। कुलमिलाकर इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि विश्वविद्यालय के अंदर अभी किस स्तर पर भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है । स्थितियों का आकलन किया जाय तो कुलपति की ही भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है। वहीं अगर इस गंभीर मामले में राष्ट्रपति सहित भारत सरकार के भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र परिषद (आईसीआर) स्तर से जांच हो जाय तो बड़ा खुलासा हो सकता है । अब देखना है इस मामले में राष्ट्रपति या भारत सरकार क्या कारवाई करते है ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा।

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