प्रजातंत्र के चुनावी प्रणाली में ई वी एम की भुमिका पर शंका क्यू – खबरी लाल

प्रजातंत्र के चुनावी प्रणाली में ई वी एम की भुमिका पर शंका क्यू – खबरी लाल

भारतीय लोक तंत्र के महापर्व का यह बर्ष सन 2022 है । इस साल में कई राज्यो के विधान सभा के चुनाव होने वाले है। पाँच राज्य के विधान सभा के चुनाव ना सम्पन्न हुए ब्लकि चुनाव के नतीजे आ गये है। चार राज्यों उत्तर प्रदेश ‘ उत्तराखण्ड , गोवा व मणिपुर के विधान सभा के चुनाव के केद्रीय नेतत्व के कुशल रणनीति व मार्गदर्शन में ना केवल बहुमत के जादूई आंकड़े लाये ब्लकि सरकार बनाने सफलता पाई ! हालाकि इस बार राज्य की जनता नें राजनीति के घुंघरू दरो को सबक सिखाई ब्लकि उन्हे हार का मजा भी चखाया ‘ चाहे उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हो ‘ स्वामी प्रसाद मौर्य ‘स्वच्छ छवि वाले योगी आदित्यनाथ जी मंत्री मण्डल के 11 सदस्य हो ‘ जहाँ तक देव भुमि उत्तराखण्ड के बात हो बहाँ की जनता नें मुख्यमंत्री घामी या भावी मुख्य मंत्री के चेहरे रूप में चुनाव लड रहे दिग्गज कांग्रेसी नेता हरीश रावत जी हो ,पंजाब की जनता तो वर्तमान व निवर्तमान कई मुख्य मंत्री यो को ना केवल ना कारा ब्लकि उसकी राजनीतिक जीवन में विराम लगाते हुए पंजाब में स्वच्छता अभियान के तहत झाडू चलाते हुए आम आदमी पार्टी पर ना केवल भरोसा जताया ब्लकि 92 विधायकों को चुन कर पंजाब में प्रखंड बहुमत का विजयी परचम लहराया है। परिणाम स्वरूप सभी राजनीतिज्ञ दलो के नेता व राजनीति पंडितो व विशेषज्ञ की भविष्य वाणी को लेकर कर टेन्सन बढ गया है। आप को याद होगा विगत दिनो जब एक टी वी चैनल पर खबर प्रसारित किया गया है। माननीय प्रधान मंत्री के संसदीय क्षेत्र वनारस में ई वी एम से लदा एक ट्रक को एक राजनीति दल के कार्य कर्ताओ ने पकड़ लिया है जिसकी सुचना सपा के अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस कर पत्रकारों को दे दिया । जिसके बाद यह खबर आग की भाँति शोसल मीडिया व अन्य सुचना माध्यमों सें फैल गई।
चुनाव में तो हार जीत लगी ही रहती है। चुनाव जीतने के खुशी में जशन व चुनाव हराने के कारण अपने हार के कारणो का पता लगना ‘ चिन्तन मनन व आत्म मंथन की आवश्कता होती है ना कि ई वी एम मशीन पर अपनी व अपनी पार्टी की हार का ठीकरा फोड़ने का । ऐसे में मुझे पुराने दिनो की घुन्घलीं यादें आज ताजगी हो गई है ‘जब 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा के तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी आडवाणी जी ई बी एम के विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुँचे थे। उसके बाद आडवाणी जी धीरे धीरे पार्टी में साइडलाइन हो गए।संवैधानिक व लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदान पत्र से मतदान करने में मतदाता के मताधिकार मत की वैधानिकता प्रमाणिकता की गारंटी सुनिश्चित है।

 

ई वी एम को लेकर संघ के तथाकथित बुद्धिजीवी इलेक्शन ऐनालिस्ट जीवीएल नरसिम्हा राव ने 2010 में ईबी एम के प्रयोग के विरोध में एक पुस्तक लिखी ,जिसका विमोचन तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी ने किया । उसके बाद नितिन गड़करी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिला बल्कि सही शब्दों में लिखूँ तो संघ की पूरी कोशिश के बाद भी नहीं मिला।आम आदमी पार्टी ने 2017 में पंजाब विधान सभा चुनाव के आपति उठाई थी ।

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इसके बाद चुनाव आयोग को मजबूरी में एक हेकाथन का ड्रामा करना पड़ा जिसमें उन्होंने सभी को आमंत्रित किया कि कोई भी ई बी एम को हेक करके दिखाए ।चुनाव आयोग के द्वारा इसके लिए बड़ी शानदार शर्ते रखी थी , आपको ई बी एम हेक करनी है लेकिन उसे छुए बिना।अब आप ही बताइए ईं वी एम को कोई आँख के इशारे से कैसे सेट करे ?? इस शर्त के चलते कोई उसे हेक नहीं कर पाया और ई बी एम पाक साफ़ घोषित हो गयी ।
सुप्रीम कोर्ट ने हर ई वी एन में वी वी पैड लगवाने का आदेश दे दिया।अब वीवी पैड से पर्ची तो निकलती है लेकिन गिनी नहीं जाती थी ।फिर कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट गए तो सुप्रीम कोर्ट ने हर विधान सभा में रैंडम तरीक़े से कम से कम पाँच बूथ की वीवी पैड की पर्चियों का ई वी एम से मिलान का आदेश दिया जिसका किसी भी चुनाव की गिनती में या तो मिलान नहीं होता या फिर मिलान अंत में होता है , तब सरकार बन जाती है और प्रत्याशी अधिकारियों के दबाव में आ जाता है ।

2019 के चुनाव में 370 से ज़्यादा लोकसभा सीट पर पड़े गए वोट और गिने गए वोट मैच नहीं हुए । हंगामा भी हुआ।चुनाव आयोग ने अपने साइट से पड़े गए वोट की इन्फ़र्मेशन ही हटा दी । बदायूँ लोकसभा सीट पर पड़े गए वोट और गिने गए वोट में 25 हज़ार से ज़्यादा वोट का अंतर था । सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव इसके ख़िलाफ़ हाई कोर्ट गए लेकिन उसके बाद इस केस में क्या हुआ , ना तो किसी को पता है और ना ही धर्मेंद्र यादव ने कभी इसका कोई ज़िक्र किया है ।
अब # ई बी एम का सबसे क्लासिक केस बताता हूँ।अभी कुछ महीने पहले ही महाराष्ट्र विधान सभा के स्पीकर और कांग्रेसी नेता नाना पटोले ने विधान सभा के पटल पर ई बी एम के सम्बंध में एक बिल रखा, जिसमें पास होना था कि महाराष्ट्र के किसी भी चुनाव में ई वी एम का प्रयोग नहीं होगा।बिल पास होने से पहले अगले ही दिन अचानक नाना पटोले को कांग्रेस ने महाराष्ट्र का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया और उन्होंने स्पीकर के पद से इस्तीफ़ा दे दिया।बिल कहाँ ग़ायब हो गया ,यह आज तक नहीं पता चला ।
लगभग हर राजनीतिक दल मानता है कि ई वी एम के चलते निष्पक्ष चुनाव नहीं होते , फिर भी कोई भी राजनीतिक दल इसका खुलकर विरोध नहीं करता।जब आपको ई वी एम पर भरोसा नहीं है , जब आपको लगातार ई बी एम की निगरानी करनी पड़ती है , जब आपको हर चुनाव में ई बी एम के ख़राब होने और कोई भी बटन दबाने पर कमल को वोट जाने की शिकायत मिलती है , जब हर चुनाव में ई बी एम के बक्से कभी भाजपा नेता के होटल में ,कभी भाजपा नेता की गाड़ी में , कभी ट्रक में मिलते हैं , तो फिर राजनीतिक पार्टी ई बी एम से चुनाव लड़ने को तैयार क्यों होते हो ??
मेरी समझ नही आ रहा है कि वो कौन सी शक्ति है जिसके दबाव में हम उस प्रणाली को अपनाए हुए है जो अमेरिका , फ़्रान्स,जापान जैसे विकसित देश तक ई वी एम से मतदान न ही होता है।


सविधानिक चुनाव आयोग आज तक भारत के वयस्क नागरिकों के मताधिकार को सुनिश्चित करने के लिए मतदाता सूची में उनका नाम सुनिश्चित नहीं करा सका है यह संविधानिक व्यवस्था और चुनाव आयोग की चुनाव कराने की संवैधानिक निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाता है?संविधानिक व्यवस्था और संविधान के रक्षक संरक्षक महामहिम राष्ट्रपति महोदय, माननीय सुप्रीम कोर्ट भी देश के सभी व्यस्क नागरिकों के मताधिकार को सुनिश्चित और सुरक्षित करने के लिए मतदाता सूची में उनका नाम सुनिश्चित संरक्षित और सुरक्षित किए जाने के लिए कोई संविधानिक और कानूनी जिम्मेदारी जवाबदेही उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने को आदेश पारित नहीं कर सके हैं, जोकि संविधानिक व्यवस्था संवैधानिक अधिकारी पदाधिकारियों पर,उनकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाता है जबकि सरकार सभी देशवासियों के आधार कार्ड बनने का दावा करती है जिसमें देश के सभी लोगों की उम्र आदि का डाटा सरकार के पास है । चुनाव आयोग सरकार और माननीय सुप्रीम कोर्ट आधार कार्ड से मतदाता सूची को लिंक करके देश के सभी 18 वर्ष के मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में सुनिश्चित करें,मतदाता के मताधिकार,मतदान केंद्र और मतपत्र के द्वारा मत देने के अधिकार उसके मत की वैधानिकता और प्रमाणिकता सुनिश्चित संरक्षित और सुरक्षित कर सकती है?
फिलहाल आप सभी से यह कहते हुए विदा लेते है।
ना ही काहूँ से दोस्ती ना ही काहूँ से बैर । खबरी लाल तो माँगे सबकी खैर )
प्रस्तृति
विनोद तकिया वाला
स्वतंत्र पत्रकार

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