हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है,जिसमें एक उपनयन संस्कार है

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है,जिसमें एक उपनयन संस्कार है

उपनयन संस्कार से बालक के मन में अध्यात्म चेतना जागृत होती है: ज्योतिषाचार्य उमेश पाठक


जेटी न्यूज

डी एन कुशवाहा

रामगढ़वा पूर्वी चंपारण- हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। उनमें एक उपनयन संस्कार है। इस संस्कार से बालक के मन में अध्यात्म चेतना जागृत होती है। उक्त बातें रामगढ़वा के प्रकांड विद्वान एवं जिले के मशहूर ज्योतिषाचार्य उमेश पाठक ने प्रखंड क्षेत्र के अरविंद नगर भटिया गांव निवासी ददन पांडेय के पुत्र व सिमुलतला विद्यालय जमुई के अतिथि शिक्षक आचार्य मुझे मुकेश कुमार पांडेय तथा उनके अनुज एवं सीआरपीएफ के पदाधिकारी लोकेश कुमार पांडे के पुत्रों यश राज, रौनक राज तथा शुभम कुमार पाण्डेय के यज्ञोपवीत संस्कार के शुभ अवसर पर दिनांक 11 अप्रैल 2022 को कही।

उन्होंने कहा कि खासकर ब्राह्मणों में इस संस्कार का अति विशेष महत्व है। कालांतर से इस संस्कार की विधि-पूर्वक निर्वाह किया जा रहा है। इस संस्कार का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। हालांकि, तत्कालीन समय में वर्ण व्यवस्था उपनयन संस्कार से निर्धारित किया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि जब बालक ज्ञान हासिल करने योग्य हो जाए तो उसका सर्वप्रथम उपनयन संस्कार कराना चाहिए। इसके बाद उसे ज्ञान हासिल करने हेतु पाठशाला भेजना चाहिए। प्राचीन समय में जिस बालक का उपनयन संस्कार नहीं होता था उसे मूढ़ श्रेणी में रखा जाता था। जबकि उसकी जाति शूद्र मानी जाती थी। यज्ञाचार्य श्री पाठक ने कहा कि धार्मिक मान्यता के अनुसार मनुष्य का प्रथम जन्म माता के उधर से होता है। जिसमें पूर्व जन्म का संस्कार परिपूर्ण रहता है। यद्यपि दूसरा जन्म उपनयन संस्कार होने के बाद होता है।


उन्होंने कहा कि इस संस्कार में यज्ञ के द्वारा आचार्यों के वैदिक मंत्र ध्वनि से नव तंतुओं में ऊंकार, अग्नि, नाग, सोम, इन्द्र, प्रजापति, वायु, सूर्य तथा विश्व देव ये नौ देवताओं को और तीन धागों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को स्थापित कर गायत्री मंत्र द्वारा सिद्ध कर जनेऊ तैयार होता है। इसलिए यज्ञ के द्वारा प्राप्त ब्रह्म सूत्र को ही यज्ञोपवीत कहा जाता है। कालांतर से इस संस्कार का विशेष महत्व है। हालांकि तत्कालीन समय में वर्ण व्यवस्था उपनयन संस्कार से निर्धारित किया जाता था।श्री पाठक ने कहा कि समाज में वर्ण व्यवस्था व्याप्त है। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रथम स्थान पर ब्राह्मण है, दूसरे पर क्षत्रिय है। जबकि तीसरे पर वैश्य और चौथे पर शूद्र है। इस क्रम में ब्राह्मण बालक का आठवें साल में उपनयन संस्कार होता है, क्षत्रिय बालक का 11 वें साल में होता है। जबकि वैश्य बालक का 15 वें साल में उपनयन संस्कार होता है।

इस संस्कार में बालक जनेऊ धारण करता है, जो धागे से बना होता है। कई ग्रंथों में बालिका के भी उपनयन संस्कार के विधान है। हालांकि, आजीवन ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करने वाली बालिका ही उपनयन संस्कार करा सकती है। बालक 3 तीन धागो से सजी जनेऊ धारण करते हैं। जबकि विवाहित पुरुष 6 धागों से बनी जनेऊ पहनते हैं। इस संस्कार में मंडप सजाया जाता है, मुंडन किया जाता है और बालक को हल्दी भी लगाई जाती है। इसके बाद स्नान कराया जाता है। इसके साथ ही कई अन्य रीति रिवाजों का निर्वहन किया जाता है।

 

मौके पर रघुनाथपुर प्लस टू विद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य रामचरित्र सिंह, पंडित हजारी तिवारी, ब्रजराज पांडे, भारतीय स्टेट बैंक रामगढ़वा के शाखा प्रबंधक चंद्रशेखर कुमार, हरसिद्धि कन्या उच्च विद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य उमाकांत पांडेय, नरकटियागंज में पदस्थापित शिक्षक प्रेमनाथ सिंह, उदय तिवारी, दयानंद त्रिपाठी, गौरीशंकर ओझा, सुरेंद्र सिंह, रेशमा देवी प्लस टू विद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रेमचंद्र सिंह, पत्रकार धर्मेंद्र तिवारी (सुगौली), भाटाहा निवासी रामयश कुशवाहा तथा छोटन पांडेय सहित सैकड़ों की तादाद में अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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