नालंदा खुला विश्वविद्याला में बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर की मनाई गई 131 वीं जयंती

नालंदा खुला विश्वविद्याला में बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर की मनाई गई 131 वीं जयंती

 


जे टी न्यूज़

पटना : आधुनिक समय में बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता विषय पर परिचर्चा आयोजित । बाबासाहेब अन्याय और हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरोधी थे – कुलपति प्रोफेसर के सी सिन्हा। बाबासाहेब की प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी- प्रति कुलपति प्रोफेसर संजय कुमार। नारीवादी दृष्टिकोण के अंतर्गत समान कार्य, समान वेतन, मातृत्व अवकाश,हिन्दू कोड बिल बाबासाहेब की देन -प्रोफेसर भारती एस कुमार

नालंदा खुला विश्वविद्यालय के तत्वावधान में बिस्कोमन टावर में बारहवीं तल पर स्थित हॉल में बीसवीं सदी के महान शिक्षाविद्, लेखक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, राजनीतिक नेता, न्यायविद, बहु-भाषाविद, धर्म दर्शन के विद्वान और एक समाज सुधारक, भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर की 131 वीं जयंती गुरुवार को मनाई गई। सबसे पहले उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रोफेसर के सी सिन्हा और संचालन कुलसचिव डॉ. घनश्याम राय ने की। कुलपति ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर का व्यक्तित्व को मानने में किसी भी विचारधारा को दिक्कत नहीं है। आज के दौर में बाबासाहेब एक सौ तीस करोड़ भारतीयों के आदर्श हैं। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराइयों को दूर करने के लिए संघर्ष किया। वे किसी व्यक्ति के विरोधी नहीं थे।

 

कुलसचिव डॉ घनश्याम राय ने संचालन करते हुए कहा कि महान पुरुष किसी खास जाति, धर्म में जन्म नहीं लेते हैं। वे महलों और झोपड़ियों दोनों में जन्म लेते हैं। कुछ लोग महान पैदा लेते हैं,कुछ लोगों पर महानता थोप दी जाती है, और कुछ लोग महानता को अपने परिश्रम से प्राप्त करते हैं। डॉ भीमराव आंबेडकर न केवल कुटिया में जन्में बल्कि अपने परिश्रम द्वारा उन्होंने महानता को प्राप्त किया। इसीलिए उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हुए सफलता प्राप्त की। उनके कथनी और करनी में अंतर नहीं था। प्रति कुलपति प्रोफेसर संजय कुमार ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि सबको शिक्षा,समानता का अधिकार बाबासाहेब की देन। है।

 

मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता प्रोफेसर भारती एस कुमार ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कहा कि ग्यारहवीं शताब्दी में अलबरूनी ने अपनी रचना ‘तहकीक-ए-हिन्द’ में शुद्रों के प्रति सामाजिक विषमता का उल्लेख किया। शुद्रों को किसतरह बर्बरता झेलनी पड़ती थी उसका वृहद वर्णन तहकीक-ए-हिन्द में है। उन्होंने ‘शुतक’ प्रथा की अवधि की चर्चा करते हुए कहा कि चातुर्वर्ण्य वयवस्था के अंतर्गत ब्राह्मणों के लिए सात दिन, राजपूतों के लिए बारह दिन, वैश्यों के लिए पंद्रह दिन और शुद्रों के लिए तीस दिन निर्धारित था। कामकाजी लोगों को तीस दिनों तक कार्यों से वंचित किया जाता था। उन्होंने सिमन द बुआ,मेरी बॉल स्टोन के पुस्तकों की चर्चा करते हुए कहा कि औरतें पैदा नहीं होती हैं, बनाई जाती हैं। भागलपुर की रूकैया हुसैन सेखावत की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया। बाबासाहेब के बिना आज की समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। बहुविवाह, दत्तक ग्रहण, पिता की संपत्ति में लड़कियों का अधिकार,मातृत्व अवकाश, समान कार्य समान वेतन आदि की चर्चा करते हुए कि बाबासाहेब की असंख्य देन है। बाबासाहेब का प्रभाव असीमित था, असीमित रहेगा।

 

इसके अतिरिक्त चंदन मिश्रा, डॉ कृष्ण कुमार झा, मो.सकील अहमद, सीमा गुप्ता, डॉ अमरेश रंजन ने भी अपने विचार रखते हुए बाबासाहेब को श्रद्वासुमन अर्पित किए। इस अवसर पर एन ओ यू के पर्यावरण विभाग के समन्वयक प्रोफेसर बिहारी सिंह, डॉ संजीत लाल, मुन्ना गुप्ता, मुकेश कुमार, संजय कुमार, राजीव कुमार दूबे, गणेश कुमार, इम्तियाज अहमद, आलोक कुमार, डॉ नवीन प्रसाद, डॉ मीना कुमारी, अर्जुन कुमार, अनामिका पाठक आदि उपस्थित थे। डॉ पल्लवी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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