मंडल के बाद भी व्यवस्था में बहुजन की हिस्सेदारी नगण्यः डाॅ. रामू

जे टी न्यूज/अरुण नारायण

पटना : इस देश पर मुगल काल से लेकर अंग्रेजांे के काल तक ब्राहण शासन में नहीं रहे, लेकिन यहां की सामाजिक और आर्थिक सत्ता उनके ही कब्जे में रही। ये बातें वरिष्ठ लेखक पत्रकार डाॅ. सिद्धार्थ रामू ने पटना के स्थानीय आई.एम.ए हाॅल में कहीं। सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार की पहल पर आयोजित यह कार्यक्रम चैतरफा बढ़ते मनुवादी, सांप्रदायिक हमले व काॅरपोरेट कब्जा के खिलाफ बहुजन दावेदारी सम्मेलन के रूप में आहूत की गई थी।

बिहार सहित कई राज्यों से आये इस सम्मेलन को वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, पूर्व राज्यसभा सदस्य अली अनवर अंसारी, चर्चित पत्रकार अनिल चमड़िया, आंदोलनकारी लक्ष्मण यादव, प्रो. शिवजतन ठाकुर, वाल्मीकि प्रसाद, डाॅ. पी.एन.पी.पाल, जितेंद्र मीणा, सुमित चैहान, बलवंत यादव, राजीव यादव, अयूब राईन, विजय कुमार चैधरी, आईडी पासवान, नवीन प्रजापति, रामानंद पासवान, केदार पासवान, राजेंद्र प्रसाद, और डाॅ विलक्षण रविदास ने भी संबोधित किया।

वक्ताओं ने देशभर में बढ़ते भगवा हमले, आदिवासियों के विस्थापित होने और बहुजन राजनीति के ए टू जेड में तब्दील होने के कारणों पर गहराई से चिंतन मनन किया। डाॅ. सिद्धार्थ रामू बहुजन हिस्सेदारी की वर्तमान हालात पर चर्चा की। उन्होंने सवाल उठाया कि देशव्यापी बहुजन हिस्सेदारी का क्या स्वरूप है, खेती, मकान, दुकान जितने भी क्षेत्र हैं उसमें उनकी कितनी हिस्सेदारी है क्या इन क्षेत्रों में आदिवासी, दलित और पिछड़े शामिल हंै?

अल्पसंख्यक, ईसाइ कहने से बात नहीं बनेगी हमें इन दोनों धार्मिक ईकाइयों में जो दलित बहुजन हैं उनकी बात करनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि इस देश में मेहनतकश की आबादी 80 प्रतिशत है। उन्हांेने कहा कि भारत सरकार को मंडल कमीशन की अनुशंसा के बाद किसी चीज से डर लगता है तो वह है जाति जनगणना का सवाल। क्यांेकि उन्हें भय है कि इससे सब राज पता चल जाएगा इसीलिए वे इसपर कुंडली मारे रहना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि कई बार राजनीतिक आंकड़े महत्वपूर्ण हो जाते हैं। रामू ने वर्तमान सांसद सदस्यों की चर्चा करते हुए बतलाया कि वर्तमान में हमारे 543 संसद सदस्य हैं जिसमें 120 ओबीसी के हैं 86 अनुसूचित जाति के, और 52 अनुसूचित जनजाति के सांसद हैं। बावजूद इसके आंकड़ों का यह परसेंटेज बतलाता है कि संसद में अपर कास्ट सांसद अपनी आबादी से दुगने की संख्या में काबिज हैं। ओबीसी 22 प्रतिशत हैं अपनी आबादी से आधा अनुसूचित जाति उतने ही हैं जितनी उनकी आबादी है।

यह स्थिति हमारे जनतंत्र की उस संस्था की है जो 70 साल अपनी यात्रा पूरी कर चुकी है और जो लोगों के वोट से बनती हैै। नौकरशाही में अपर कास्ट के प्रभुत्व की चर्चा करते हुए सिद्धार्थ ने कहा कि इस देश को नौकरशाह चलाते हैं।

उन्होने माना कि इस देश में ग्रुप ए के पदों पर 67 प्रतिशत सवर्णों का कब्जा है यहां वे अपनी आबादी से चार गुणा ज्यादा की संख्या में काबिज हैं। लगभग ग्रुप बी की भी यही स्थिति है जबकि ग्रुप डी के पदों पर 50 प्रतिशत एस.सी, एस.टी हैं। यह इस देश के बहुजन की वास्तविक स्थिति है 70 साल के इस जनतंत्र में।

कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां सवर्णाें की भागीदारी अधिक न हो़। यह मंडल के बाद का परिदृश्य है। यहां डाॅ. आंबेडकर की कही दो बातें याद करें जब राजनीतिक लोकतंत्र स्थापित हो रहा था तो उन्होंने कहा था कि आर्थिक, सामाजिक समता स्थापित नहीं हुआ तो वह राजनीतिक लोेकतंत्र को निगल जाएगा। पिछड़े वर्ग की चर्चा करते हुए सिद्धार्थ ने कहा कि जमींदारी उन्मूलन के बाद खेती से इस वर्ग में समृद्धि आई थी इसी से राजनीति में उनकी दावेदारी बढ़ी आज हालत यह है कि खेती से जीडीपी में हिस्सेदारी मात्र 14 प्रतिशत रह गई है। इसपर भी मार्केट और बीज के रूप में इनका एक बड़ा हिस्सा कब्जा कर लिया गया है।

यह दुखद है कि बहुजन समाज का मुख्य आधार उसका मध्यवर्ग होता है जो लगातार सिकुड़ता गया है कोई समुदाय प्रधानमंत्री या मंत्री के रूप है तो यह उस समुदाय के विकास का प्रतीक नहीं हो सकता, क्योंकि सामाजिक आर्थिक सत्ता अभी भी इस देश में ब्राहणों के हाथ में है। कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार के रिंकु यादव ने बतलाया कि यह कार्यक्रम ऐसे समय में हो रहा है जब मनुवाद और काॅरपोरेट लूट का बुलडोजर संविधान पर चल रहा है।

उन्होंने कहा कि एक समय था जब सामाजिक न्याय का सवाल केंद्र में होता था लेकिन यह कैसी विडम्बना है कि सामाजिक न्याय का सवाल ही राजनीति से गायब करने की कोशिश जारी है। बहुजन राजनीति की धाराएं परशुराम जयंती तक पहंुच गई हैं। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में बहुजन सवाल को उना या भीमा कारेगांव में किसी राजनीति ने नहीं बहुजन विचारवान लोगांे ने खड़ा किया। उन्होंने माना कि राजनीति सत्ता हासिल होने का यह कतई मतलब नहीं कि आर्थिक सत्ता भी हमारी ही हो।

राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने कहा कि बहुजन दावेदारी के इस सम्मेलन की दो कड़ियां आयोजित हुईं यह इस बात का उदाहरण है कि हमारे लोग अब जाग रहे हैं। हमारे पुरखे इस संकट पर बात करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह विडंबना ही कही जाएगी कि हमारे लोगों ने जिन नेताओं को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया, उनके लिए अपनी शहादतें दीं अफसोस की बात है कि वे भी बहुजन की बात न करके ए टू जेड की बात कर रहे हैं। उन्हांेने कहा कि यह जम्हूरी मुल्क है सबकी बात होनी चाहिए, लेकिन परशुराम की जयंती मनाकर लोग समाज में क्या मैसेज देना चाहते हैं.?

हमारे पुरखे अब्दुल कयूम अंसारी, जगदेव प्रसाद, बीपी मंडल और कर्पूरी ठाकुर ने जो हमको दिया आज मंडल से निकली शक्तियां इन संघर्षोे को ही लिपने पर आमादा हैं। अपनी उपलब्धियों पर हाथ जोड़कर माफी मांग रहे हैं। उन्होंने एक भोजपुरी कहावत सुनाई कि ‘सोना लुटाइल जाए, कोयला पर छापा’।

अली अनवर ने कहा कि हिन्दुओं में जितनी जातियां हैं उतनी ही मुसलमानों में भी। वहां भी बहुजन मुस्लिम जातियां हर जगह हाशिये पर खड़ी हैं। उन्होंने कहा कि आज इन दोनों धर्मोे की इस बहुजन जनता के समन्वय की जरूरत है तभी कोई मुकम्मल संघर्ष हम खड़ा कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि देश नस्लकुशी की तरफ बढ़ रहा है। आज की राजनीति पूरी तरह से पथभ्रष्ट हो गई है। हमें चाहिए कि जो लोेग घर-घर जाकर नफरत बांट रहे हैं वहां हम प्यार और मुहब्बत बांटें। इस मौके पर सभा को इंजीनियर राजेंद्र प्रसाद, विलक्षण रविदास, हरिश्चंद्र आदि वक्ताओं ने भी संबोधित किया।

सभा में मौजूद लोगों में महेंद्र सुमन, इंजीनियर नागेंद्र यादव, सुनील, गौतम आनंद, मीरा यादव, विष्णुदेव मोची, ललित यादव, उत्पल बल्लभ, सूरज यादव, रंजन यादव, मृणाल, सोनम राव आदि मुख्य थे।

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