जे•पी• ऐसी क्रांति चाहते थे जिसमें समग्रता हो:- प्रो० सुरेंद्र प्रताप सिंह, कुलपति (लनामिवि दरभंगा)

जे•पी• ऐसी क्रांति चाहते थे जिसमें समग्रता हो:- प्रो० सुरेंद्र प्रताप सिंह, कुलपति (लनामिवि दरभंगा)
जे टी न्यूज़

दरभंगा : जेपी के राजनीतिक विचारों की समकालीन प्रासंगिकता” विषय पर राजनीति विज्ञान विभाग में आयोजित हुआ एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी। विश्वविद्यालय राजनीति विज्ञान विभाग में जेपी के 121 वीं जन्म जयंती के अवसर पर “जेपी के राजनीतिक विचारों की समकालीन प्रासंगिकता” विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रो० जितेंद्र नारायण की अध्यक्षता में किया गया। माननीय कुलपति महोदय संग आगत अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर सेमिनार का श्रीगणेश किया। सबसे पहले उद्घाटन सत्र में आगत अतिथियों का स्वागत व परिचय विभागाध्यक्ष प्रो० जितेंद्र नारायण ने कराया तत्पश्चात विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि आम आदमी के अधिकार को राजनीति में जेपी ने प्रखरता से समाहित किया है। आधुनिक काल की राजनीति के प्रयोगकर्ता के तौर पर जेपी के विचार जनमानस के मस्तिष्क में आज भी समाया हुआ है l

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति सह मुख्य अतिथि प्रो० सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अपने कर्मयोग से अपने दर्शन को स्थापित किया है।इन्होंने महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के सिद्धांतों को आत्मसात कर आमलोगों के हित में कार्य किया।जनता से जो जुड़ाव गांधी और सुभाष का था वहीं आकर्षक जेपी के व्यक्तित्व में भी जनता को नजर आया।तभी तो इनकी एक आवाज पर किसान, मजदूर और छात्रों ने मिलकर निरंकुश सत्ता को उखाड़ फेंका। वैसे गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि जेपी राजनीतिक दार्शनिक से अधिक एक सामाजिक दार्शनिक अधिक थे। इन्होंने जीवन भर साधारण जन के कल्याण के लिए संघर्ष किया। जेपी राजनीतिक भ्रष्टाचार को सभी सामाजिक समस्याओं की जड़ मानते थे। इसे दूर करने के लिए उन्होंने लोकनीति को राजनीति में स्थापित करने पर बल दिया। जेपी ऐसी क्रांति चाहते थे जिसमें समग्रता हो। जेपी में जनता से जुड़ने की जबरदस्त क्षमता थी। प्रतिकुलपति महोदया प्रो० डॉली सिन्हा ने कही कि देश में अभी भी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और महंगाई है और इसीलिए जेपी के राजनीतिक विचार प्रासंगिक हैं। जेपी के विचार सदैव जीवंत रहेंगे।उनका संपूर्ण क्रांति का उद्देश्य अभी अधूरा है। कुलसचिव प्रो० मुश्ताक अहमद ने कहा कि आजादी के बाद अवाम को अपने साथ जोड़ने का जो प्रयोग जेपी ने किया वो अद्भुत है।वे सबको साथ लेकर चलने के हिमायती थे।आजाद भारत में विचारधाराओं का जो वाद उभरा उसमें नेहरू और लोहिया के बाद सबसे अधिक प्रासंगिक जेपी ही रहे हैं।

फिर भी इनका स्वप्न पूर्ण नहीं हुआ और इसका एकमात्र कारण यह रहा है कि जेपी क्रांति से जो नायक निकले उन्होंने ने इनके सिद्धांतों की बलि चढ़ा दी।आज के नेता अपने वाद को आगे बढ़ाने में लगे है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि उनके विचारों को जिंदा रखा जाए।वर्तमान दौर में भारतीय राजनीति की दशा पर प्रश्न चिह्न लगा हुआ है और इससे निजात जेपी के सिद्धांत दिलाने में सक्षम है।
जेपी को अगर एक लाइन में समझना है तो इस पंक्ति से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है:-
हयात ले के चलो, कायनात ले के चलो।
चलो तो सारे जमाने को साथ ले के चलो।।

विशिष्ट अतिथि के रूप में बेरहामपुर विश्वविद्यालय, ओड़िसा के पूर्व विभागाध्यक्ष सह सेवानिवृत्त शिक्षक प्रो० विष्णु चौधरी ने कहा कि आजादी के बाद की भारतीय राजनीति जेपी के विचारों से प्रभावित रही है और आज भी यह प्रसांगिक बना हुआ है।राजनीति में सुधारों के बारे में जेपी ने मूल्यवान सुझाव दिया।उन्होंने व्यवहारिक समस्याओं के अनुरूप ही राजनीतिक विचारों का प्रतिपादन किया और संपूर्ण क्रांति के जरिए इसे स्थापित करने का भी प्रयास किया है। भ्रष्टाचार और बेरोजगारी दूर कर समाजवाद की धारा में आमलोगों का विकास ही उनका ध्येय रहा है।ग्राम स्वराज, दलविहीन लोकतंत्र, लोकनीति आदि जैसे उनके विचार आज भी अक्षुण्ण है।प्रो चौधरी ने अपने संबोधन में जेपी के संपूर्ण कालखंड को उकेरा।

डॉ० राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या के पूर्व कुलपति सह विशिष्ट अतिथि प्रो० मनोज दीक्षित ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक बिहार का धरती सौभाग्यशाली रहा है जो देश को एक से एक राजनीतिक सपूत दिया। जेपी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं बल्कि अपने आप में राजनीतिक विचारों की क्रांति के रूप में जाने जाते हैं। खासकर के बिहार व यूपी में दशकों से सत्ता पर काबिज जेपी के समाजवादी चेले ही हैं चाहे वो कोई भी दल से हों। विशिष्ट अतिथि के रूप में जय प्रकाश विश्वविद्यालय छपरा के पूर्व विभागाध्यक्ष सह सेवानिवृत्त शिक्षक प्रो० सरोज वर्मा ने कहा कि बिहार की राजनीति पर जेपी साहब का आजतक गहरा असर रहा है। पिछले कई दशकों से जेपी के चेले ही सत्ता के केंद्र बिंदु में पक्ष व विपक्ष के भूमिका में रहे हैं चाहे वो लालू जी, नीतीश जी, सुशील मोदी जी या स्व० राम विलास जी ही क्यों न हो। उन्होंने जेपी आंदोलन के एक-एक तथ्य और बिंदु पर प्रकाश डाला और कहा कि आज शोधार्थियों व छात्रों को जेपी को पढ़ना, जानना, समझना, आत्मसात करना व शोध करना चाहिये ताकि आने वाले जेनरेशन को इसका फायदा मिल सके।

विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान के प्रो० मिहिर भोले ने कहा कि जब-जब अन्याय चरम पर होता है तब-तब एक युग पुरुष का अवतार होता है। उस समय जेपी एक ऐसे अभय नेता के रूप में देश का नेतृत्व किया। जिसका सबसे ज्यादा जरूरत देश को था। जेपी ने बिहार सहित पूरे देश को आपातकाल के विरुद्ध एकजुट किया। उनके आंदोलन का ही असर था कि तत्कालीन सरकार को आपातकाल वापस लेना पड़ा और तुरंत बाद हुए चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान, पटना के सचिव प्रो० आर० के० वर्मा ने कहा कि जेपी सिर्फ एक नेता नहीं बल्कि एक दर्शन थे। उनके विचारों की प्रासंगिकता न्यू इंडिया में अहम था, है और सदैव रहेगा। नये भारत की कल्पना उनके दर्शन के बिना अधूरा साबित होगा। उन्होंने आपातकाल में मानवाधिकार, यातना व प्रताड़ना की लड़ाई लड़ा। जबकि दूसरे तकनीकी सत्र में इतिहास विभाग के प्रो० पी० सी० मिश्रा, डॉ० आमिर अली खान, मिल्लत महाविद्यालय के डॉ० मो० जमशेद आलम, राजनीति विज्ञान विभाग के प्रो० मुकुल बिहारी वर्मा, श्री रघुवीर कुमार रंजन व श्रीमती नीतू कुमारी, छात्र संदीप चौधरी, दीपक झा, सिद्धार्थ कुमार व प्रदीप कुमार सहित दर्जनों शोधार्थियों, छात्र व छात्राओं ने भी अपना पेपर प्रेजेंटेशन किया।

इस दौरान माननीया प्रतिकुलपति महोदया प्रो० डॉली सिन्हा, माननीय कुलसचिव प्रो० मुश्ताक अहमद, आइक्यूएसी समन्वयक प्रो० जिया हैदर, जंतु विज्ञान विभाग के पूर्व शिक्षक प्रो० मो० नेहाल अहमद, भौतिकी विभाग के प्रो० अरुण कुमार सिंह, राष्ट्रीय सेवा योजना समन्वयक प्रो० आनंद प्रकाश गुप्ता, अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० हिमांशु शेखर, शिक्षक डॉ० मशरुर आलम, श्री प्रनतारति भंजन, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो० राजेंद्र साह, पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो० चंद्रभानु प्रसाद सिंह, इंग्लिश विभाग के प्रो० ए० के० बच्चन, प्रो० अखिलेश्वर प्रसाद सिंह, मिल्लत महाविद्यालय, लहेरियासराय, दरभंगा के डॉ० जमशेद आलम, विभागीय शिक्षक श्री रघुवीर कुमार रंजन, श्रीमती नीतू कुमारी सहित विभिन्न विभागों के सैकड़ों शिक्षक, शोधार्थी, छात्र व छात्रा उपस्थित थे। राष्ट्रीय संगोष्ठी में मंच संचालन विश्वविद्यालय के पूर्व सीसीडीसी सह विभागीय शिक्षक प्रो० मुनेश्वर यादव जबकि धन्यवाद ज्ञापन विभागीय शिक्षक प्रो० मुकुल बिहारी वर्मा ने किया। तकनीकी सहयोग आईटी एक्सपर्ट ई० गणेश पासवान ने दिया।

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