इतिहासकार ने कहा- फ़ारसी है अमित शाह का नाम, BJP पहले उसे बदले .
इतिहासकार ने कहा- फ़ारसी है अमित शाह का नाम, BJP पहले उसे बदले
प्रभु राज राव
नई दिल्ली ::-इतिहासकार ने कहा कि फारसी है अमित शाह का नाम ,भारतीय जनता पार्टी पहले उसे बदले .प्रोफेसर हबीब ने कहा,”यहां तक कि गुजरात शब्द का उद्भव फारसी भाषा से हुआ है। पहले इसे ‘गुर्जरात्र’ कहा जाता था। उन्हें इसे भी बदलना चाहिए।”
विभिन्न राज्यों में भाजपा की सरकारों के द्वारा नाम बदलने की कवायद पर जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब ने टिप्पणी की है। हबीब ने कहा है कि पार्टी को पहले उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का नाम बदलना चाहिए। उनका तर्क है ,”उनका उपनाम ‘शाह’ फारसी मूल का है, ये गुजराती शब्द नहीं है।”
बदलना चाहिए गुजरात का भी नाम: टीओआई ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर 87 वर्षीय इरफान हबीब से बातचीत के बाद रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रोफेसर हबीब ने कहा,”यहां तक कि गुजरात शब्द का उद्भव फारसी भाषा से हुआ है। पहले इसे ‘गुर्जरात्र’ कहा जाता था। उन्हें इसे भी बदलना चाहिए।”
नाम बदलना RSS का एजेंडा: प्रोफेसर हबीब ने आरोप लगाते हुए कहा,” भाजपा का नाम बदलने का अभियान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदुत्व नीति पर आधारित है। ये बिल्कुल पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की तरह है, जहां जो भी चीज इस्लामिक नहीं है, उसे हटा दिया जाता है। भाजपा और दक्षिणपंथी समर्थक उन चीजों को बदल देना चाहते हैं जो गैर हिंदू है और खासतौर पर इस्लामिक मूल की हैं।”
आगरा का नाम बदलने की भी मांग: प्रोफेसर हबीब आगरा से भाजपा विधायक जगन प्रसाद गर्ग के उस पत्र पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जो उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखा था। अपने पत्र में विधायक गर्ग ने ताजनगरी आगरा का नाम बदलकर अग्रवन करने का प्रस्ताव रखा था।
विधायक का तर्क है कि ये घर अग्रवाल समुदाय का मूल स्थान है। अग्रवाल महाराजा अग्रसेन के अनुयायी माने जाते हैं।
कोरी कल्पना हैं महाराजा अग्रसेन!: विधायक जगन प्रसाद गर्ग के प्रस्ताव पर प्रोफेसर हबीब ने कहा,”महाराजा अग्रसेन का पूरा इतिहास काल्पनिक है। ये कुछ और नहीं सिर्फ कोरी कल्पना है। दूसरी बात, अग्रवाल समुदाय अपना मूल उद्भव हरियाणा के अग्रोहा से होने का दावा करता है, आगरा से नहीं। इसलिए शहर का नाम बदलने के दोनों ही तर्कों में दम नहीं है।” प्रोफेसर हबीब मानते हैं कि आगरा शब्द सबसे पहले 15वीं शताब्दी के आसपास देखने में आता है। उस वक्त दिल्ली में सिकंदर लोदी का शासन था। उससे पहले इस पूरे इलाके को गंगा-यमुना के बीच का दोआब कहा जाता था।
1883 में पैदा लिया सावरकर जैसे गद्दार के साथ 1857 का नाम जोड़ने से पहले तड़ीपार अध्यक्ष अमित शाह बीजेपी के स्टैंड को ही भूल गया.
*- दिसंबर 18, 2018, में सत्य पाल सिंह ने लोकसभा में बोला कि 1857 का विद्रोह असल मे “पाइका विद्रोह” का बड़ा प्रारूप था.
*- पाइका विद्रोह :* 1817-25 मे ओडिशा में पाइका या सिपाहियों ने ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह किया था.
*- बीजेपी ने इस बात को क्लास 8 की NCERT किताब में भी डलवाया..यानी बीजेपी नही मानती की सिपाही विद्रोह आज़ादी की पहली लड़ाई थी.
*- 1757 का पलाशी युद्ध पहला संग्राम क्यो नही?*
– क्योंकि शहीद नवाब सिराजुद्दौला मुस्लिम थे?
– चलो मुस्लिम छोड़ो हिन्दू पर आते है .
*- 1761 का सन्यासी विद्रोह,* बंगाल में
– इसी से आया था बंकिमचंद्र का आनंदमठ
– वंदेमातरम का जन्म भी सन्यासी विद्रोह से
*- 1760 का पारलाखेमुंडी विद्रोह, ओडिशा*
*- 1799 का पोलिगर विद्रोह,* तमिलनाडु में
*- 1850 का संथाल विद्रोह भी भूल गए?*
*संघी मूर्ख है..सावरकर को भारत का इतिहास पता ही नही था..बस हिंदू मुस्लिम करता था..हर समयकाल में भारत के वीरों ने लड़ाई लड़ी..संघी सावरकर के चक्कर में आजादी के सिपाहियो का अपमान कर रहे है..*
1760 से 1947 तक कि लड़ाई में ब्रिटिश को माफ़ीनामा केवल सावरकर ने लिखा.
एक बार चंद्रशेखर आजाद ने सावरकर से हथियार मांगे ।पुनः लौटाने के शर्त पर ।
सावरकर ने कहा –देश को आजाद कराने के लिये मेरे पास हथियार नहीं है ।हाँ अगर हिन्दू राष्ट्र के लिये काम करोगे तो हथियार दूंगा ।
इस पर आजाद ने कहा कि वह पूरा गद्दार हो चुका है ।(यशपाल के सिंहावलोकन से) ।
हिन्दू महासभा नेता सावरकर 1913 से 1920 के बीच में 6 बार तथा उसकी पत्नि ने 3 बार ब्रिटिश हुकूमत को माफीनामा दिया । इतना ही नहीं अपने भाई को भी आंदोलन से अलग रखने का लिखित बचन दिया था ।
लाला लाजपतराय के हत्यारा ब्रिटिश अफसर जो बम्बे में था ,उसको मारने के लिये आजाद ने टीम बनाई ।जो बम्बे गई ।आजाद ने इस टीम को मदद के लिये सावरकर को चिट्ठी लिखी । उस टीम में दुर्गा भाभी भी थी जिनको एक बच्चा था ।दुर्गा भाभी ने बच्चे को सावरकर के पास छोड़ योजना को अंजाम देने चली गई ।वहाँ गोली चलने से अफरा तफरी की स्थिति में ट्रेन पकड़कर वह इलाहाबाद आ गयी । बच्चे को लाने के लिये एक साथी को सावरकर के पास भेजा तो सावरकर ने संडास (कमाऊ पाखाना)साफ करने वाली मेस्टरनी के यहाँ से बच्चा दिलाया ।इसकी सूचना मिलने पर आजाद आग बबूला हो अपनी माउजर ले गुस्से में तिलमिलाते हुए सावरकर को मारने के लिये बम्बे जाने को तैयार हो गये।लेकिन साथियों के समझाने के बाद शान्त हुए ।
(यशपाल के सिंहावलोकन से)
प्रभुराज नारायण राव
सदस्य बिहार राज्य सचिव मंडल
सी पी आई (एम )