भारतीय संस्कृति की आधारशिला है गीता

मोतिहारी: गीता भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। हिन्दू धर्मग्रंथों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है । इसका प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष (अगहन) माह में शुक्लपक्ष की एकादशी को कुरुक्षेत्र में हुआ था। इस ग्रंथ में अठारह अध्यायों एवं सात सौ श्लोकों में संचित ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए बहुमूल्य है। इसके रचयिता वेदव्यास हैं। गीता में सम्पूर्ण वेदों का सार निहित है। इसकी महत्ता को शब्दों में वर्णन करना असंभव है। यह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविंद से निकली है। गीता में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से धार्मिक सहिष्णुता की भावना प्रस्तुत की गयी है जो भारतीय संस्कृति की एक विशेषता है। उक्त विचार रविवार को स्थानीय महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय में आयोजित गीता जयंती समारोह में वेद विद्यालय के निदेशक एवं सोमनाथ संस्कृत युनिवर्सिटी गुजरात के पूर्व डीन प्रोफेसर देवेन्द्र नाथ पाण्डेय ने व्यक्त किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी शिव प्रसाद साहू ने कहा कि गीता के अनुसार हमें साधारण जीवन के व्यवहार से घृणा नहीं करनी चाहिए अपितु स्वार्थमय इच्छाओं एवं अहंकार को नष्ट करना चाहिए। अहंकार के रहते हुए ज्ञान का उदय नहीं होता,गुरु की कृपा नहीं होती और ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती। वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने गीता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्कृष्ट भावना का परिचायक होने के कारण गीता के उपदेशों को सभी ने स्वीकार किया है,अतः यह किसी सम्प्रदाय विशेष का ग्रंथ नहीं है। अन्य वक्ताओं में विनोद पाण्डेय,जितेन्द्र,राकेश तिवारी,जितेन्द्र त्रिपाठी,सुधीर दत्त पाराशर,रुपेश ओझा,मिथिलेश पाण्डेय आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर वेद विद्यालय के छात्रों द्वारा सामूहिक गीतापाठ किया गया। कार्यक्रम का संचालन रुपेश कुमार ओझा एवं धन्यवाद ज्ञापन राकेश कुमार तिवारी ने किया।
मौके पर राजन पाण्डेय,विकास पाण्डेय,प्रो•पदम ओमर,कुन्दन पाठक,सर्वेश तिवारी,सुधाकर पाण्डेय,कुमारी पूनम,अरुण तिवारी,शैलेन्द्र गिरि,सुजीत मिश्र,व्रज किशोर पाण्डेय,मानस पाण्डेय सहित अन्य लोग मौजूद थे।

जेटी न्यूज़

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