जाति,सम्बंध- संप्रदायवाद हो कभी न उन्नति का आधार सामाजिक,समता को हो आर्थिक आरक्षण का आधार -रवींद्र कुमार रतन

जाति,सम्बंध- संप्रदायवाद हो कभी न उन्नति का आधार सामाजिक,समता को हो आर्थिक आरक्षण का आधार -रवींद्र कुमार रतन
जे टी न्यूज़

वैशाली : देश जब आजाद हुआ था तब की स्थिति और परिस्थिती आज बदली हुई है,समय के अनुसार देश काल और परिस्थितियां बदलती रह्ती है। सम्बिधान निर्माताओं में डा 0राजेन्द्र प्रसाद,डा 0 सच्चिदानंद सिन्हा के साथ- साथ बाबा साहब भीमराव अम्बेदकर भी थे। सब लोगों ने मिल बैठ कर देश की राजनीतिक,समाजिक,आर्थक एवं परिवातिक परिस्थितियों का सजीव और यथार्थ चित्र का पुर्ण रूपेन अध्य्यनमनन और चिंतन कर इस निष्कर्ष पहंचे कि आर्थिक,समाजिक रुप से जो दबे कुचले है ऊन्हे उपर उठा कर बराबरीकादर्जा देने,आर्थिक और सामाजिक रुप से उठाने की व्यवस्था के लिए आरक्षण का प्रावधान लाया जाय। तबसे आर्थिक और सामाजिक रुप से कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए नौकरियों,और विभिन्न शिक्षण संस्थानों मेआरक्षण का सम्बैधनीक प्रावधान लागू हुआ । मगर उसका हश्र क्या हुआ। बड़ी मछलिया छोटीमछ्लीयों को खाने लागी।जो आरक्षण का लाभ पाकर आर्थिक और शैक्षणिक रुप से सुदृढ हो गए वे ही , उनका परिवार ही आज आजादी के इतने दिनों बाद भी आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।जो दबे कुचले रह गए वो आज भी लाभान्वित नही हो पा रहे है मोची आज भी।मोची बना सडको पर जुता सी रहा है और जो लाभ ले लिए उनका पुस्त दर्पुस्त राज निति से लेकर सरकारी नौकरियों तक में लाभान्वित होते चले जा राजे है। जो वंचित रह गए आज भी सड़क पर ही है चाहे वे मोची हो सुप- दौड़ा बनने वाला हो, कपडा साफ करने वाला हो आज उपर उठ नहीं पा रहा है ।नियम सूधार लाने की जरुरत है।नियमो का अवलोकन कर पुनर्विचार करने की जरुरत है ।तभी समाज में एक रुपता आयेगी। वरना बड़ी मछली छोटी मछ्ली का हक इसी तरह खाता रहेगा। सरकार से जादा आरक्षण से लाभान्वित होने वाले लोगों की नैतिक जिम्मेवारी बनती हैं कि वे आरक्षण को छोड़ समान्य कोटि में आने को स्वीकारें ताकि बाकी दबे कुचले भी आर्थिक,समाजिक रुप से सुदृढ हो समान्य हो सके । जहाँ गरीबी की चक्की में पिसते हाय करोडॉ है जन। वहाँ जाति-धर्म के नाम पर दिया जा रहाक्यों आरक्षण। आरक्षण का लाभ कभी क्या मिल पाता है अधिकारी को। वेचारा निर्धन वेवस है धिक-धिक ऐसी लाचारी को।

सरकार को आजादी के 75 वर्ष गुजर जाने के बद भी तो सोचना चहिय्रे कि आरक्षण का सही आधिकारी कौन? जो 75 वर्षों से राजनीति मे सांसद,विधायक,विधान पार्षद रह कर राजनीतिक , समाजिक एव आर्थिक रुप से सुदृढ हो चुके हैं वे,या75 वर्षों से सरकारी ,गैर सरकारी
नौकारियों मे रहकर स्थिति सुधार चिके है वे या आजादी के 75 वर्षीं के बाद भी दबा ही हुया है,शोषित है उसे? इसका निर्णय कोन करेगा? वोट की राजनीति के कारण राजनीतिज्ञ तो अपने गले मे स्वयं घंटी बान्ंध नही सकते। हमें स्वय अपने आप में जागृति लाने की जरुरत है।
‘कब तक सब चुपचाप सहोगे
कब पीड़ा चिन्गारी होगी ?
सदियों से शोषित समाज के
शासन की कब बारी होगी ?’
सरकार तो बहुत करेगी तो भूखे पीडितो केआगे 5 किलो चावल या 5 किलो गेहूं दे कर अपने जबाब देही को पुर्ण बताती है।उन्हे भिख नही,शिक्षा और रोजगार चाहिए।महान भाजपा नेता अटल विहरी बाजपेयी जी ने कहा था ‘ जनता को कुछ भी मुफ्त मत दो, केवल शिक्षा,न्याय और इलाज ही मुफ्त में मिलना चाहिए,मुफ्त खोरी लोगों को गैर जिम्मेदार और देश को कमजोर बनाती है ‘ श्री लाल कृष्णआडवाणी को कहना पड़ा कि ‘ राजनीति तर्क नहीं,विश्वसनीयता से चलती हैं जो जनता नेताओं को चुनती है उसके भरोसे पर उतरना सबसे जरुरी है ‘।
आज जरुरत इस बात की है कि जो दबा है ,शोषित है समाजिक आर्थिक रुप से पिछड़ा है उसे जाति नहीं आर्थिक आधार पर आरक्षण का लाभ मिलने की व्यबस्था होनी चाहिए।जब समाज मे आर्थिक,समाजिक गैर बराबरी समाप्त हो जाय तो आरक्षण का लाभ बँद होना चाहिए
अन्त में हम यही कह कर अपनी कलम को विराम देंगे कि थोड़ा लिखना अधिक समझना,चिट्ठी को चिट्ठी नहीं तार समझ्ना ।
‘मिले सभी को एक तरह की
समता का सुन्दर अधिकार।
जाति-धर्म की मिटे भावना ,
सदाचार का हो व्यवहार ।

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