श्रीमद्भागवत” कथा हमारी व्यथा को मिटाती है: आचार्य प्रभाकर शुक्ल

श्रीमद्भागवत” कथा हमारी व्यथा को मिटाती है: आचार्य प्रभाकर शुक्ल (गरूजी)
जेटी न्यूज

डी एन कुशवाहा

गोवा/बेतिया – “श्रीमद्भागवत” कथा हमारे विचारों को शुद्ध करती है, सात्विक बनाती है एवं परमात्मा का दर्शन कराती है। उक्त बातें दबोलिम गोवा में चल रहे कथा के दौरान आचार्य प्रभाकर शुक्ल गुरूजी ने कही। जिसे सुनकर श्रोता आत्मविभोर हो गये। आचार्य श्री ने कथा के अन्तर्गत राष्ट्र की व्यथा भी सुनाई। उन्होंने कहा कि वैदिक विश्व वांग्मय का सर्वश्रेष्ठतम ग्रन्थ “श्रीमद्भागवत” है। “श्रीमद्भागवत” की प्राचीन विद्वान से लेकर अबतक सबने इसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की है ! कइयों ने तो यहां तक भी कह दिया कि जिसने “श्रीमद्भागवत” का आश्रय ले लिया, उसे अब अन्य किसी आश्रय की आवश्कयता नहीं है। क्योंकि- यह केवल ग्रन्थ नहीं है-अपितु
साक्षात-सचेतन-साकार-श्रीकृष्ण का “वाङ्मय” शब्द “मूर्ति” व सचल विग्रह है। (तेनेयं वंगमयी मूर्ति : प्रत्यक्षा वर्तते हरे:) असार संसार में विषय विष की आसक्ति के कारण व्याकुल निन्दित कुपथ में भटक रहे जीवों के लिए यह #अमृत संजीवनी है। इस अमृत का एक कण भी यदि कर्णगह्वरों में प्रवेश कर गया तो जीव वैकुंठ का स्वामी बन जाता है। ( कण्ठे सम्बधते येन स वैकुंठप्रभुर्भवेत)
उस जीव का पुनर्जन्म नहीं होता है। वैकुंठ में सदा सर्वदा के लिए स्थायी हो जाता है।( पितश्च ते गर्भ गता न भूयः) आचार्य श्री ने कहा कि जीवन अल्प है, हजारों ग्रन्थ, पुराण व इतिहास है। सबका सेवन सर्वदा सम्भव नहीं है, यदि केवल श्रीमद्भागवत का सेवन आस्वादन / रसास्वादन कर लिया जाए तो अन्य की कोई आवश्कयता नहीं है।(एकं भागवतं शास्त्रं मुक्ति दानेन गर्जति).।(जन्मकोटीकृतं पापं नश्यते नात्र संशय)..हजारों अश्वमेध सैकड़ो वाजपेय यज्ञ गंगा, गया, पुष्कर, वाराणसी प्रयाग इस कथा के सोलहवें अंश के बराबर नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस घर मे श्रीमद्भागवत प्रतिष्ठित है। वह घर तीर्थ रूप हो जाता है। जो लोग उसमें निवास करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
“अन्तकाले तु ऐनेव शुयते शुकशास्त्रवाक”


जो जीव अंतसमय में भागवतं का एक श्लोक / श्लोक पाद अर्ध भी यदि सुन लेता है तो उसके लिए स्वम् वैकुंठ नाथ वैकुंठ में आसन लगाते है। इसलिए-सदा सर्वदा भागवत कथा सुनें। भागवत सुनने से श्री हरि: चित में चिपक जाते है।( हृश्चित्तम समाश्रयेत)
कलिमलमथनी, पापतापसन्ताप निवारिणी,भवभयभंजिनी,त्रिताप संहारिणी, जन्ममृत्युबन्धन विषय विलास विमोह विनाशनी, शोक मोह आधी व्याधि हारिणी। विमल विवेक विराग विकाशनी भगवतत्त्व रहस्य प्रकाशिनि #श्रीमद्भागवत” जी को जो साष्टांग प्रणाम करता है। वह गोविंद के अतिसय निकट हो जाता है। उन्होंने कहा कि
हम न केवल कथा सुनें बल्कि कथा के माध्यम से जीवन की, राष्ट्र की व्यथा भी सुनें ! जिससे हम राष्ट्र की सेवा कर सकें ! आधुनिकता हमारी संस्कृति को नष्ट कर रही है। इस स्थिति में हमें बहुत सावधानी पूर्वक अपनी संस्कृति संस्कार की रक्षा करनी चाहिए। हम कहीं भी रहें किन्तु हमारा संस्कार हमारे आचरण में होनी चाहिए। निर्माणों के पावन युग में हम अपना कर्तव्य न भूलें-,
स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूलें..। उन्होंने कहा कि आयोजन में मुख्य रूप से- सुभाष सिंह, गंगा नारायण सिंह, अंजू शर्मा, जयकांत जी , मोनिका शर्मा, रितेश जी तथा प्रवीण चौधरी सहित गोवा शहर के अनेक प्रतिष्ठित श्रद्धालु गण उपस्थित रहें।

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