*देश के विकास की एक झलक*

*देश के विकास की एक झलक*

भारतीय ही भारतीयता को कलंक होगा,
प्रकट निहार मत अब लगता उदास है।

जाने कौन सभ्यता ने पा लिया प्रकाश यहां,
अपनों के द्वारा अपना ही उपहास है।

सरकारी बंगलों में राजस्वी ठाट मिले,
टूटे झोपड़े में ही गरीबों का निवास है।

बड़ा हो या छोटा नेता महंगी कारों में बैठे,
सरेआम रोड मिले रोज नई लाश है।

देश में गरीबी और भुखमरी आज भी है,
पूजीपति बोलते हैं धन बे शुमार है।

दया धर्म ममता के भाव अब विलुप्त हुए,
बातों मै दिखाई देता कोरा परिहास है।

गैस,डीजल,पेट्रोल का भाव आसमान चढ़ा,
अन्नदाता से छींनी एक- एक सांस है।

देश के संचालक ही पथ से पतित हुए,
काटो देशवासी फिर राम का वनवास है।

पानी पीने को जहां ‘अवनि’ न हो लोगों को,
किस हौंसले से कह दूं देश में विकास है।।
✍🏻 *अंशु छौंकर ‘अवनि’*🙏🏻
*आगरा( उत्तर प्रदेश)*

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