सामाजिक आईना

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जे टी न्यूज


इसकी प्रारंभिक बिंदु तो मुझे स्पष्ट तौर पर नहीं मिल रही है पर मैं एक बच्चे के जन्म से प्रारंभ करना चाहता हूं।

बच्चे के जन्म के बाद घर में एक पार्टी रखी जाती है, अलग-अलग जगहों पर इसके अलग-अलग नाम होते है, कहीं इसका सांस्कृतिक नाम होगा तो कहीं आपको वाणिज्यिक नाम देखने को मिलेगा, हम गांव में इसे छठी कहते हैं जो अक्सर 6 दिन के बाद किया जाता है

जच्चे- बच्चे की स्वास्थ्य संबंधित चिंताओं के साथ आपको छठी की चिंता करना प्रारंभ करना होगा, इसके लिए आपको 2 दिन पहले से ही घर में बड़े और बच्चों के साथ मिलकर आपको तैयारी के लिए सूची बनानी होगी, की व्यवस्था कैसी होगी, कितना खर्च होगा यह आपकी बजट पर निर्भर नहीं करेगा बल्कि आपकी समाज में स्टेट्स पर निर्भर करता है, अगर पैसे नहीं है तो भी आपको कर्ज लेकर आपको पार्टी बड़ी करनी होगी, पैसे ज्यादा खर्चा करने

नाश्ते में दो मीठा से कम में काम नहीं चलेगा, 2 नमकीन और फल मिलाकर नाश्ता का बजट मिडिल क्लास में 40 ₹50 का तो होना ही चाहिए।

नाश्ता का डब्बा सिर्फ उनको मिलेगा जो दिन को आएंगे , रात मे आने वालो को सीधे पार्टी के भोजन में लगा देना रहेगा और कितने डिब्बे बनेंगे,, यह गिनती पहले ही निमंत्रण के साथ हो जाती है और हां बच्चों की भी गिनती इसमें पूरी पूरी होती है।

पार्टी में किसको किसको बुलाना है, इसकी सूची बनेगी फिर उन लोगों को फोन किया जाएगा। अगर उनकी पत्नी है तो उनको अलग से फोन कर दिया जाएगा।

और यह सिर्फ 1 लोगों के बोलने से नहीं होगा, आपकी पत्नी है तो उनकी पत्नी को ही बोलेगी तभी आएगी, अगर आप उनकी पत्नी को बोल भी देंगे तो नहीं आएगी क्योंकि यहां पर इगो प्रॉब्लम चला आएगा।

नानी घर से शुरू करते हैं, अलग-अलग मामा को अलग-अलग फोन करना पड़ेगा, अगर उनके बच्चे बड़े हैं तो उनको भी अलग से फोन करना पड़ेगा और हमारी मां या पत्नी मामी को कॉल करके बोलेगी और दो बार रिक्वेस्ट करना बनता ही है, खास करके वैसे लोग जो शहर में रहते हैं, वह तो यह भी पहले पूछ लेंगे कि बिजली का व्यवस्था वहां कैसा है तभी वहां से वह आएंगे।

यह सिस्टम मौसी घर में और बुआ घर में भी लागू रहेगा,,,,

अरे अरे रुकिए साहब, मैं तो भूल ही गया, ससुराल वालों को फोन करना है नहीं तो पत्नी मुंह फुला कर बैठ जाएगी, बोलेगी हां हां, आपके सारे रिश्तेदारों को तो याद रहता है, बस मेरे ही परिवार वाले आप भूल जाते हैं, अब मुझे एक-एक करके सब को फोन करना पड़ेगा।

अगर उनके बच्चों की शादी हो गई या उनकी बेटी की शादी हो गई तो उनको भी फोन करना पड़ेगा और हां हमारी पत्नी फोन करके उनकी बहू को बोलेगी, तभी आएगी और हमारी मां को भी बोलना पड़ेगा, नहीं तो वह नहीं आएगी, यहां भी इगो प्रॉब्लम हो जाएगा, साथ ही उनकी बेटी के पति को कॉल करना पड़ेगा, कभी कभी हो सकता है हमारे पिताजी को उनकी बेटी के ससुर से बात करना पड़ेगा तभी परमिशन मिलेगा यहां आने का,,,आपको इन सब से गुजारना पड़ेगा।

इसमें से अगर कोई आपकी बेटी है तो उन्हें आपको जाकर लाना पड़ेगा। हमारी भाषा में उसे रोकशदी करना कहते हैं।

नाते रिश्तेदार वाले तो पार्टी के एक दिन पहले भी कुछ आ जाते हैं पर गोतिया वाले उन्हें तो घर-घर जाकर कहना पड़ता है, हमारे गांव में उसे आज्ञा और विजय कहते हैं, सुबह एक आदमी हर व्यक्ति के घर जाकर बोलेगा, आज रात का खाना हमारे यहां है, फिर जब खाना बन जाएगा तो फिर जाकर कहना पड़ेगा कि विजय कीजिए खाना बन गया है,,, ये सोचिये गा की फोन पे बोल दे तो फिर बात बिगड़ जायेगी, फिर 10 मिनट इंतजार करना पड़ेगा, वह लोग आएंगे, उसके बाद खाना प्रारंभ होगा, उसमें कुछ लोग बोलेंगे हम बफर सिस्टम में नहीं खाएंगे नीचे बिठा कर खिलाना है तो खिलाइए नहीं तो हम चले जाएंगे। अब समाज की बात है, वेवस्था करके खिलाना पड़ेगा। आपके पास लोग कम है, व्यवस्था कम है, उस से उनको मतलब नहीं है, गोतिया भाई को तो करना ही पड़ेगा, घर वाले भी बोलेंगे गोतिया है कैसे नही करोगे

सोचा था हमारी दादी और मां की तरह आजकल की स्त्रियां भी खाना बना देगी, कुछ पैसे बच जाएंगे पर लोगों ने साफ इंकार कर दिया, बोल दिया मिस्त्री से बनवा लीजिए हम एक काम नहीं करने वाले है, हम तैयार कब होंगे ?
अब खाने में भेज बनेगा या नॉनवेज इस पर माथापच्ची होने के बाद वेज खाना बनेगा तो सब खा लेंगे ऐतराज नही होगा, इसके बाद वेज में भी काफी माथापच्ची करना पड़ा कि लहसुन प्याज रहेगा या उसके बिना रहेगा फिर मसला का सामान ज्यादा लाया और बिना लहसुन प्याज का खाना बनेगा ताकि कुछ लोग यह ना बोले की लहसुन प्याज खाना है इसे नहीं खाएंगे, शुद्ध शाकाहारी ही खाना बनेगा।

यह सब करके आराम हुआ तो कुछ ऑफिस वाले दोस्त आए और कहा मजा नहीं आया, नॉनवेज नहीं खिलाया, यहां तक कम से कम कुछ पीने का व्यवस्था कर देते वह भी नहीं किये घर से घाटा हो गया, पेट्रोल का खर्चा तक नहीं निकाला। कितना कंजूसी में कर लिए अनुज बाबू!

खाने में स्वास्थ्य के लिए अच्छा खाना बनवाना नही होता है क्योंकि इससे तो इज्जत ही नही होगी ज्यादा तेल पकवान वाला ही खाना बनाना होगा ताकि समाज में इज्जत बनी रहे, वरना पार्टी में आए हुए लोग यह मुह पे ही बोल देंगे की यह कोई खाना में खाना हुआ इससे अच्छा खाना तो हमारे घर में रोज बनता है

खाने के बाद गोटिया भाई चले गए, दोस्त चले गए, कुछ और भी लोग भी चले गए, अपने रिश्तेदार वाले रह गए
अब बिजली का क्या कहना बिजली कट गई घर का इनवर्टर भी बैठ गया, लाइट के लिए जो जनरेटर मंगाया था, उसका टाइम खत्म हो गया फिर फोन करके उसको बुलाया बोला, रात भर चलाओ जो पैसा होगा वह देंगे।

10 मिनट की देरी में भी काना-फूसी प्रारंभ हो गया,लोग कहने लगे हमारे बच्चा तो 5 मिनट बिना पंखा का नहीं रह पाता है, हम भी हफ़्ते हुए दोबारा फोन किए बोले जल्दी आ जाओ,ज्यादा पैसे ले लेना और डीजल साथ में लेते आना क्योंकि हमारे गांव में कोई पेट्रोल पंप नहीं है।
सब ठीक हुआ, रात बीत गई सुबह लोग जाने को तैयार थे अब हमारी घरवाली बोली, कैश पैसा दीजिये जाने टाइम सब को देना है
बच्चो को कम से कम 200- 200 हम देंगे और बड़ों को 500 मा देगी
हमने कहा 100-100 दे दो थोड़ा दिक्कत है, पर नहीं मानी बोलिए स्टेटस का बात है,फिर एटीएम जाकर पैसे लाए, फिर दिया तब बात बनी

अब मां ने बोला पहली पहल बार बच्चे आए हैं हमारे घर ,उनके लिए नए कपड़े ले आओ कपड़ा तो देना ही होगा, उनकी मां पिताजी को भी कपड़ा देना होगा खैर महिलाओं का कपड़ा तो हमारे बक्से में है, हम वही दे देंगे और उनके दूल्हे के लिए शर्ट पैंट का कपड़ा लगा देंगे, हां हां वही कपड़ा जो कोई कभी नहीं सिलाता है, एक घर से दूसरे घर सिर्फ घूमते रहता है,वही वाला, मा के बीच मे टोकते हुए बोली कोई बात नहीं, हमको भी किसी ने दिया था।
और साथ मे 500 लगा देंगे

हमने कहा सिर्फ पैसे दे दो और कपड़ा मत दो वरना जिसको देगी, वह भी गाली देगा क्योंकि हम को जिसने दिया था, हम भी मन ही मन में उनको गाली दिए थे यह बात सच है।
मां बीच में ठोकते हुए बोली यह सब नहीं बोलना चाहिए, चुप रहो, हमको देने दो

मा को ₹500 के नोट दिए और मुस्कुराते हुए बाकी लोगों को पैर छूकर प्रणाम करने लगे सब लोग आशीर्वाद देते रहे, उनको घर से बाहर उनके गाड़ी तक छोड़ने गए, हां – हां बीच में कुछ उनके सामान छूट गये तो जाकर पहुंचाया, कुछ के चार्जर कुछ की मिठाइयां छूट गई थी, फिर हाथ जोड़कर बोला, फिर आइएगा, उन्होंने टाटा बाय करते हुए कहा, हम जरूर आएंगे आप भी हमारे घर आइए।

यह कहानी सिर्फ हमारी नहीं है आपकी भी यही कहानी होगी और तीसरे लोग की भी यही कहानी रहती है, यह कहानी सब लोग घर घूमते रहती है, पात्र बदलते रहते हैं, किरदार बदलते रहते हैं पर वास्तविकता यही रहती है लेखक ने माफ़ी भी कलम से लिखते हुए मांगी अगर किन्ही की भावनाएं आहत होती है तो,,,

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