कामरेड रामदेव वर्मा का संपूर्ण जीवन परिचय एवं छह बार के विधायक की कहानी

कामरेड रामदेव वर्मा का संपूर्ण जीवन परिचय एवं छह बार के विधायक की कहानी

जे टी न्यूज़ सौरभ चौधरी


कम्युनिस्ट नेता कामरेड रामदेव वर्मा अब इस दुनिया में नहीं रहे। विधायक रहते हुए उनकी सादगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो कहीं भी अकेले ही चले जाते थे। कुर्ता और धोती उनकी पहचान थी। मंजू वर्मा से शादी के बाद उन्‍होंने चार पहिया से चलना शुरू किया। आज उनके हजारों चाहने वाले विभू‍तिपुर के पतैलिया घाट पहुंचे हुए हैं। कईयों के आंखें नम हैं। इसलिए कि आज उन्‍होंने अपना नेता खो दिया है। रामदेव वर्मा के इलाके के लोगों का कहना है कि यहांं उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए हर आदमी की रामदेव वर्मा ने मदद की होगी।
समस्‍तीपुर : बिहार विधानसभा के समस्तीपुर जिला जिसका विभूतिपुर विधानसभा मॉस्‍को के नाम से जाना जाता है। यह विधानसभा रामदेव वर्मा का है। जहां से वह छह बार के विधायक रहे। कम्युनिस्ट नेता कामरेड रामदेव वर्मा अब इस दुनिया में नहीं रहे। 22 मई 2022 को करीब 10 बजे रात को उन्‍होंने अंतिम सांस ली। लेकिन जनता और इस इलाके के लोगों के आंखों में आंसू है। जो ये बताता है कि अपने नेता के लिए उनके मन में कितना प्‍यार है। लोगों का कहना है कि आज ये प्‍यार और स्‍नेह आज के नेता हासिल नहीं कर सकते जो रामदेव वर्मा ने हासिल किया।

 


जीवट थे राम देव वर्मा, मौत को दी मात
कामरेड रामदेव वर्मा के करीबी कहते हैं उनके जैसा जीवट नेता अब भारतीय राजनीति में कम ही देखने को मिलता है। उनके करीबी और लंबे समय तक उनके साथ वक्‍त गुजारने वालों का कहना है। उनके अंदर मौत को भी हरा देने वाली जीने की इच्‍छा थी। रामदेव वर्मा के साथी रहे अजय कुमार कहते हैं। जब उनकी तबियत पहली बार खराब हुई तो किसी को पता नहीं चला। करीब आठ साल पहले उनकी तबियत ट्रेन में ही खराब हुई। वो किसी से मिलने दिल्‍ली जा रहे थे। उनके साथ कोई नहीं थी। उन्‍हें उनके किसी जानने वाले ने दिल्‍ली के आरएमएल अस्‍पताल में भर्ती कराया।
पूरा जीवन सादगी से भरा
विधायक रहते हुए उनकी सादगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो कहीं भी अकेले ही चले जाते थे। अजय कहते हैं कि आमतौर देखा गया है कि आज कोई एक बार विधायक हो जाता है तो वह नैतिक मूल्‍यों तक को ताख पर रख देता है। लेकिन रामदेव वर्मा हाफ कुर्ता और धोती में ही रहे। जिसे भी परेशानी हुई वो सीधे उनके पास चला आया। उनके पास आने वाले को खाना भी पूछा जाता फिर उसकी समस्‍या का समाधान किया जाता था।


एक बार बीमारी से जूझ कर निकले
उन्‍हें करीब से जानने वालों का कहना जब दिल्‍ली में उनकी तबियत खराब हुई तो वो 30 दिनों तक वेंटिलेटर पर थे। डॉक्‍टरों ने जवा‍ब दे दिया था। लेकिन उनके अंदर जीने की इतनी इच्‍छा थी कि उन्‍होंने मौत को मात दे दिया था। पूरा शरीर सुन्‍न पड़ गया था। सारे अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। अजय कहते हैं कि वो केवल आंख के इशारे से बात किया करते थे। धीरे धीरे उन्‍होंने मौत को मात दिया और बीमारी से जूझ कर निकले। अजय कहते हैं काफी वक्‍त रामदेव वर्मा के साथ बीता है।
कैंसर के बाद भी नहीं छोड़ी थी जीने की इच्‍छा
अजय कहते हैं जब उन्‍हें कैंसर हुआ उसके बाद भी उनके अंदर जीने और लोगों के लिए काम करने की इच्‍छा कम नहीं हुई थी। तो भी वो जीना चाहते थे। अजय कहते हैं कि दो साल पहले उनकी तबियत खराब हुई। बाद में पता चला उन्‍हें लंग कैंसर है। उन्‍होंने कहा अब शायद मैं इस बार इस बीमारी को नहीं हरा पाउंगा। उन्‍होंने बताया कि बीच में दो साल के कोरोना काल की वजह से भी इलाज में दिक्‍कतें आईं। उनके करीबियों का कहना है कि शायद वो इस बीमारी से भी निकल जाते। अगर उनका ठीक तरीके से इलाज संभव हो पाता लेकिन वो आखिर वक्‍त में हार गए थे।
भुजिया और मकई की रोटी थी पसंद
आज रामदेव वर्मा इस दुनिया में नहीं लेकिन उनके चाहने वाले बताते हैं कि उन्‍हें खाने में चालव, दाल भुजिया खाना पसंद था। मकई की रोटी बड़े चाव से खाते थे। उन्‍हें खाने में कम से कम एक भु‍जिया जरूर चाहिए थी। सादा खाना खा कर जनता के काम को लेकर इतना सीरियस थे कि उनके लिए रात-बिरात जैसी चीज नहीं होती थी। इलाके के लोगों के लिए वो परिवार के सदस्‍य की तरह थेl


जीनी हो या मरनी हर वक्‍त में रामदेव वर्मा
किसी के घर में जीनी हो या मरनी रामदेव वर्मा के लिए वो परिवार में आई समस्‍या होती थी। तभी इस कम्‍यूनिट नेता समस्‍तीपुर की विभूतिपुर सीट को मॉस्‍को बना रखा था। विभूतिपुर विधानसभा सीट पर छह बार जीत दर्ज करने वाले रामदेव वर्मा के बारे में बात करते हुए लोग कहते हैं, उन्‍होंने पारिवारिक जीवन में भी खुद को काफी एडजेस्‍ट किया। पत्‍नी मंजू वर्मा और वो बिल्‍कुल एक दूसरे के विपरीत विचारों वाली थीं। लेकिन परिवार के लिए उन्‍होंने सामंजस्‍य स्‍थापित किया।


कामरेड को अंतिम बार लाल सलाम
कामरेड को अंतिम लाल सलाम करने उनके हजारों चाहने वाले विभू‍तिपुर के पतैलिया घाट पहुंचे हुए हैं। कईयों के आंखे नम हैं। इसलिए कि आज उन्‍होंने अपना नेता खो दिया है। उनकी समस्‍याओं का समाधान खो दिया है। परेशानी में खड़ा रहने वाला वो खास उनके बीच नहीं रहा जो उनके परिवार का सदस्‍य था। रामदेव वर्मा के इलाके के लोगों का कहना है कि यहांं उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए हर आदमी की रामदेव वर्मा ने मदद की होगी। लोगों को भीड़ में ये कहते हुए सुना गया कि अब ऐसे नेता पैदा नहीं होते जो छह बार के विधायक होते हुए भी हाफ कुर्ता और धोती में जीवन जनता पर लुटा दें।

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