छठ दिवाली की तरह सम्बद्ध महाविद्यालयों की होली भी रहेगी फीकी, अनुदानित महाविद्यालयों के शिक्षा कर्मियों में मायूसी

छठ दिवाली की तरह सम्बद्ध महाविद्यालयों की होली भी रहेगी फीकी, अनुदानित महाविद्यालयों के शिक्षा कर्मियों में मायूसी
जेटी न्यूज।


समस्तीपुर। बिहार के विभिन्न जिलों में विभिन्न विश्वविद्यालय के अधीन करीब 225 डिग्री महाविद्यालयों के शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारीयों की होली विगत छठ और दिवाली की तरह फीकी गुजरेगी। क्योंकि सरकार द्वारा 2017 से अब तक अनुदान का भुगतान किए जाने को लेकर सरकार की नीयत में पारदर्शिता का अभाव है। साथ ही महाविद्यालय के आंतरिक स्रोत से मासिक मानदेय नहीं दिए जाने के कारण शिक्षकों एवं शिक्षक कर्मचारियों की हालत दयनीय हो गई है जिससे उनमें क्षोभ और आक्रोश व्याप्त है। उक्त बातें अप्पन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आरके राय ने संवाददाता से कही। उन्होंने बताया कि वित्त रहित शिक्षा नीति को समाप्त करने की घोषणा कर सीएम नीतीश कुमार ने तो जम कर वाहवाही लूटी, मगर उनकी नीयत का खुलासा कुछ ही सालों बाद हो सका।

जब शिक्षा विभाग में आनन्द किशोर का प्रवेश हुआ और उन्हें बिहार विद्यालय परीक्षा समिति का अध्यक्ष बनाया गया। जिन्होंने बिना बिहार की वस्तु स्थिति का आकलन किए अपने बेवकूफाना फैसलों से शिक्षा जगत में भूचाल ला दिया और अपने जीवन का सुनहरा समय नई पीढी के निर्माण में बिताने वाले, और अपने अरमानों, और परिवार के सपनों को वित्त रहित शिक्षा की वेदी पर कुर्बान करने वाले शिक्षा कर्मियों को अनिश्चितता की गहरी खाई में फिर से झोंक दिया। परिणाम यह हुआ कि इन कर्मियों केलिए निर्गत किया जाने वाला अनुदान श्री किशोर के जांच की लम्बी और जटिल प्रक्रिया में उलझ गया।

श्री राय ने कहा कि श्री किशोर का हर पत्र अपने पिछले पत्र के प्रावधानों को धता बताता है। ऐसा लगता है मानों वित्त रहित शिक्षा कर्मियों से वे कोई निजी दुश्मनी निकाल रहे हों। बताते चलें कि बिहार के लगभग कॉलेज के मालिक सत्ता एवं विपक्ष के नेता हैं। जिस कारण तमाम नियमों के धज्जियां बताते हुए अध्यक्ष व सेक्रेटरी महाविद्यालय के प्रिंसिपल सहित कर्मचारियों को आंतरिक स्रोत से मानदेय नहीं देते। मानदेय देने की बात तो दूर है अच्छा वर्ताव भी नहीं करते। किसी किसी संस्था के संस्थापक के संबंधी भी अध्यक्ष सचिव और प्राचार्य पर अपना रौब जमाने से पीछे नहीं होते। गौर तलब है कि सरकार या विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसे महाविद्यालय के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने से बचती है। क्योंकि इन महाविद्यालयों के संस्थापक सरकार या विपक्ष के कद्दावर नेता ही हैं।

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