चेहरा चमकाने में प्रधानमंत्री ने 6600 करोड़ से अधिक रुपए क्यों खर्च किए चेहरा चमकाने में विफल रहा गोदी मीडिया

चेहरा चमकाने में प्रधानमंत्री ने 6600 करोड़ से अधिक रुपए क्यों खर्च किए चेहरा चमकाने में विफल रहा गोदी मीडिया
गोदी मीडिया से देश के करदाताओं के पैसे की वसूली करनी चाहिए
जे टी न्यूज़

दिल्ली : यह बात सच है कि केंद्र सरकार ने साल 2014 से ही अपनी सरकार की उपलब्धियों , प्रधानमंत्री की छवि चमकाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए । प्रमुख अखबारों और प्रमुख चैनलों को ही इस अवधि में 6600 करोड़ से अधिक की धनराशि दी गई। महज विज्ञापनों के नाम पर मोटी रकम अभी भी दी जा रही है । औसतन तीन करोड़ रुपए का विज्ञापन रोजाना ही जारी हो रहा है । लेकिन नतीजा टांय टांय फिस्स हो रहा है । सरकार की छवि देश और विदेश दोनों जगह खराब ही पेश हो रही है। लोग इन फर्जी विज्ञापनों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं और सरकार की भारी बदनामी हो रही है । खासकर अडानी के महा घोटाले की कहानी का भंडाफोड़ होने के बाद से गोदी मीडिया पर से लोगों का भरोसा उठ गया है और इसमें आए विज्ञापनों पर कोई भरोसा नहीं करता है । खुद भाजपा के कार्यकर्ता और अंधभक्त भी इन फर्जी विज्ञापनों पर भरोसा नहीं करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ,उनके निकटवर्ती सलाहकार, पीएमओ कार्यालय पुरानी परंपरा के अनुसार लगातार विज्ञापन दे रहा है । गुजराती गैंग को भी लगता है कि विज्ञापन देने से उनको लाभ भी मिलेगा। लेकिन उल्टा हो रहा है। करोड़ों अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी कर्नाटक का चुनाव भाजपा हार गई। इसके चुनाव प्रचार के विज्ञापनों तथा वोटर मैनेजमेंट में ₹30,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए। लेकिन नतीजा शून्य निकला क्योंकि जनता नाराज है और जनता इन फर्जी विज्ञापनों की असली कहानी जानती है। इसलिए इन पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती है।

9 साल में अरबों खरबों रुपए मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर खर्च किए गए लेकिन साहब की छवि पर कोई असर नहीं पड़ा। उनका चेहरा नहीं चमका । सरकार के अंदर के जानकार लोग, मैनेजमेंट करने वाले शुरू से इन विज्ञापनों के विरोधी रहे हैं और उसकी खर्चे को बर्बादी मानते हैं । उनका कहना है कि चुनाव तो सरकार अपने तिकड़म से जीतती है। वोटर लिस्ट से विरोधी वोटों का नाम हटाना ईवीएम की अदला बदली आदि फर्जीवाड़े से जीतती है। ईवीएम के भरोसे जीत होती है। हिंदू मुस्लिम आदि विभाजनकारी हरकतों, अंध भक्तों तथा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, मतगणना में हेराफेरी से जीतती है। फिर ऐसी हालत में हजारों करोड़ रुपए क्यों अखबारों और टेलीविजन चैनलों के बीच बर्बाद किया जाए। आखिरकार यह जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है। विज्ञापनों पर इतना खर्चा करने के बाद भी बंगाल, झारखंड , बिहार, राजस्थान, हिमाचल, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि कई राज्यों का चुनाव भाजपा हार चुकी है । अपने छल प्रपंच ,, तिकड़म, हेराफेरी और सरकारी स्तर पर जबरदस्त धांधली के बल पर वह उत्तर प्रदेश का चुनाव जीती है । यह बात बच्चा बच्चा जानता है। लोकसभा चुनाव 2019 में भी तमाम तरह के छल प्रपंच और कुकर्म से जीता गया था। इनमें अखबार और टीवी की कोई भूमिका नहीं है। इसलिए बीते 9 साल में इनको दिए गए पूरी राशि की वसूली होनी चाहिए । पैसे नहीं देने वालों प्रकाशनों और चैनलों के खिलाफ छापेमारी करके उनको जेल में भेजना चाहिए । यह मांग भाजपा कार्यकर्ताओं के बड़े वर्ग और संघ के स्वयंसेवकों में उठना शुरु हो गया है।

सारे भाजपा समर्थक लोग भी मीडिया को दिए गए पैसे की वसूली चाहते हैं और यह वसूली होनी भी चाहिए, क्योंकि बिना कोई काम के अरबों रुपए का धन राशि का बंदरबांट इन मीडिया चैनल और अखबार मालिकों ने किया है । इन सभी धंधे बाजो, सफेदपोश अपराधियों से पैसा वसूली होनी चाहिए। क्योंकि उन्होंने सरकार की छवि तो नहीं चमकाया अलबत्ता करोड़ों जनता के साथ धोखाधड़ी की । उनको झूठा खबर दिखाई । अफवाहों को खबर बनाकर पेश किया और पैसे देने वाले पाठकों, दर्शकों के साथ गद्दारी की। गद्दारी के जुर्म में इन सभी मालिकों को जेल जाना चाहिए । जेल जाना होगा।

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