आजादी मिली पर कम नहीं हुई महिलाओं की मुश्किलें

आजादी मिली पर कम नहीं हुई महिलाओं की मुश्किलें

शाहाना परवीन

 

देश की आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी क्या हम आज़ाद हुए?
आज़ादी के बाद क्या नारी सुरक्षित हैं ?
क्या हम स्वतंत्र रुप से सांस ले पा रहे हैं?
ऐसे ना जाने कितने प्रश्न आम आदमी के मस्तिष्क में हिचकोले मार रहे होंगे जिनका कोई उत्तर नही मिलता।
हमारे देश भारत को स्वतंत्रता 15 अगस्त 1947 को बड़ी कठिनाईयों के बाद मिली। वीरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश को ब्रिटिश शासको से मुक्त कराया। चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, डॉ माघफुर अहमद अजजी, टीपू सुल्तान, मौलाना मोहम्मद अली जौहर आदि ऐसे अनेक नाम हैं जिन्होने स्वतंत्रता संग्राम में जान की बाज़ी तक लगा दी।
कितने जोश और जुनून के साथ हम सब आज़ादी का जश्न मनाते हैं पर क्या भारत के नागरिक अपने आपको आज़ाद महसूस कर पा रहे हैं?

 


शासको से तो मुक्त हो गया परन्तु हमारे देश के लोगों की सोच अभी तक आज़ाद नहीं हुई ।
यहाँ आए दिन निरंतर होते रहने वाली घटनाएं आम नागरिक को जीने कहाँ दे रही है?
गांवो मे जाकर देखेगें तो वही प्राचीन संकीर्णताएं, मान्यताएं देखने को मिलेगीं। अंधविश्वासों से भरी परम्पराएँ, वही जादू टोना- टोटका आदि सब जो पहले कभी हुआ करता था। वही बाबाओं का चमत्कार, वही लोगों को अंधविश्वास के सहारे लूटना, चुड़ैल का प्रकोप।
इससे भी अधिक आजकल जो मामला सामने आ रहा है वो है जातिवाद का। जिससे ना केवल देश प्रभावित हो रहा है बल्कि समाज में रहने वाले लोगों का जीवन भी तबाह हो चला है। अभी हाल ही में घटित घटना मणिपुर की, जो बेहद शर्मनाक घटना है।
3 मई को मणिपुर में हिंसा शुरू हुई थी और इसके ठीक एक दिन बाद ही दो महिलाओं को बिना वस्त्रों के घुमाया गया था।
जब इस बारे में अधिकारियों से बात हुई तो उनका जवाब था कि जो हिंसा वहाँ हुई है उसी का यह प्रभाव है। भला कोई ऐसा कैसे कर सकता है ?
चाहे कारण कुछ भी रहा हो क्या महिलाऍं कोई पशु हैं जो बिना वस्त्रों के रह सकती हैं?


दूसरी बात संसार में कहीं भी कुछ भी होता है तो दोषी महिलाओं को ही क्यों समझ लिया जाता है? यह घटना कोई पहली नहीं है। इससे पहले भी ऐसी वारदातें कई बार हो चुकी है। एक तरफ देश जाति मज़हब के नाम पर जल रहा है तो दूसरी तरफ स्त्रियों को नंगा किया जा रहा है। देश में
बेरोज़गारी बढ़ गई है, बेरोज़गार लड़का धन कमाने के लिए कुछ भी कांड करने को तैयार हो जाता है। उसे असामाजिक तत्वों द्वारा धन का लालच दिया जाता है और वे इस आग में कूद पड़ता है। आजादी के बाद महिलाओं के लिए देश प्रतिकूल होता जा रहा है।
पहले महिलाएँ घरो की चार दीवारी में रहती थीं।उन्हें शिक्षा का अधिकार नहीं था। फैसले नहीं ले सकती थीं । अपनी इच्छा से विवाह नहीं कर सकती थी। अकेले कहीं भी जाना उनके लिए अच्छा नहीं माना जाता था।
परन्तु आज भी आप देख सकते हैं कि नारी कहाँ स्वतत्रं हुई है?
आज भी नारी को पैर की जूती समझा जाता है। सड़क पर चलती है तो गंदे- गंदे भद्दे शब्दो को सहना पड़ता है।


कम्प्यूटर पर मूवी व रील के माध्यम से नारी शोषण की हज़ारो तस्वीरे हमारे सामने आ जायेगीं। बलात्कार, तेज़ाब फेंकना तो जैसे आम ही हो गया है।
आज भी एक अकेली महिला को “बेचारी” कहकर सम्बोधित किया जाता है। यदि वह विधवा हो जाती है तो उसे मजबूर अबला का नाम दे दिया जाता है। बिना पुरूष के महिला को कोई सम्मान नहीं दिया जाता। किसी से हसकर बात कर लेती है तो चरित्रहीन की श्रेणी में डाल दिया जाता है। नारी तो आज भी परतंत्र ही है। नारी को कब स्वतंत्रता मिलेगी?
इसके अतिरिक्त कन्या भ्रूण हत्या आजकल लोगो का शौक बन चुका है।
आधुनिक समाज में कन्याओं को जन्म देने वाली माँ को अभागन कहकर सम्बोधित किया जाता है। कहीं कहीं पर तो लगातार पुत्रियों को जन्म दिए जाने पर पति द्वारा पत्नी को तलाक भी दे दिया जाता है।
इससे भी भयानक व घिनौना अपराध बलात्कार,, आजकल एक आम अपराध की श्रेणी में आ गया है। प्रतिदिन कोई ना कोई अप्रिय घटना हमे कहीं भी सुनने को मिल जायेगी। निर्भया की दर्दनाक मौत लोग अभी तक नहीं भूले हैं।
अभी कुछ दो दिन पूर्व की रोंगटे खड़ी कर देने वाली घटना सामने आई है।
उत्तर प्रदेश में निर्भया जैसा कांड, स्तब्ध कर देने वाली घटना घटित हुई। एक और घटना की ओर आप सबका ध्यान लिए जाते हैं , गढ़मुक्तेश्वर में 6 साल की बच्ची का पहले अपहरण किया गया था और उसके बाद उसके साथ बहुत बुरी तरह से बलात्कार हुआ था । बच्ची के प्राइवेट पार्ट्स बुरी तरह ज़ख्मी हो चुके थे।
यह स्थिति है जिस देश मे बच्ची भी सुरक्षित नहीं वहाँ हम कैसे स्वतत्रं होने का दावा कर सकते हैं?
परिवार के बाहर ही नहीं परिवार में अपने भी ऐसा ही करते हैं। नारी को सब अपनी निजी सम्पत्ति समझते हैं और उस पर दिल खोलकर अत्याचार करते हैं। नारी शोषण की घटनाएँ तो आज आम बात हो चुकी हैं। नारी को डंडे से मारना, उस पर हाथ उठाना पुरूष गर्व समझता है।
आज भी बेटी से नहीं पूछा जाता कि वह किससे विवाह करना चाहती है? उसकी पसंद नापसंद को कोई मान्यता नहीं मिलती। कहीं कहीं पर खाने के भोजन में भी भेद किया जाता है कि लड़की है तो कम खायेगी और बेटा है तो उसे शक्ति के लिए अधिक भोजन खाने को दिया जायेगा।
मै मानती हूँ आज परिस्थिति काफी हद तक परिवर्तित हो चुकी है परन्तु फिर भी नारी को कोई सम्मान नहीं, कोई अधिकार आज भी नहीं हैं।
इसके अतिरिक्त कुछ मंदिरो मे आज भी नारी के जाने पर मनाई है। मस्जिदों मे भी महिलाओ के प्रवेश पर रोक है। भगवान के घर मे पूजा अर्चना का अधिकार भी नारी को नहीं दिया गया।
यह कैसी स्वतंत्रता है अपने ही घर मे बेबस लाचार मजबूर नारी?
नारी को मासिक धर्म के कारण अपवित्र समझा जाता है । हम पूछते हैं कि यदि नारी में मासिक चक्र की प्रक्रिया समाप्त हो जाये तो क्या जीवन की उत्पति संभव हो पायेगी?m


सोचकर देखो, क्या मासिक धर्म बुरा है?
भ्रष्टाचार का समाज व देश मे बोलबाला है। सच्चाई को समाप्त कर दिया जाता है। झूठ को सिर आँखो पर बैठाया जाता है।
अस्पतालो में मरीजो के शारीरिक अंगो को निकालकर बेच दिया जाता है। बीमारी कुछ होती है आपरेशन किसी और बीमारी का कर देते हैं। मुहँ मांगा पैसा लेते हैं।
बेरोज़गारी से युवको की स्थिति अत्यंत खराब है। युवा वर्ग नौकरी व रोज़गार न मिलने पर आत्महत्या कर रहा है।
महगाँई ने तो सबकी कमर तोड़कर रख दी है। टमाटर के भाव आसमान छू रहे हैं और बाकी सब्ज़ियां भी 80 रूपये किलो से कम नहीं हैं
सोने के भाव देखो आज आसमान को छू रहे हैं। यहाँ खाने को पर्याप्त भोजन नहीं है ऊपर से यह सोने चांदी , आटे, गैस, पैट्रोल के दामों ने तो लोगो की रही सही ताकत ही छीनकर रख दी है।
जिनके पास घर में एक ही कमाने वाला है वह बेचारा क्या करे? कहीं कहीं पर महंगाई के कारण एक समय का भोजन भी बड़ी कठिनाइयों से मिल पाता है।
आज अपने ही देश मे अपनो के हाथो हम सब कठपुतलियों की तरह नचाए जा रहे हैं। हम सब अपनी इच्छानुसार आज भी ढंग से नहीं जी पा रहे
स्कूलो में देख लीजिए फीस के नाम पर अभिभावको को लूटा जा रहा है।
वृद्धाश्रम की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है क्योंकि आजकल वृद्धो को घर परिवार में रखना अपना अपमान समझा जाता है। एक बहू और बेटा माँ पिता को अपने साथ परिवार में नही रखना चाहता।
घरो के स्थान पर फ्लैट आ गए हैं जिन्होनें लोगो के हृदयो को भी फ्लैट की ही तरह छोटा कर दिया है।

शाहाना परवीन”शान”.
मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

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