मीर तकी मीर की शायरी केवल इश्क की दासतान नहीं:-डॉ० नसर डेन्मार्की

मीर तकी मीर की शायरी केवल इश्क की दासतान नहीं:-डॉ० नसर डेन्मार्की


सी०एम० कॉलेज में दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय सेमिनार का समापन
जे टी न्यूज़, दरभंगा: मीर तकी मीर की नज़में और गजले सिर्फ इश्क की दासतान नहीं है बल्कि मूल्यों और नैतिकता के सबक भी पढ़ाते हैं। यह बातें उर्दू के स्थापित लेखक व आलोचक डॉo नसर मल्लिक (डेन्मार्क) ने कहीं। डॉ० मल्लिक स्थानीय सी०एम० कॉलेज, दरभंगा में मीर तकी मीर की तीन सौ वीं जयंती के अवसर पर दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन ऑन लाईन तकनीकी सत्र में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मीर की शायरी को समझने के लिए यह आवश्यक है कि 18वीं सदी के भारत को समझा जाय। उस वक्त जो राजनैतिक उथल-पुथल था और दिल्ली सल्तनत पर नादिर शाही हमले हो रहे थे, मीर उन सभी वारदातों को अपनी शायरी में बाँध रहे थे। डॉ० मल्लिक ने कहा कि मीर की बदौलत उर्दू शायरी ऐतिहासिक सच्चाईयों की प्रमाणिकता बन गई है। प्रो० महमूद काविश (अमेरिका) ने कहा कि मीर की शायरी को दिल और दिल्ली का मरसिया कहा जाता है उसका अर्थ भी यही है कि मीर के समय में दिल्ली पर बार-बार बाहरी आक्रमण हो रहे थे और मीर अपनी आँखों से न सिर्फ दिल्ली की बर्बादी को देख रहे थे बल्कि अपनी रचनाओं में अपने दर्द को भी बयान कर रहे थे।

उर्दू आलोचक डॉ० मुजाहिदुल इस्लाम (लखनउ) ने मीर की शायरी और उनके जीवन पर प्रकाश डाला और यह साबित करने की कोशिश की कि उर्दू साहित्य के इतिहास में मीर एक अमर शायर के तौर पर स्थापित है क्योंकि उनकी शायरी आम बोल चाल की भाषा में है और लोक पीड़ा से भरी पड़ी है। प्रो० इफ्तेखार अहमद ने मीर तकी मीर को उर्दू का एक महान कवि और एक महान मानवतावादि साहित्यकार कहा और मीर की शायरी को नये आयामों से देखने की वकालत की। समापन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानाचार्य प्रो० मुश्ताक अहमद ने कहा कि यह दो दिवसीय सेमिनार मीर तकी मीर जैसे कालजयी कवि के जीवन और दृष्टिकोणों की परत दर परत तहाँ तक पहुंचने में सहायक सिद्ध होगी क्योंकि ऑफलाईन और ऑनलाईन दोनों रूप में तीन तकनीकी सत्रों में 20 से अधिक उर्दू के स्थापित साहित्यकारों और आलोचकों ने पत्र वाचन किए और बड़ी संख्या में देश विदेश के शोधकर्ताओं ने अपनी भागीदारी से इस सेमिनार को जीवनता प्रदान की प्रो० अहमद ने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि उर्दू व फारसी विभाग के शिक्षकों ने इस दो दिवसीय अंर्तराष्ट्रीय सेमिनार को कामयाब बनाने में दिल व जान से मेहनत की जिसका प्रमाण है

कि आज राष्ट्रीय स्तर पर इस सेमिनार की चर्चा हो रही है और बड़ी संख्या में विदेशों के साहित्यकार की भागीदारी से मीर तकी मीर की मकबूलियत का प्रमाण मिलता है। प्रो० अहमद ने कहा कि जितने शोध-पत्र पढ़े गये हैं शीघ्र ही इसेn पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। आज भी बड़ी संख्या में दरभंगा और आस-पास के उर्दू साहित्यकारों और शोधकर्ताओं ने अपनी मौजूदगी से सेमिनार को अंत तक जीवनता प्रदान की!!

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