*74 छात्र आंदोलन और कुछ जे पी अनुयायियों की संकीर्णतावादी सोच*

*74 छात्र आंदोलन और कुछ जे पी अनुयायियों की संकीर्णतावादी सोच*


आलेख प्रभुराज नारायण राव
बिहार छात्र आंदोलन की शुरुआत 16 मार्च 1974 को पश्चिम चम्पारण का जिला मुख्यालय बेतिया में एस एफ आई के प्रदर्शन से हुआ था । यह प्रदर्शन महारानी जानकी कुंवर महाविद्यालय बेतिया से निकलकर पश्चिम चंपारण के तत्कालीन जिला मुख्यालय राज देवढ़ी पर गया। इस प्रदर्शन का मुख्य मांग महंगाई ,बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शिक्षा में आमूल परिवर्तन था। महाविद्यालय से जुलूस निकलने के बाद जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से अपने 2 लाउड स्पीकर तथा 6 बैनरों के सहारे नारा देते हुए आगे बढ़ रहा था।डाक बंगला रोड होते हुए विपिन स्कूल चौक पर जुलूस पहुंचने के बाद कुछ छात्र वहां नजर आए । जो प्रदर्शन के आगे चलने लगे ।उन्हें प्रदर्शन की कतार में शामिल करने का प्रयास एस एफ आई के जिला नेतृत्वकारी साथियों ने किया। लेकिन वह सफल नहीं हो सके। जुलूस अपना नारा देता हुआ उनसे थोड़ी दूरी बनाकर आगे बढ़ रहा था। लगभग 50 की संख्या में यह छात्र थे । जिसमें कुछ दूसरे तत्व भी शामिल हो गए और उनके द्वारा कुछ तोड़फोड़ की कारवाइयां भी की गई ।जिसका एसएफआई के प्रदर्शन से कुछ भी लेना-देना नहीं था । जब जुलूस जनता सिनेमा चौक पर पहुंचा तो कुछ और तत्व आगे की जमात में शामिल गए ।

जिन लोगों से एस एफ आई का प्रदर्शन अपना दूरी बनाए हुए था। जुलूस आगे बढ़ता गया। लेकिन मांग पत्र देने की मंशा रखने वाले एसएफआई के नेतृत्व को सफलता नहीं मिली। क्योंकि पुलिस और अन्य छात्रों के बीच पत्थरबाजी होने लगी और स्वयं तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक रामविलास पासवान द्वारा अपने रिवाल्वर से गोली चलाकर एक छात्र को घटनास्थल पर ही शहीद कर दिया था । उसके बाद गोली चलाने का पुलिस कर्मियों को आदेश दिया ।अब स्थिति बहुत ही भयंकर हो गई थी । हम अपने दोनों लाउड स्पीकर और रिक्शा के साथ अपने साथियों को अलग रखने का प्रयास शुरू कर दिया। यह स्थिति उस प्रदर्शन की थी। जिस पर 44 राउंड गोलियां चलाई गई थी और यह कार्रवाई शाम 6:00 बजे तक चली ।जिसमें 7 प्रदर्शनकारी शहीद हो गए।
अब इस प्रदर्शन के संदर्भ में जितनी भी नकारात्मक बातें शासक वर्ग यानी कांग्रेस की अधिनायक वादी तत्वों द्वारा की जा रही थी ।ठीक उसी तरीके की बातें जेपी सेनानी के अग्रणी भूमिका में रहने वाले श्रीनिवास जी द्वारा भी कहा गया है ।उन्होंने तो अपनी शुरुआत में ही 16 मार्च 74 आंदोलन के बदले ,18 मार्च को पटना से छात्र आंदोलन शुरू होने की बात कही है । क्योंकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोग इस प्रदर्शन में शामिल होना चाहते थे । लेकिन एसएफआई की मजबूत नेतृत्व ने उनको जुलूस में शामिल नहीं होने दिया । मुझे याद है समाजवादी युवजन सभा से जुड़े पंकज भाई भी कॉलेज की दीवार से सटकर प्रदर्शन को देख रहे थे।


श्रीनिवास जी, बेशक पटना में छात्र संगठनों की बैठक हुई थी । जिसमें राज्य स्तर पर एक सहमति बनाकर प्रदर्शन निकालने की बातें हुई । लेकिन जिस तरीके से उस बैठक में विद्यार्थी परिषद के लोग आरएसएस के विचार से प्रेरित होकर जिन चीजों को रखना चाहते थे । सहमति नहीं बनने पर विद्यार्थी परिषद,एस वाई एस के साथ मिलकर पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव तथा महासचिव सुशील कुमार मोदी के दबाव पर छात्र संघर्ष समिति का गठन किया । विद्यार्थी परिषद , समाजवादी युवजन सभा यह दोनों एक साथ काम करने का मन बनाए। जिससे नाराज होकर समाजवादी युवजन सभा का एक घटक (राजनीति प्रसाद) छात्र युवा संघर्ष समिति के साथ जुट गए और अख्तर हुसैन का युवजन सभा का गुट विद्यार्थी परिषद के साथ रह गया। कई छोटे-छोटे संगठन भी साथ में थे।
भारत का छात्र फेडरेशन (एस एफ आई ), डी एस ओ, पी एस यू , डी वाई एफ, समाजवादी युवजन सभा (राजनीति प्रसाद गुट) आदि संगठन ने मिलकर छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन किया।


ए आई एस एफ, एन एस यू आई, ए आई वाई एफ आदि संगठन बिहार राज्य जनवादी छात्र नौजवान संघर्ष मोर्चा के रूप में काम करना शुरू किया था।
इसी तरीके से एक और जे पी सेनानी अरविंद जी ने 16 मार्च के आंदोलन पर लिखा है और उन्होंने तो यह प्रदर्शन किस संगठन द्वारा निकाला गया । इसकी चर्चा तक भी करना उचित नहीं समझा। बल्कि यह बतलाने में नहीं थकते कि पूरा जुलूस हीं असामाजिक और उपद्रवी तत्वों का था। अरविंद जी तो यह भी कह रहे हैं कि मैं शुरुआती दौर से ही उस जुलूस में शामिल था और महाभारत के धृतराष्ट्र की आंखें संजय के समान वे सारी घटनाक्रम इतना तक की समाहरणालय पर सुनील जॉन की शहादत को भी उन्होंने अपनी आंखों से देखा , पेट्रोल पंप तोड़ना और क्या-क्या लूटपाट को गिनने का काम भी करते रहे।


यह प्रदर्शन भारत का छात्र फेडरेशन (एसएफआई) के द्वारा निकाला गया। जिसका नेतृत्व करने वाले एसएफआई के कद्दावर नेतृत्वकारी छात्र नेता प्रभुराज नारायण राव , रामलोचन प्रसाद, नईम बरमकी,सुभाष चंद्र गुप्त,राजेंद्र प्रसाद, तुलसी चौधरी, नंदलाल गद्दी, बीरेंद्र तिवारी आदि छात्र नेता इन्हे नहीं दिखे। पता नहीं अरविंद जी उस प्रदर्शन में कैसे शामिल हो गए । जहां दो-दो माइक पर नारे दिए जा रहे थे । जो महंगाई ,बेरोजगारी, शिक्षा और भ्रष्टाचार आदि के सवालों पर थे । उन नारों में उनकी दिलचस्पी नहीं थी और उस जुलूस का बिहार को गुजरात बनाने जैसे नारों से कोई ताल्लुक नहीं था ।वह अरविंद जी को सुनने को मिला । इतना हीं नहीं उस नारे को प्रदर्शन का मुख्य नारा बताने में यह नहीं अघाते । तो शायद इनके द्वारा ही गढ़ा हुआ कोई नारा तो वह नहीं था। जिसके लिए बड़े बुलंदी से अरविंद जी पूरे प्रदर्शन की दृष्टि को ही समाप्त कर देना चाहते हैं ।


मैं अपने दोनों मित्रों से पूछना चाहता हूं कि 18 मार्च 1974 को पटने के छात्र प्रदर्शन पर गोलियां नहीं चली थी । प्रदर्शनकरियों ने लूटपाट नहीं किए थे। इतना ही नहीं फ्रेजर रोड स्थित होटल राजधानी को आग के हवाले नहीं कर दिया गया था। तो फिर उसे प्रदर्शन का मुख्य विशेषता और मकसद ही समझा जाए। लेकिन आपने बड़ी साफगोई से मजबूर होकर 16 मार्च के बेतिया गोलीकांड से जुड़ने की बात कही है। क्यों इसलिए की आप इस जिला से आते हैं । तो यह तो आपकी मंशा को ही उजागर करता है की बेतिया के उपद्रव आपको नजर आते हैं लेकिन 18 मार्च के पटना के उपद्रव आपको नजर नहीं आते। पता नहीं किस मानसिकता और विचारधारा से आप ताल्लुक रख रहे हैं ।जिसमें मुख्य धारा को समाप्त करके विरोधी धारा के तेवर को जनता के बीच ले जाना चाहते हैं।


बेतिया और पटना गोलीकांड के बाद कर्फ्यू के दौर में भी बेतिया में अनेक नुक्कड़ों पर सभायें की गई । चाहे वह मित्रा चौक हो, बुलाकी सिंह चौक हो, नया बाजार चौक हो या अस्पताल रोड हो । मुझे याद है कि कर्फ्यू के दौर में ही एसएफआई के बिहार राज्य सचिव अख्तर हुसैन बेतिया आए और स्थानीय स्तर पर आंदोलन की कुछ रणनीतियां बनी । 7 और 8 अप्रैल को पटना में बिहार राज्य कमेटी की बैठक में शामिल होने की सूचना दी मैं 7 और 8 अप्रैल की बैठक में भाग लेने के लिए पटना कॉलेज के सामने एनी बेसेंट रोड स्थित कार्यालय में शामिल हुआ । निर्णय लिए गए की पूरे बिहार में अनशन और धारणा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाए जब मैं 9 अप्रैल की सुबह 10:00 बजे ट्रेन से बेतिया पहुंचा । तो देखा कि विपिन स्कूल के सामने छात्र संघर्ष समिति द्वारा अनशन कार्यक्रम चलाया जा रहा है ।जिसमें मुख्य रूप से भाई पंकज , नरेश द्विवेदी तथा अन्य शामिल थे। दूसरे दिन 10 अप्रैल को छात्र युवा संघर्ष समिति द्वारा अस्पताल रोड तथा अवंतिका चौक पर अनशन कार्यक्रम किया गया । प्रति दिन अनशन की संख्या बढ़ने लगा । लाल बाजार चौक, शिकारिया वस्त्रालय चौक, तीन लालटेन चौक ,राज स्कूल चौक, युसूफ मिस्त्री चौक तथा बेतिया शहर में अनेक जगहों पर छात्र युवा संघर्ष समिति का अनशन चलने लगा । इसी बीच बगहा , चनपटिया , सिकटा , मैनाटांड़ ,नरकटियागंज , लौरिया आदि जगहों पर अनशन कार्यक्रम चलने लगा। 18 अप्रैल की संध्या अनशन समाप्ति के बाद शैलेंद्र जी , धीरेंद्र कुमार आदि रिक्शा स्टैंड पर आकर मुझे सूचना दिए कि सुशील कुमार मोदी बेतिया आए हैं। क्रिश्चियन क्वार्टर में उनकी सभा होगी । उसमें आज रात्रि 8:00 बजे एस एफ आई के लोगों को बुलाये हैं । मैं निमंत्रण को स्वीकार किया । एस एफ आई के 17 साथी हमलोग वहां पहुंचे तो मोदी जी का भाषण चल रहा था । हम सब भी बैठ गए। किसी ने मोदी जी को बोला कि एस एफ आई के लोग आ गए हैं। मोदी जी भाषण में बदलाव कर कहने लगे कि पूरे बिहार में एस एफ आई छात्र संघर्ष समिति के अंदर काम कर रहे हैं। आप लोग छात्र युवा संघर्ष समिति के बैनर तले क्यूं अनशन कर रहे हैं। मैं सहन नहीं कर सका और कहा मोदी जी आप झूठ बोल रहे हैं। इतना सुनते हीं विद्यार्थी परिषद के लोग बौखला गए और मुझे बैठ जाने पर दबाव डालने लगे। यह देख हमारे साथी खड़े हो गए और मोदी को बैठने को मजबूर कर मुझे बोलते रहने को कहा।मैने तीनों राज्य स्तरीय छात्र प्लेटफार्म को बतलाया। उन्हें कबूल करना पड़ा। मैंने कहा कि मोदी जी छात्र युवा संघर्ष समिति में एस एफ आई के अलावे डी वाई एफ है । जिसके राज्य सचिव नन्द किशोर शुक्ला हैं।मोदी ने कहा कि वो हमारे अच्छे मित्र हैं । स्टूडेंट रिलीफ कमिटी के अध्यक्ष डा. मधुसूदन चौधरी हैं।मोदी ने कहा कि वे भी हमारे बहुत प्रिय मित्र हैं । इसी तरह सभी संगठनों के नेताओं को अपना करीबी बताया । मैंने कहा लेकिन वे लोग आपके साथ नहीं है। फिर बेतिया जैसे छोटे शहर के छात्रों को गलत बात क्यों बताते हैं। आप बिहार के छात्रों के बड़े नेता हैं।रोज आकाशवाणी और अखबारों में आप छपते हैं। छात्र आप पर बहुत विश्वास करते हैं।


जब मैंने कहा कि मैं बी एन कॉलेज पटना में आपसे मिल चुका हूं ।उस समय एस एफ आई के राज्य मंत्री अख्तर हुसैन ने आपसे परिचय करवाया था कि प्रभुराज जी पश्चिम चम्पारण एस एफ आई के जिला संयोजक हैं। आप मुझसे हाथ मिलाया था ।उन्होंने कहा कि मुझे याद आया।उस समय आपके एक हाथ में गॉगल्स तथा दूसरे हाथ में डायरी था। उस समय आपके हिप्पी कट बाल थे। बेल बेट्स पहने हुए थे । आज आप उजला कुर्ता और पजामा पहने हुए हैं। बेतिया जैसे शहर के छात्रों का आप पर बड़ा नाज है। इसलिए आप झूठ नहीं बोलें।रातों रात यह खबर छात्रों में फैल गई।
दूसरे दिन से छात्रों में मेरा प्रभाव बढ़ गया। सैकड़ों छात्र आकर मुझसे हाथ मिलाते रहे और बोलते रहे कि आपने मोदी जी को पछाड़ दिया। हमारे नेता आप हैं।


इस बीच 1974 छात्र आंदोलन की पहली गिरफ्तारी माकपा की पश्चिम चम्पारण जिला कमिटी के जिला सचिव का . सत्येंद्र नारायण मित्र की गिरफ्तारी 16 मार्च को 9 बजे रात्रि में हुई। फिर दूसरी गिरफ्तारी साम्यवादी चिंतक प्रो. प्रियमंत झा की हुई।दो बार मेरी गिरफ्तारी तथा का. राजकौशल मिश्र , कपीलदेव प्रसाद ,विजयनाथ तिवारी, अनवार अली, सत्यदेव पथिक, भगन महतो, मैनेजर सहनी, के के शुक्ल आदि की गिरफ्तारी हुई।

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