हरिओम ने कूड़ा बीनने वाले सैकड़ों बच्चों को पहुंचाया स्कूल वे कोरी बात नही बुनियादी पाठ पढ़ाते हैं बच्चों को – हेमलता म्हस्के

हरिओम ने कूड़ा बीनने वाले सैकड़ों बच्चों को पहुंचाया स्कूल
वे कोरी बात नही बुनियादी पाठ पढ़ाते हैं बच्चों को – हेमलता म्हस्के

जे टी न्यूज़, मुम्बई : बावा साहब आंबेडकर शिक्षा को मानसिक और शैक्षणिक विकास का हथियार मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा ही एकमात्र ऐसा जरिया है जिससे राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक विकास हासिल कर सकते हैं और सामाजिक गुलामी से भी मुक्ति पा सकते है। बाबा साहब के इस महत्वपूर्ण कथन को पूरी तरह से साकार पंजाब के लुधियाना शहर के हरिओम जिंदल ने कर दिखाया है। पिछले एक दशक में हरिओम जिंदल ने गरीब बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में वह सब करके दिखाया है जो वास्तव में बिरले ही कर पाते हैं। जिंदल अपने महत्वपूर्ण काम के लिए खुद ही अकेले उदाहरण हैं। बहुतों ने बच्चों को पढ़ाने का काम किया है लेकिन हरिओम जिंदल का काम उनकी मौलिक कोशिश का परिणाम है। हरिओम जिंदल ने गरीब बच्चों के लिए जो किया है और जो कर रहे हैं वह शिक्षा क्षेत्र के लिए, बच्चों के लिए और देश को मजबूत बनाने के सपने देखने वालों के लिए न सिर्फ मिसाल है बल्कि सराहनीय है अनुकरणीय है।i उन्होंने बिना किसी सरकारी और गैर सरकारी सहयोग से सिर्फ अपने बलबूते गरीब, अनाथ और बेसहारा बच्चों के जीवन को बदल दिया है। उनमें आत्म सम्मान का भाव जगाया है। पेशे से वकील हरिओम जिंदल ने शहरों में गली गली कूड़ा कचरा बटोरने वाले पांच सौ से अधिक बच्चों को स्कूल का रास्ता दिखाया है। सैकड़ों बच्चों से कचरों की थैली छीन कर उनके हाथों में किताबें थमाई हैं। हरिओम जिंदल ने यह काम दो बच्चों से शुरू किया था और आज उनकी संख्या बढ़ कर पांच सौ से ज्यादा हो गई हैं। पहले एक स्कूल से शुरुआत की थी आज वे इन बच्चों के लिए छह स्कूल चला रहे हैं। वे बच्चों को सिर्फ अक्षर ज्ञान नहीं कराते हैं वे शिक्षा के जरिए बच्चों को आत्म ज्ञान के साथ अ ऐसे व्यवहारिक पहुलुओं से भी परिचित कराते हैं जिससे वे बुद्धि और ज्ञान के मामले कभी किसी के मोहताज नहीं रहे। कम उम्र में ही वे जगत की सच्चाइयों से रूबरू हो जाए। सरकार ,पुलिस, मंत्री , अदालत और जज को भी जान ले। हरिओम ने बहुत सोच विचार कर ऐसे बच्चों की शिक्षा के लिए खुद ही पाठ्यक्रम बनाया है। इस पाठ्यक्रम को बहुत सराहना मिल रही है।

जरूरत है इस पाठ्यक्रम को सभी सरकारी गैर सरकारी स्कूलों में भी लागू करने की। वे बच्चों को ए से एप्पल नही एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ाते हैं। इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वे बच्चों को किस तरह का पाठ पढ़ा रहे हैं। हरिओम जिंदल इस बात के भी उदाहरण है कि जहां लोग सिर्फ और सिर्फ खुद के लिए जीते हैं. वहीं कुछ लोग अपनी जिंदगी दूसरों के लिए कुर्बान कर देते हैं। अपना लाखों का कारोबार छोड़कर जिंदल ने पिछले दस सालों से अपने शैक्षिक ज्ञान के जरिए झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ा रहे हैं।  हरिओम की बस यही कोशिश है कि झुग्गियों के बच्चों की प्रतिभा संसाधनों के अभाव में दम न तोड़े । इसके लिए वो न सिर्फ झुग्गियों में जाते हैं, बल्कि खुद बच्चों के हाथों से कूड़ा छीनकर उन्हें किताबें पकड़ाते हैं।


पंजाब के लुधियाना में 9 जून 1966 में पैदा हुए हरिओम जिंदल का बचपन आम बच्चों की तरह नहीं बीता। पिता सुदर्शन जिंदल पेशे से एक कारोबारी थे। हर पिता की तरह वे अपने बच्चे को एक बेहतर जिंदगी देना चाहते थे, लेकिन कारोबार में नुकसान होने के कारण उन्हें अचानक से फिरोजपुर जाना पड़ा. । इस कारण हरिओम की मैट्रिक स्तर की पढ़ाई गांव में ही हुई.किसी तरह उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और गांव से निकलकर ग्रेजुएशन की शिक्षा के लिए चंडीगढ़ के महाविधालय में दाखिला लिया और जिंदगी में आगे बढ़े। हरिओम बताते हैं कि यह उनके लिए कठिन समय था। परिवार का कारोबार तहस-नहस हो गया था। पिता आर्थिक संकट से जूझ रहे थे। ऐसे में उनके सामने बड़ा सवाल था कि वे परिवार की मदद कैसे करें। इसके लिए उन्होंने शुरुआत में कई छोटी-मोटी नौकरियां की । कम से कम पैसों में खर्च चलाया और आगे चलकर अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग का कारोबार शुरु हुआ। धीरे-धीरे उनके परिवार की हालत सुधरी । सबकुछ पहले जैसा होने लगा था, लेकिन कुछ था जो हरिओम को परेशान कर रहा था. हरिओम कहते हैं, ”मैं अक्सर इस बात को सोचकर परेशान होता था कि मेरे पास तो माता-पिता थे। कुछ कठिनाई थीं, तो मेरे पास पढ़ने के संसाधन भी थे. लेकिन, उन बच्चों का क्या जिनके पास मां-बाप नहीं हैं. वे बच्चे कैसे पढ़ाई करते होंगे, जिनके पास संसाधन नहीं हैं। यही कारण रहा कि मैंने कारोबार छोड़कर 44 साल की उम्र में वकालत की पढ़ाई शुरू कर दी, ताकि झुग्गियों के बच्चों को पढ़ा सकूं और उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक कर सकूं. अब मैं झुग्गियों के बच्चों के लिए छह स्कूल चला पा रहा हूं, जिसमें सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं. इनमें से ज्यादातर वे बच्चे हैं, जो झुग्गियों में कूड़ा बटोरते थे. इन्होंने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा था.

हरिओम जिंदल का काम कुछ अलग इसलिए है कि उन्होंने  एल्फावेट की एक खास किताब ज्ञान के जरिए मजबूती तैयार की है, जिसके जरिए वे बच्चों को ए फार एप्पल नहीं, एडमिनिस्ट्रेशन, बी फार बॉल नहीं बैलेट, सी फार कैट नहीं कंस्टीटयूशन पढ़ाते हैं. हरिओम बताते हैं कि इस तरह पढ़ाने के दो बड़े फायदे हैं. पहला बच्चे शिक्षित होते हैं, दूसरा वे समाज के प्रति जागरूक होते हैं। बच्चों को पता चलता है कि एडमिनिस्ट्रेशन क्या होता है, कंस्टीटयूशन क्या है. हरिओम बच्चों को कंप्यूटर चलाना भी सिखाते हैं। इसके लिए उन्होंने एक कंप्यूटर सेंटर खोल रखा रखा है, जहां झुग्गी के बच्चे फ्री में कंप्यूटर चलाना सीखते हैं. हरिओम का काम अब जमीन पर दिखाई देने लगा है. उनके पढ़ाए बच्चे फार्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं. कई बच्चे अलग-अलग मंचों पर अपनी प्रतिभा के लिए सम्मानित किए जा चुके है। हरिओम जिंदल जिस तरह से पूरी मेहनत से झुग्गी के बच्चों के प्रति समर्पित हैं और काम कर रहे हैं वह बताता है कि अच्छा काम करने के लिए पैसों से अधिक अच्छे मन की ज़रूरत होती है। हरिओम जिंदल को उनके इन कामों के लिए कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।

 

Related Articles

Back to top button