कविता
कविता
शब्दों मे बची है देह
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शब्दों मे
बची है देह
देह में बचे हैं
शब्द
वे जीते हैं
हमारा स्पन्दन
शब्द अनुभव करते हें
हमारा प्यार
उसकी व्याकुलता
और विह्वलता
व्यथा के साथ
चुपचाप.
शब्द
शब्द सुनते हैं हमें
शब्द जानते हैं हमें
हमसे अधिक हमें
वे ही हमारी पहचान है
और हमारा परिचय भी .
शब्द
बोलते हैं हमारे भीतर
बताते हैं
हमारा प्यार
हमारी चाहत
हमारे सपने
हमें ही.
शब्दों मे हम हैं
हममें शब्द है
अपने आगोश में लिए
हुए सुनते हैं हमें
लगातार.
शब्दों के ब्रह्मांड में
हमारी देह है
और देह के सारे सुख
विभेद से परे.
शब्दों के हृदय में
हमारा प्यार है.
जो धड़कता है
हमारे लिए.
शब्द हमसे
अधिक जीते हैं.
हमारे न होने पर भी
हमें बचाये रखने के लिए.
शताब्दियों तलक.
शब्दों मे बची है देह
देह में बचे है शब्द.
Poet Pushpita Awasthi