भारतीय अर्थव्यवस्था के विकसित स्वरूप हेतु कुशल मानवीय प्रबंधन अपरिहार्य: प्रो. एच. के. सिंह
भारतीय अर्थव्यवस्था के विकसित स्वरूप हेतु कुशल मानवीय प्रबंधन अपरिहार्य: प्रो. एच. के. सिंह
जे टी न्यूज़, वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान के सेमिनार कॉम्प्लेक्स में ‘मानव संसाधन की चौड़ाई के कायापलट पर समकालीन युग में ओ.बी. और एच.आर. की गतिशीलता को अपनाना’ विषयक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में भारतीय और वैश्विक दृष्टिकोण से मानव संसाधन प्रबंधन (एच.आर.एम.) के महत्व पर चर्चा की गई। वाणिज्य संकाय के प्रमुख एवं डीन प्रो. एच. के. सिंह ने सम्मेलन की शुरुआत में सभी अतिथियों, संकाय सदस्यों, प्रतिनिधियों और विद्यार्थियों का स्वागत किया। उन्होंने अपने भाषण में समृद्ध भारतीय इतिहास, भारत के निर्माण में सरकार की भूमिका, अवसरों एवं खतरों पर जोर दिया और कहा कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए मानव संसाधन प्रबंधन का प्रभावी कार्यान्वयन अपरिहार्य है। उन्होंने पी.एच.डी. (धैर्य, कड़ी मेहनत एवं समर्पण) के सिद्धांत पर बल देते हुए इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आवश्यक बताया। इसके बाद, उन्होंने अतिथियों को स्मृति चिन्ह एवं बनारसी ब्रोकेड शॉल भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. एस.सी. दास ने प्रो. टी.वी. राव, जिन्हें भारत में मानव संसाधन विकास का जनक माना जाता है, और डॉ. एम.एच. राजा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय कार्मिक प्रबंधन संस्थान, को उनकी बहुमूल्य उपस्थिति के लिए धन्यवाद दिया। प्रो. दास ने सम्मेलन के विषय और मानव संसाधन के महत्व पर प्रकाश डाला और पूर्वी और पश्चिमी देशों के मानव संसाधन प्रथाओं की तुलना की। उन्होंने कहा कि पूर्वी देशों को पश्चिमी देशों से मानव संसाधन प्रथाओं और नीतियों के बारे में सीखने की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने सम्मेलन में 250 प्रस्तुतियों पर भी प्रकाश डाला और बताया कि सात देशों की महिला शोध विद्वानों ने सबसे अधिक शोधपत्र प्रस्तुत किए।
प्रो. टी.वी. राव ने सम्मेलन में उपस्थित विद्वानों को संबोधित करते हुए कहा कि उत्पादकता हमेशा संगठनात्मक माहौल से जुड़ी होती है। उन्होंने ए.आई. के महत्व पर भी चर्चा की, जिसे हमारे जीवन का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन इंसानों की जगह नहीं लिया जा सकता। प्रो. राव ने भारतीय शोधकर्ताओं को अपनी पवित्र ‘भगवत गीता’ से मार्गदर्शन लेने की सलाह दी, ताकि वे अपने शोध कार्य में उच्चतम मानक प्राप्त कर सकें। श्री श्री विश्वविद्यालय, कटक, ओडिशा के पूर्व कुलपति प्रो. अजय कुमार सिंह ने सभी प्रख्यात वक्ताओं, संकाय सदस्यों और प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने जीवन मूल्यों को बदलने में मदद करने वाली पुस्तकों पर चर्चा की और ‘समकालीन युग में ओ.बी. और एच.आर. की गतिशीलता को अपनाना’ पर एक स्लाइड शो प्रस्तुत किया जिसमें विविधता, समानता, समावेशिता, आत्मनिर्भर भारत जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला।
डॉ. एम.एच. राजा, ने एच.आर. प्रथाओं से जुड़ी कहानियाँ साझा करते हुए संगठनात्मक कल्याण पर एच.आर. के महत्व को रेखांकित किया। श्री भागीरथ जालान, जालान एंटरप्राइजेज, वाराणसी के सीईओ ने अपने संगठन में लागू की गई एच.आर. नीतियों और प्रतिधारण उपायों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि कर्मचारियों को उचित अवसर देना और उनकी भलाई के लिए सशक्त नीतियाँ बनाना किसी भी संगठन की सफलता के लिए आवश्यक है। प्रो. आशीष बाजपेयी, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, बीएचयू ने विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय को याद करते हुए श्रोताओं को संबोधित किया और विश्वविद्यालय की संस्कृति और परंपरा की प्रशंसा की। सम्मेलन का समापन डॉ. रामेश्वर एस. तुरे, आईआईएम, काशीपुर के मुख्य सत्र के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने एच.आर. मीट्रिक और एनालिटिक्स के बारे में जानकारी दी और इसके संगठनात्मक निर्णयों में उपयोगिता को बताया।
सम्मेलन में प्रमुख वक्ताओं के रूप में डॉ. सागी मैथ्यू (कर्टिन विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया), प्रो. अमलान भूषण (अध्यक्ष, एमबीआई ग्लोबल लिमिटेड, यूके), प्रो. आलमगीर हुसैन (हाजी मोहम्मद दानेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांग्लादेश), और प्रो. अजय कुमार सिंह (दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रो. आर. एस. मीना ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया और सम्मेलन के सफल आयोजन में उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त किया। यह सम्मेलन मानव संसाधन प्रबंधन के विविध पहलुओं को समझने और इसके भारतीय तथा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रभाव को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण अवसर था।