मछलियां : 2049 तक खत्म हों जायेंगी ?

  • मछलियां : 2049 तक खत्म हों जायेंगी ?

संजय कुमार

समुद्र की मछलियां 2049 तक खत्म हो सकती है? यह आशंका आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध के हवाले से आयी है। इसने पर्यावरणविदों की नींद उड़ा दी है। सवाल तैरने लगा है कि क्या पच्चीस साल बाद मछली बाजार का अस्तित्व बचा रह पायेगा? साथ ही यह भी सवाल खड़ा हो गया है कि क्या समुद्री मछली बाजार के साथ-साथ नदी पोखर की मछलियों का जो अपना बाजार, गली मोहल्ले में है वह भी ख़त्म हो जाएगा ? मछली बाज़ार की बात करें तो भारत में समुद्री और नदी-पोखरों की मछलियों का गाँव-शहरों में व्यापक बाज़ार है।


विशेषज्ञों ने 2049 के बाद मछली भंडार ख़त्म होने की आशंका जताई है। यह निष्कर्ष ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोध के बाद आया है। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, आधुनिक तकनीक की मदद से मछली पकड़ना और समुद्र में बढ़ता प्रदूषण इसके प्रमुख कारण हैं। ऐसे में यह खबर है कि मछली पकड़ने के कारोबार में काफी उतार-चढ़ाव देखने को भी मिल रहा हैं। वहीँ, एक्सपर्ट मार्केट रिसर्च (ईएमआर) की रिपोर्ट को देखें तो उसके अनुसार, भारत का मछली बाजार 2024 और 2032 के बीच 15.7% की सीएजीआर से बढ़ने का अनुमान है। जीवनशैली में बदलाव और स्वस्थ भोजन के रूप में मछली के बारे में बढ़ती जागरूकता से बाजार में तेजी आने की उम्मीद जताई गयी है। 2032 तक उल्लेखनीय वृद्धि होगी। वहीँ, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का शोध कहता है कि 2049 के बाद समुंद्री मछली ख़त्म हो जाएगी? मछली, जो कई भारतीय आहारों में एक अनिवार्य प्रोटीन स्रोत है, न केवल अपने स्वादिष्ट स्वाद के लिए जाना जाता है, बल्कि ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन और आवश्यक खनिजों से भरपूर अपने प्रभावशाली पोषक तत्व के लिए भी पहचान रखता है। भारत के विशाल समुद्र तट मछली उद्योग का पुराना स्रोत रहा है, कई समुन्द्र तटीय समुदाय अपनी प्राथमिक आजीविका के रूप में इस पर निर्भर हैं। लेकिन जो सवाल खड़ा हुआ है वह भारतीय मछली बाजार को भी घेरे में लेगा । आहार में मछली जहाँ लोगों की पसंदीदा होती है वहीँ, सेहत के लिए अहम् होता जा रहा है। बाज़ार समुद्री हो या नदी-पोखर की मछली का , लोगों की पसंद ताज़ी परतदार मछली खरीदने में होती हैं। ताज़ी मछली की कमी के कारण लोग निराश भी हो जाते हैं।


शोध से मछली पकड़ने की वर्तमान पद्धति पर भी सवाल खड़ा हुआ है, विशेषज्ञों ने माना है कि इसकी वजह से भी 2049 तक समुद्री मछलियाँ ख़त्म हो जाएँगी। यदि मछलियाँ कम मात्रा में उपलब्ध हों तो मछली पकड़ने की बात कही जाती है। साथ ही विभिन्न कारक जैसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि और मछली की मांग, मछली पकड़ने के लिए उपयोग की जाने वाली विभिन्न विधियाँ मछली पकड़ने को प्रभावित कर रही हैं।
केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान के आँकड़े सीएमएफआरआई, सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2018 में 3.49 मिलियन मीट्रिक टन, 2019 में 3.56 मिलियन मीट्रिक टन, 2020 में 2.73 मिलियन मीट्रिक टन, 2021 में 3.5 मिलियन मीट्रिक टन और 2022 में 3.49 मिलियन मीट्रिक टन मछली पकड़ी गयी थी । देखा जाये तो कुल मिलाकर, वर्तमान बदलती जलवायु का समुद्र तल में जो कुछ भी हो रहा है उस पर प्रभाव पड़ता है।
मछलियों के खात्में के पीछे जलवायु परिवर्तन और बढ़ता प्रदूषण अहम् कारक हैं । वैसे जलवायु परिवर्तन की चपेट में आज लगभग पूरी दुनिया है। इसने सिर्फ इंसानों को ही अपना निशाना नहीं बनाया है। बल्कि, इसका असर जीवों, पेड़-पौधों, और इकोसिस्टम पर भी पड़ रहा है। अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु में बदलाव के चलते, दुनिया के महासागरों के बड़े हिस्से में मछलियों की आहार गुणवत्ता में 10 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।


शोधकर्ता डॉ रयान हेनेघन ने जूप्लैंक्टन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मॉडल तैयार किया। जूप्लैंक्टन फाइटोप्लांकटन के बीच की शुरुआती कड़ी हैं, जो सूर्य के प्रकाश और पोषक तत्वों को ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं जैसे पौधे जमीन पर करते हैं। जूप्लैंक्टन में अंटार्कटिक क्रिल जैसे समूह शामिल हैं। क्रिल व्हेल और जेलीफिश के लिए भोजन का एक प्रमुख स्रोत है। डॉ हेनेघन ने कहा है कि, फाइटोप्लांकटन से मछली तक ऊर्जा पहुंचाने में उनकी अधिकता, विविधता और महत्व होने के बावजूद, दुनिया के महासागरों में जूप्लैंक्टन समुदायों की संरचना को आकार देने के बारे में जानकरी सीमित है। यह एक चुनौती है, क्योंकि अगर जूप्लैंक्टन जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होते हैं, तो इससे समुद्र की कार्बन उत्सर्जन की क्षमता और मछली पालन की उत्पादकता पर भारी प्रभाव पड़ सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, भविष्य में जलवायु परिवर्तन दुनिया के अधिकांश महासागरों में जूप्लैंक्टन समुदायों की संरचना में बदलाव करेगा। ये बदलाव ज्यादातर जलवायु परिवर्तन के तहत फाइटोप्लांकटन के आकार में कमी के कारण होते हैं। शोधकर्ता ने कहा, मॉडल के परिणाम बताते हैं कि छोटी मछलियों के आहार में बदलाव भविष्य में समुद्र के गर्म होने के कारण अधिक सामान्य हो सकता है।
समुद्र की मछलियों के 2049 तक खत्म होने की संभावनाओं में प्लास्टिक वेस्ट भी एक बड़ा कारण बनता जा रहा है। अनुमान है कि 2040 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक वेस्ट में तीन गुना तक इजाफा हो जाएगा। 2050 तक समुद्र में उतना प्लास्टिक होगा जितनी उसमें मछलियां भी नहीं हैं। यह जानकारी हाल ही में जारी शोध द प्यू चैरिटेबल ट्रस्ट और सिस्टेमिक नामक संस्था द्वारा किया गया है। इसमें एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन, कॉमन सीस, ऑक्सफोर्ड और लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सहयोग किया है। जो शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है। शोध के अनुसार, 2016 में करीब 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में फेंका गया था। यदि दुनिया भर के देश और कंपनियां इसको रोकने में असफल रहती हैं तो यह 2040 तक बढ़कर 2.9 करोड़ टन हो जाएगा। यह दुनिया भर में समुद्र तट के प्रत्येक मीटर पर लगभग 50 किलोग्राम प्लास्टिक के बराबर होगा। चूंकि प्लास्टिक को खत्म होने में कई दशक लग जाते हैं, ऐसे में अनुमान है कि समुद्र में मौजूद कुल प्लास्टिक वेस्ट बढ़कर 60 करोड़ टन के करीब हो जाएगा। इससे पहले ओसियन कन्ज़र्वेंसी नामक संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, हर साल करीब 80 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में फेंका जा रहा है। अनुमान था कि करीब 15 करोड़ टन कचरा समुद्रों में मौजूद है। यह पर्यावरण और समुद्री इकोसिस्टम को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है।


जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का प्रभाव केवल समुन्द्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि नदियों और पोखरों को भी अपने चपेट में लिए हुए है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा और वर्षा के पैटर्न में बदलाव आएगा, जल आपूर्ति में कमी देखेंगे। भयंकर तूफ़ानों में वृद्धि से पानी की गुणवत्ता ख़राब हो जाएगी और विनाशकारी बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाएगा। जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर के साथ वर्षा के समय और स्थान में परिवर्तन से पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव पड़ेगा और कई मछलियों और वन्यजीव प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा होगा। बहरहाल, 2048 तक मछली भंडार ख़त्म हो जाएगा? प्रश्न का उत्तर फिलहाल नकारात्मकता लिए हुए है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और उसके परिणाम चिंताजनक जरुर हैं।बस ज़रूरत है विश्व को आगे आने की और जलवायु परिवर्तन से बचाव की पहल करने की,नहीं तो सिर्फ़ योजनाओं और बातों से काम नहीं चलेगा वरना एक दिन दुनिया ख़त्म हो जायेगी।

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