गंगा, प्रदूषण और आजीविका का संकट

गंगा, प्रदूषण और आजीविका का संकट


जे टी न्यूज़, पटना : भारत वासियो का आध्यात्मिक एवम भौतिक पोषण करने बाली गंगा करीब 40-50 वर्षो से सर्वाधिक बुरेदौर से गुज़र रही है। हमने गंगोत्री से गंगा सागर तक सिर्फ पाप धोने का काम यह मानकर किया कि गंगा मे जल को शुद्ध करने की क्षमता होती है, लेकिन आखिर कोई नदी भला कब तक इतनी गंदगी ढो सकती है ? स्थिति बिगडती चली गई। 1984 के “गंगा एक्शन प्लान” के बाद 2014 मे “नमामी गंगे” जैसी योजनाओ का हस्र हम सभी जानते ही है। पिछले दिनो “नमामी गंगे” को लेकर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने कहा कि बक्सर से भागलपुर के बीच गंगाजल ना नहाने योग्य है और ना ही पीने योग्य। यह स्थिति तब है जब गंगा की स्वच्छता के नाम पर करोडो रुपए बहाए जा चुके है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गंगा और उसकी सहायक नदियो मे रोजाना करोडो लीटर पानी बगैर ट्रीटमेंट के बहाए जा रहे है। इधर बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि गंगा नदी के बिहार मे प्रवाह क्षेत्र (445 किमी) मे मानक से 36 गुणा अधिक फिकल कालीफार्म के जीवाणु मौजूद है। बोर्ड ने गंगाजल की शुद्धता की जांच की। गंगा किनारे शहरो मे जल प्रदूषण की स्थिति गंभीर है। एनजीटी, बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा बीएचयू जैसी संस्थाओ के हालिया खुलासे के बाद यह साबित हो गया अब तक अब तक सरकार के सभी दावे आधारहीन रहे है ।


गंगा मे प्रदूषण बढने के साथ ही कानपुर से आगे समस्याए भी बढ जाती है। नदी के दोनो ओर आर्सेनिक की पट्टी बन गई है। गंगा के कछार मे उगने बाले शाग- शब्जियो को खाने बाले के समक्ष स्वास्थ्य की समस्याए खडी हो रही है। भोजपुर सहित दूसरे इलाको मे कैसर मरिजो की संख्या मे इजाफा हुआ है । भूमि मे ऊसरपन बढ गया है। कहलगांव से सुलतानगंज के बीच डाल्फिन सेंचुरी का ईलाका है। यह मछुआरो का इलाका भी है। जिसमे कभी विभिन्न प्रकार की मछलिया पाई जाती थी। मछुआरे पूरे देश मे कारोबार करते थे। जानकारी के अनुसार इन मछलियो मे अधिकतर प्रजातिया खत्म हो गई है। मछुआरो की जीविका छिन गई है। बीएचयू द्वारा हाल मे किए गए शोध से ज्ञात हुआ कि घातक रसायनो की वजह से गंगा की सहायक वरूणा, अस्सी सहित गंगा मे कई देशी प्रजातिया विलुप्त हो गई है। मछलियो की प्रजनन 80 प्रतिशत तक घट गई है । यह स्थिति अन्य सहायक नदियो मे भी देखी जा सकती है। जलीय जीवो के लिए प्रदूषण खतरनाक है । छोटी नदिया विलुप्त हो रही है और गंगा नदी सीवेज ढोने का माध्यमभर बनकर रह गई है। बिहार के बाद झारखंड एवम बंगाल की खेती चौपट हो रही है। इन इलाको मे विस्थापन, बेरोजगारी, पलायन एव भूमि मे कटाव बढा है। फरक्का बराज की वजह से मछलियो की आवाजाही ही बंद ही नही हुई,बल्कि जगह -जगह रेत के टापू बन गए है। निश्चित रूप से यह देश की सबसे बडी रिवर बेसिन के समक्ष आज सबसे बडी चुनौती है, जहा शताब्दियो से देश की चालीस प्रतिशत आबादी पल्लवित पुष्पित होती रही है। आज इनके अस्तित्व के लिए राज एवम समाज दोनो को समान रुप से सोचना होगा।

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