कश्मीर में रेल की कल्पना सदियों पुरानी

कश्मीर में रेल की कल्पना सदियों पुरानी जे टी न्यूज, दिल्ली: कश्मीर में रेल की कल्पना सन 1892 में डोगरा महाराजाओं के विजन के साथ शुरू हुआ।एक सदी से भी अधिक पुराना यह स्वप्निल परियोजना हमारे भूवैज्ञानिक,स्थला कृतिक और तार्किक चुनौतियों भरा था।यहाँ कि शिवालिक और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से कश्मीर घाटी तक ट्रेन चलाने की एक सदी से भी अधिक पुरानी महत्वाकांक्षी योजना है। सम्पूर्ण विश्व में भारत की पहचान विभिन्नता,विविधता की विशेषताओं से होती है।इसका उदाहरण कश्मीर से कन्या कुमारी तक दी जाती है। तभी तो कश्मीर को भारत माता की मुकुट कहीजाती है।आज फिर कश्मीर की चर्चा चहुँ दिशाओं हो रही है।हो भी क्यूँ नही,यह भारत की विकाश गति गाथा की है।जिनका शुभ शुभारम्भ व शंखनाद करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों को 46000करोड़ रुपये से अधिक विकाश परियोजना ओं की सौगात देने पहुंचे थें।इस अवशर उन्होंने कहा कि यह पवित्र भुमि “वीर जोरावर सिंह जी की है,मैं इस धरती को प्रणाम करता हूँ।माता वैष्णो देवी के आशीर्वाद से आज कश्मीर रेल नेटवर्क से जुड़ गई है।कश्मीर से कन्याकुमारी अब रेलवे नेटवर्क के लिए भी हकीकत बन गया है।आज की हकीकत के पीछे की कहानी पर एक नजर डालते है। आपको बता दे कि कश्मीर में रेल की कल्पना सन1892 में डोगरा महाराजाओं के विजन के साथ शुरू हुआ।एक सदी से भी अधिक पुराना यह स्वप्निल परियोजना हमारे भूवैज्ञानिक,स्थलाकृतिक और तार्किक चुनौतियों भरा था।यहाँ कि शिवालिक और पीर पंजाल पर्वत श्रृंखलाओं के बीच से कश्मीर घाटी तक ट्रेन चलाने की एक सदीयों से भी पुरानी महत्वाकांक्षी परियोजना है।इनमें चिनाब नदी पर एक स्टील आर्च ब्रिज है जिसे भूकंप और हवा की स्थिति को झेलने के लिए डिज़ाइन किया गया है।”पुल का एक प्रमुख प्रभाव जम्मू और श्रीनगर के बीच संपर्क को बढ़ाना होगा।पुल पर चलने वाली वंदे भारत ट्रेन के माध्यम से,कटरा और श्रीनगर के बीच यात्रा करने में मात्र तीन घंटे लगेंगे,जिससे वर्तमान यात्रा समय में दो-तीन घंटे की कमी आएगी। “जम्मू- कश्मीर अभिलेखागार विभाग के विशेष दस्तावेजों के अनुसार,सन 1892 में डोगरा के महाराजा ने पहली बार कश्मीर तक रेल संपर्क का विचार रखा था।जिसे1898 में,शासक ने ब्रिटिश इंजीनियरिंग फर्म एसआर स्कॉट स्ट्रैटन एंड कंपनी को कश्मीर तक रेल मार्ग के लिए बीहड़ इलाके का सर्वेक्षण करने का काम सौंपा था।इस सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने के लिए तीन ब्रिटिश इंजीनियरों को नियुक्त किया गया,लैकिन1898 से1909 के बीच 11वर्षों में तैयार की गई तीन में से दो रिपोर्टें अस्वीकार कर दी गईं।डीए एडम द्वारा प्रस्तुत पहली रिपोर्ट में जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के बीच एक इलेक्ट्रिक रेलवे की सिफारिश की गई थी,जिसमें दो फीट छह इंच की एक संकरी लाइन पर भाप इंजन लगे होंगे।इस चुनौती पूर्ण ऊंचाई स्तरों के कारण इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया था।सन 1902 में डब्ल्यूजे वेटमैन द्वारा प्रस्तुत एक अन्य प्रस्ताव में झेलम नदी के किनारे एबटाबाद(अब पाकिस्तान में)से कश्मीर को जोड़ने वाली रेलवे लाइन का सुझाव दिया गया था,इसे भी अस्वीकार कर दिया गया।हालांकि,वाइल्ड ब्लड के तीसरे प्रस्ताव में रियासी क्षेत्र से होकर चेनाब नदी के किनारे रेलवे लाइन बिछाने की सिफारिश की गई थी।अन्तत इस रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई।उधमपुर,रामसू और बनिहाल के पास बिजली से चलने वाली ट्रेनों को चलाने और बिजलीघर स्थापित करने की कई योजनाओं की भी जांच की गई,लेकिन अंततः उन्हें खारिज कर दिया गया।हालांकि,कई बार खारिज किए जाने के बाद, ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल डी.ई. बोरेल को आखिरकार स्थानीय कोयला भंडारों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया।इसके अलावा,भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण(जीएसआई)के तत्कालीन उप अधीक्षक टीडी ला टच से संगरमार्ग और महोगला कोयला खदानों पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कराई गई थी।कई अस्वीकृतियों के बाद एक सकारात्मक विकास को चिह्नित करते हुए,दिसंबर1923 में, एसआर स्कॉट स्ट्रैटन एंड कंपनी को कोयला निष्कर्षण परियोजना को लागू करने के लिए फिर से नियुक्त किया गया।हालांकि दस्तावेजों में कहा गया है कि 1925 में महाराजा प्रताप सिंह की मृत्यु और बढ़ते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कारण परियोजना को स्थायी रूप से स्थगित कर दिया गया।इस यात्रा में उम्मीद की एक किरण छह दशक बाद जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1983 में पुनः प्रयास जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेलवे लाइन की आधारशिला रखी।जिससे यह महत्वाकांक्षी परियोजना को नव जीवन मिला।सुत्रों के अनुसार,उस समय इस मेगा प्रोजेक्ट की लागत करीब 50 करोड़ रुपये आंकी गई थी और इसे पांच साल में पूरा किया जाना था।हालांकि,अगले 13 सालों में बजट बहुत बढ़ गया क्योंकि केवल11किलोमीटर लाइन का निर्माण किया जा सका,जिसमें 300 करोड़ रुपये की लागत से 19 सुरंगें और 11पुल शामिल थे।यह परि योजना बाद में व्यापक उधमपुर -कटरा-बारामूला रेलवे परियोजना में बदल गई,जिसकी अनुमानित लागत 2,500 करोड़ रुपये थी,जिसकी आधारशिला 1996 और 1997 में प्रधानमंत्रियों एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल ने उधमपुर, काजीगुंड और बारामूला में रखी थी।इस परियोजना का निर्माण कार्य 1997 में शुरू हुआ।यह कार्य भूवैज्ञानिक,स्थलाकृतिक और मौसम संबंधी स्थितियों के कारण चुनौती पूर्ण था।जिसके कारण देरी हुई,जिससे लागत 43,800 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है।उधमपुर- श्रीनगर-बारामुल्ला रेलवे लाइन (यूएसबीआरएल)को इसके सामरिक महत्व को देखते हुए राष्ट्रीय परि योजना घोषित किया गया था।272 किमी लंबे खंड में से 209 किमी पहले ही चरणों में चालू हो चुका है,जिसमें 2009 में काजीगुंड- बारामूला,2013 में बनिहाल- काजीगुंड,2014 में उधमपुर-कटरा और 2023 में बनिहाल-संगलदान शामिल है।हमारे इंजीनियरिंग के इस चमत्कार में कश्मीर रेल परियोजना के साथ 38 सुरंगें और 927 पुल शामिल हैं,जिनमें चिनाब पुल सबसे खास है,जो एफिल टॉवर से 35 मीटर ऊंचा है और नदी तल से 359 मीटर ऊपर है।यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज है।इस बहु प्रतिक्षित परियोजना प्रारम्भ होने से ना केवल जम्मु कश्मीर के लोगों लाभ होगा बल्कि कशमीर में आने वाले शैलानी के संग श्रद्धालुओं को फायदा होगा।नए रोजगार के अवसर मिलेंगे।इस मौके पर मुझे एक प्रचलित कहावत याद आ रही है – “कौन कहता है कि आशमा में सुराग नही होता,एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों “

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