राजनीति का नया फैशन: काम कम, दिखावा ज़्यादा
राजनीति का नया फैशन: काम कम, दिखावा ज़्यादा
जे टी न्यूज, सुपौल: आजकल के नेताजी को देखिए— विकास योजनाओं की फाइलों में झांकने से ज्यादा इन्हें फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर डालने में मज़ा आता है। किसी के यहां जन्मदिन है, किसी की शादी है, किसी का निधन हो गया है— नेता जी पहुंचेंगे, दो शब्द बोलेंगे, फोटो खिंचवाएंगे और तुरंत “आज अमुक-अमुक के परिवार से मिलकर दुख-सुख साझा किया” लिखकर फेसबुक, व्हाट्सअप पर डाल देंगे।
और फिर जिस घर में ये जाते हैं, वहां भी गर्व से स्टेटस लग जाता है— “मेरे पिता के निधन पर विधायक/सांसद जी घर पधारे”। यह सब देखकर लगता है जैसे राजनीति अब विकास का नहीं, बल्कि इवेंट मैनेजमेंट का खेल बन चुकी है।
हकीकत यह है कि 80% नेता जनता के असली मुद्दों से दूर भागते हैं। सड़क टूटी है, स्कूल में मास्टर नहीं हैं, अस्पताल में डॉक्टर नहीं हैं— इन पर चर्चा से बचते हैं, क्योंकि इनमें मेहनत लगती है, जवाबदेही लगती है। लेकिन जन्मदिन-श्रद्धांजलि वाले कार्यक्रम में सिर्फ 10 मिनट लगते हैं और सोशल मीडिया पर “जनता के नेता” की इमेज भी बन जाती है।पार्टी फंक्शन में भी जाना चाहिए,, लेकिन उससे ज्यादा काम,, विकास पर फोकस होना चाहिए।
चुनाव का मौसम आते ही गांव-गांव दौरों का सिलसिला शुरू हो जाता है। गली-गली वादों की बारिश होने लगती है, सदस्यता अभियान चलाया जाता है, और हर पार्टी जनता को अपने “खेमे” में खींचने की कोशिश करती है। लेकिन चुनाव जीतने के बाद— वही पुराना हाल— नेता जी गायब, जनता परेशान, और काम सिर्फ कागज़ों पर।
अभी लगभग सभी जगह बाढ़ से जनता परेशान है और “आजकल के 90% नेता सरकारी फंड से सामान बाँटकर ऐसे स्टेटस डालते हैं जैसे अपनी जेब से दान कर रहे हों। अरे, जब देना ही है तो अपनी जेब से दो, ना कि सरकारी फंड को बांटकर लोगों को बेवकूफ बनाओ।
सरकारी फंड से राहत सामग्री बाँटने के लिए सरकारी स्टाफ है ही।
लेकिन नेता उसमें घुसकर फोटो खिंचवाते हैं, सोशल मीडिया पर डालते हैं, और झूठी वाहवाही लूटते हैं।पोस्ट में लिखा होता है – फलाँ गाँव में बाढ़ पीड़ितों को चूड़ा, चीनी और अन्य सामग्री वितरित की गई। सरकारी खज़ाने से बाँटकर नायक मत बनो।और लोग भी बिना जांच-पड़ताल के तुरत बोल देंगे – फलाँ बाबू तो बाढ़ में जान लगा दिए, बहुत बाँट रहे हैं। असल में बाँट तो रहे हैं हम सबका पैसा, और नाम कमा रहे हैं अपना !
असल सवाल यह है कि कब तक जनता इस दिखावे में फंसती रहेगी? कब हम नेता से सिर्फ हाथ मिलाने और फोटो खिंचवाने के बजाय काम का हिसाब मांगेंगे? जब तक जनता अपनी सोच नहीं बदलेगी, तब तक यह “काम कम, दिखावा ज़्यादा” वाला राजनीतिक फैशन चलता रहेगा, और विकास बस चुनावी भाषणों तक सीमित रहेगा।



