मोदी सरकार द्वारा किसानों की जमीनें छीनने की मुहिम जारी

गोरखपुर सिलीगुड़ी सिक्स लेन एक्सप्रेसवे जमीन छीनने का एक हिस्सा आलेख–प्रभुराज नारायण राव

मोदी सरकार द्वारा किसानों की जमीनें छीनने की मुहिम जारी

गोरखपुर सिलीगुड़ी सिक्स लेन एक्सप्रेसवे जमीन छीनने का एक हिस्सा

आलेख–प्रभुराज नारायण राव

जे टी न्यूज
नरेंद्र मोदी की सरकार बिहार के किसानों की जमीनों को छीनकर कॉरपोरेट के हाथों में दे देने की कई रणनीतियां तैयार कर ली है। इसी का एक हिस्सा गोरखपुर सिलीगुड़ी ग्रीन फील्ड सिक्स लेन एक्सप्रेसवे भी है। इसके माध्यम से बिहार के किसानों का 5503 हेक्टेयर जमीन लेने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के द्वारा गजट कर जमीन लेने की अधिसूचना भी जारी कर दिया गया है और जमीन लेने की अग्रतर कार्रवाई भी शुरू कर दिया गया है। जबकि उत्तर प्रदेश से पश्चिम चंपारण में गुजरने वाली 3 नेशनल हाईवे की सड़कें पहले से कार्यरत हैं। फिर एक नई सड़क उत्तर प्रदेश की सेवरही उत्तर प्रदेश से बिहार के पश्चिम चंपारण के मनुआपुल तक 4 फोरलेन की सड़क के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहण करने की सूचना दी जा रही है। जिसके विरुद्ध बैरिया प्रखंड के किसान लड़ाई लड़ रहे हैं। यह लड़ाई इसलिए है कि जमीन अधिग्रहण के नियमों का पालन नेशनल हाईवे अथॉरिटी नहीं कर रहा है।

जबकि यह सरकारी घोषणा है कि बाजार भाव पर जमीन की कीमत का चार गुना दाम जमीन अधिग्रहण के लिए देना है ।जो नहीं करके औने पौने दाम में किसानों की जमीनों को नेशनल हाईवे अथॉरिटी लेना चाह रहा है।
तब तक एक दूसरी सिक्स लेन एक्सप्रेसवे जो बैरिया प्रखंड से ही गुजरेगी और मात्र 4 किलोमीटर की दूरी से गुजरेगी। इसके लिए अधिसूचना जारी कर दिया गया है ।यह सड़क 526 किलोमीटर लंबा होगा। इस योजना पर कुल अनुमानित खर्च 37 हजार 465 करोड रुपए लगेंगे। इस योजना में 87.5 % जमीन खेती की अधिग्रहित की जाएगी।यानी कि 12.50 % गांव या कस्वे की जमीन पड़ेगी।जमीन खरीदने पर अनुमानित खर्च 12094 करोड़ रुपए लगेंगे। इस योजना में सड़क और पुल बनने पर 22547 करोड़ रुपए खर्च होंगे। जीएसटी इसके अलावे लगेगा। यानी की गोरखपुर सिलीगुड़ी ग्रीन फील्ड सिक्स लेन एक्सप्रेसवे बनाने पर कुल खर्च 37465 करोड रुपए लगेंगे।
किसानों की जमीन लूटने की एक तीसरी मुहिम रक्सौल हल्दिया एक्सप्रेसवे है। इस योजना में भी किसानों के खेती की जमीन मुख्य रूप से शामिल किया गया है। एक सर्वे के अनुसार छोटे और मध्यम वर्गीय किसानों की जमीन छीन जाने से अधिकांश लोगों की किसानी समाप्त होने जा रही है। अब वह खेत मजदूर की शक्ल में नजर आने वाले हैं ।इस तरीके से जो तीन कृषि विरोधी काले कानून मोदी सरकार ने पास किया था। जिसके खिलाफ किसान जब दिल्ली की ओर कुच किया ।

 

तो दिल्ली में उनके प्रवेश पर रोक लगा दी गई ।नतीजा यह हुआ था की दिल्ली जाने वाली सभी सड़कों पर किसान बैठ गए और जब तक किसान विरोधी तीनों काले कानून को समाप्त नहीं किया जाता। तब तक आंदोलन चलाने की घोषणा की।13 महीने तक वह आंदोलन चला। 750 से ज्यादा किसान उस आंदोलन में शहीद हो गए और वह आंदोलन दुनिया का एक ऐतिहासिक किसान आंदोलन का रूप ले लिया। वह आंदोलन दिल्ली जाने वाले सड़कों तक नहीं रहा। बल्कि गांव गांव में किसानों के बीच वह आंदोलन चला गया। गांव गांव में किसान सड़कों पर उतरने लगे। कोरोना का खौफ उन्हें नहीं रोक सका ।तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कानों में जूं रेंगा और आनन फानन में तीनों काले कृषि कानून को वापस लिया था।
यह सब को पता है कि बिहार कृषि आधारित राज्य है। यहां कृषि आधारित उद्योगों को लगाकर बिहार का विकास करने की जरूरत है। बिहार में 29 चीनी मिलें थी। जिसमें से 20 चीनी मिलें ब्रिटिश बंद पड़ी है। 16 चीनी मिलें बिहार राज्य शुगर कॉर्पोरेशन के अधीन है ।पिछले 20 साल से बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा की सरकार चल रही है। लेकिन चीनी मिलों को चालू करने और नए उद्योग लगाने कि उनकी कोई मंशा नहीं दिख रही है ।बिहार के किसान घाटे की खेती कर रहे हैं। उन्हें ना तो सही एम एस पी मिल रहा है और नहीं फसल बीमा योजना का लाभ दिया जा रहा है।
अब तो बिहार के किसानों की जमीनों को छीन कर कॉरपोरेट के हाथों में दे देने की योजना पर बिहार सरकार काम कर रही है ।एक तरफ जहां 5503 हेक्टेयर जमीन इस सिक्स लेन एक्सप्रेसवे में दिया जा रहा है। तो दूसरी तरफ 1050 हेक्टेयर जमीन बिजली उत्पादन के नाम पर भागलपुर के पीरपैंती में देश के बड़े कॉर्पोरेट अदानी को दिया जा रहा है ।उस जमीन पर 10 लाख से ज्यादा आम ,अमरूद आदि के पेड़ लगे हुए हैं और उसे बंजर भूमि बता कर 33 साल के लिए 1 रुपए प्रति वर्ष के आधार पर लीज दिया जा रहा है। दूसरी तरफ खाने के अनाज से इथनॉल बनाने के लिए कई प्रोजेक्ट सरकार ने पास कर दिया है। जो बिहार की जनता को भुखमरी के कगार पर लाने की योजना है। जब गन्ना से चीनी निकालने के बाद उसके मुलासेस से इथनॉल तैयार किया जाता है ।

तो बिहार के सभी चीनी मिलों को चालू कर देने से बड़े पैमाने पर इथनॉल तैयार होगा। लाखों नौजवानों को चीनी मिलों में रोजगार मिलेगा तथा किसानों को गन्ना लगाकर नगदी फसल का लाभ मिलेगा। लेकिन यह काम भाजपा नीतीश सरकार नहीं कर रही है। ऐसी स्थिति में अभी 2025 का विधान सभा चुनाव बड़ा ही महत्वपूर्ण मायने रखता है। बिहार को भुखमरी से बचाने के लिए भाजपा नीतीश सरकार को 2025 के विधानसभा चुनाव में बदलना ही होगा। तभी बिहार का विकास संभव है। इसलिए सही मायने में बिहार के किसानों को संगठित होकर अपनी जमीन की रक्षा ,खेती की सुविधा तथा रोजगार की नई व्यवस्था के लिए भाजपा और नीतीश कुमार की सरकार को बदलने की मजबूत तैयारी की जरूरत है ।तभी बिहार के किसान अपनी रक्षा कर पाएंगे।

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