दस वर्षों बाद समस्तीपुर की ऐतिहासिक धरती पर प्रधानमंत्री का आगमन आज,
भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर गरमाया सियासी समीकरण
दस वर्षों बाद समस्तीपुर की ऐतिहासिक धरती पर प्रधानमंत्री का आगमन आज,
भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की विरासत पर गरमाया सियासी समीकरण

जेटी न्यूज़।
समस्तीपुर। बिहार की राजनीति में समस्तीपुर की धरती का हमेशा से एक ऐतिहासिक महत्व रहा है। जहां से उपजे आंदोलनों, विचारों और क्रांतियों की गूंज ने सत्ता के समीकरण बदल दिए हैं। इसी धरती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 10 वर्षों बाद आज दोबारा आगमन राजनीतिक हलकों में नई हलचल पैदा कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री का यह दौरा आधिकारिक रूप से जननायक कर्पूरी ठाकुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण और चुनावी कार्यक्रमों में भागीदारी तक सीमित है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र एक रणनीतिक कदम भी है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री गोखुल कर्पूरी फुलेश्वर डिग्री महाविद्यालय और कर्पूरी स्मृति भवन परिसर जाकर माल्यार्पण करेंगे तत्पश्चात दुधपूरा हवाई अड्डा मैदान में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए चुनावी शंखनाद करेंगे। हालांकि, विपक्षी दलों और स्थानीय नागरिकों के बीच इस कार्यक्रम को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कथित रूप से 2015 में समस्तीपुर में आयोजित सभा के दौरान दर्शक दीर्घा से हुए विरोध के बाद प्रधानमंत्री ने एक दशक तक समस्तीपुर में कोई चुनावी सभा नहीं की।

अब, जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री का यह आगमन अतिपिछड़े वर्गों के प्रति भावनात्मक जुड़ाव को मजबूत करने की दिशा में एक नई पहल के रूप में देखा जा रहा है। इसी बीच, जिले में “वोट चोर गद्दी छोड़”, “बेरोजगारी और भुखमरी के खिलाफ एकजुट हों” जैसे नारे युवाओं और छात्रों के बीच गरमाया हुआ है। 24 अक्टूबर को होने वाली सभा से पहले भाजपा और जद(यू) के कई वरिष्ठ नेता समस्तीपुर में डेरा डाले हुए हैं। वहीं, कथित रूप से कई स्थानीय पत्रकारों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की मीडिया कवरेज से वंचित रखे जाने को लेकर भी असंतोष की स्थिति बनी हुई है। जननायक कर्पूरी ठाकुर की स्मृति से जुड़ा गोखुल कर्पूरी फुलेश्वर डिग्री महाविद्यालय, जहां प्रधानमंत्री माल्यार्पण करने जा रहे हैं, स्वयं वर्षों से सरकारी उपेक्षा का शिकार है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उक्त कॉलेज के शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को 2017 से अनुदान राशि तक प्राप्त नहीं हुई है।
गौरतलब है कि जननायक कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में अपने मुख्यमंत्रित्व काल में मैट्रिक तक की पढाई नि:शुल्क और अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करते हुए शिक्षा को समावेशी बना कर मील का पत्थर रख दिया था। जबकि प्रधानमंत्री की पहल पर लागू नई शिक्षा नीति के तहत स्नातक शिक्षा की लागत ₹22,000 से ₹25,000 तक पहुंच गई है। जिससे उच्च शिक्षा बहुसंख्यक आबादी केलिए सपना बन गया है।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऐसे समय में प्रधानमंत्री का यह दौरा केवल श्रद्धांजलि कार्यक्रम न होकर, बिहार के अति पिछड़े वर्गों में नई राजनीतिक ज़मीन तलाशने की कवायद हो सकती है। समस्तीपुर की वही धरती, जिसने कभी समाजवाद, छात्र आंदोलन और किसान संघर्षों की दिशा तय की थी, आज एक बार फिर बड़े राजनीतिक आंदोलन के मोड़ पर खड़ी है। आगामी सभा और उसके बाद की प्रतिक्रियाएं यह तय करेंगी कि क्या यह दौरा केवल प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि रहेगा या आने वाले चुनावी परिदृश्य में किसी नई क्रांति की भूमिका तैयार करेगा।
 
