*मोदी जी बढ़ रहे फासीवाद की ओर*  आलेख–प्रभुराज नारायण राव 

*मोदी जी बढ़ रहे फासीवाद की ओर*

आलेख–प्रभुराज नारायण राव

भारतीय जनता पार्टी तथा एनडीए के घटक दलों द्वारा बनाई गई केंद्र की सरकार से देश में आज गंभीर संवैधानिक संकट बढ़ता जा रहा है। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित भारत के संविधान में नागरिक आजादी तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है। सही मायने में सभी संविधान द्वारा दिए गए यह अधिकार हमारे संविधान का मूल आत्मा है। लेकिन आज भारतीय जनता पार्टी नीत केंद्र की मोदी सरकार द्वारा संचार साथी एक ऐप के माध्यम से देश के एक-एक नागरिक चाहे वह पुरुष हो,महिला हो या बच्चे हो। सबके निजी क्षेत्र में घुसने का काम, उनके निजता के अधिकार को सार्वजनिक कर देने का काम सरकार करना चाह रही है ।इस ऐप के माध्यम से देश के किसी भी व्यक्ति के पल-पल की गतिविधियों की खबर कैद होते जाएंगे और निजता का अधिकार पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाएगा।

मोदी सरकार देश में पशु और मनुष्य के फर्क को मिटा देना चाहती है ।यानी कि दोनों की कार्य शैली को एक ही सिक्के के दो रुप में देखना चाहती है। ऐसा लगता है कि प्राचीन काल की दास प्रथा की दासता की पुनरावृति करना चाहती है। आखिर ऐसी नौबत मोदी सरकार के पास क्यों आन पड़ी। क्यों मानव जीवन के निजी क्षेत्रों में सरकार संविधान की सारी मर्यादाओं को लांघ कर दखल देना चाहती है। निश्चय ही देश के जनवाद पसंद लोगों के लिए यह गंभीर खतरा है।

 

शायद इससे बड़ा खतरा मोदी सरकार अपने राज सत्ता पर पड़ने वाले संकटों से उबरने की असफल प्रयास में ऐसी संविधान विरोधी कार्यों में लगी हुई है। इसी तरह की संकट से अधिनायक वादी सरकार को बचाने के कार्य में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी लग गई थी और उसने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लागू करने का सुझाव दिया।अभिव्यक्ति के सारे साधनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। बोलने की आजादी छीन ली गई थी।इसके विरुद्ध सड़कों पर उतरने वाले संविधान के हिमायतियों को जेल में बंद कर दिया गया ।लोगों की ज़ुबान को जब इंदिरा सरकार नहीं रोक पाई।तो 26 जून 1975 को पूरे देश में आपातकाल लागू कर दी थी। जो 21 महीने तक उनकी सरकार को बचाने में सफलता पायी थी।

आखिरकार 21 मार्च 1977 को आपातकाल की समाप्ति हुई।16 से 20 मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए और उस चुनाव में पूरे उत्तर भारत में श्रीमती इंदिरा गांधी की कांग्रेस को एक भी लोकसभा की सीट नहीं मिल पाई। बल्कि स्वयं इंदिरा गांधी भी रायबरेली से समाजवादी नेता राजनारायण से चुनाव हार गई थी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के बाहरी समर्थन से बनाई गई थी।

आज देश में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और केंद्र की मोदी सरकार संयुक्त रूप से भारत की धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी संविधान को समाप्त कर देश में मनुस्मृति को लागू करने की छटपटाहट में दिख रही है। किस तरीके से संविधान का सांप्रदायिककरण किया जा रहा है। यह देश के लोगों को दिख रहा है। विडंबना यह की इस खेल में कुछ समाजवादी विचार की पार्टियां और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी सत्ता के लाभ में उनका इस खेल में साथ दे रही है। देश का प्रधानमंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत के साथ अयोध्या में जाकर भगवान राम का प्राण प्रतिष्ठा करता है। कभी ध्वजारोहण करता है ।तो कभी लोकसभा में प्रवेश का पूजा पाठ में लीन रहता है। चाहे अयोध्या का प्राण प्रतिष्ठा हो, ध्वजारोहण हो या लोकसभा का पूजा पाठ हो देश के एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने की वजह से उनको सारे कार्यक्रमों से वंचित कर दिया जाता है और भारत के संविधान की धर्मनिरपेक्ष आत्मा को तार तार किया जा रहा है।

1933 में जर्मनी की सरकार का नेतृत्व हिटलर के हाथ में आ गया ।उसके पहले वह जर्मन वर्क्स पार्टी का सदस्य था ।उसकी भी शैक्षणिक योग्यता साधारण थी। वह आर्ट्स का विद्यार्थी था ।वह भी एक जूता सिलने वाला चमार जाति से बिलॉन्ग करता था ।हिटलर अपने पिता की तीसरी पत्नी का औलाद था। 17 साल की अवस्था में ही मां की कैंसर पीड़ित होने से मां का सहारा भी उससे मुंह मोड़ लिया था।

हिटलर अब जर्मनी का चांसलर था। वह कुछ भी करना चाहता था अपनी मर्जी के अनुरूप । यहूदियों के विरुद्ध नाजियों की गोलबंदी उसका मुख्य शक्ति बन गया और वह यहूदियों को परास्त करने के बाद दुनिया पर अपना साम्राज्य कायम करने की ठान ली। फिर क्या था। 1945 में सोवियत संघ के तत्कालीन महानायक स्टालिन के सामने एक न चलने के बाद उसे आग लगाकर अपने जीवन लीला को समाप्त करना पड़ा था। उसके इस फासीवादी दौर का अंत हो गया।

हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पैदाइश भी अति पिछड़े परिवार में चाय बेचने वाले पिता के यहां हुआ था ।आज वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र डेढ़ अरब की आबादी वाले भारत के प्रधानमंत्री बन गए हैं। वह भी मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंदू समुदाय को खड़ा कर हिटलर जैसा खेल हिंदुस्तान में खेलना चाहते हैं।

कहां तो इसी गुजरात में जन्मे एक संपन्न व्यावसायिक परिवार का मोहनदास करमचंद गांधी लंदन में बैरिस्टरी पास कर देश को आजाद करने के लिए देश के गांव में बसने वाले लोगों के भेष भूसे को अपनाने का काम किया ।एक धोती में आधी पहन कर आधे में अपने शरीर को ढकने का काम किया और इसी गुजरात में अति पिछड़े परिवार में जन्मा चाय बेचने वाला व्यक्ति जब भारत का प्रधानमंत्री बन जाता है। तो दुनिया की सारी सुख सुविधाओं को अपना बना लेता है ।यह वर्गीय बनावट दुनिया के सारे लोग देख रहे हैं और हिटलर का परिणति भी इतिहास के पन्नों में अंकित है।

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