राष्ट्रीय आक्रोश के कारण 1.7 लाख करोड़ के पैकेज का किया ऐलान- प्रभुराज नारायण राव।

जेटी न्यूज-कार्यालय।

पश्चिम चम्पारण

बिहार राज्य किसान सभा और बिहार प्रांतीय खेतिहर मजदूर यूनियन के प्रभुराज नारायण राव ने कहा है कि लगता है कोरोना महामारी के मद्देनजर संकट को दूर करने के लिए वित्त मंत्री ने आखिरकार कोरोना वायरस लॉक-डाउन की वजह से अभूतपूर्व स्तर के संकट का सामना कर रहे लोगों को विभिन्न रूपों से सहायता प्रदान करने के लिए 1.7 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की है।यह एक राष्ट्रीय आक्रोश की प्रतिक्रिया थी, क्योंकि देश के मेहनतकश लोगों को अब लगभग दो सप्ताह के लिए बदहाल और कंगाल छोड़ दिया गया है। हलांकि यह सही दिशा में उठाया गया एक कदम है, लेकिन वर्तमान संकट की गहराई को देखते हुए कहा जा सकता है की इसे दूर करने के लिए अकेला मौजूद पैकेज अपर्याप्त होगा। किसान सभा और खेतिहर मजदूर यूनियन अंतरिम उपाय के रूप में राशन के साथ लाभार्थियों को 5000/- रूपये दिए जाने की मांग करते हैं, ताकि असाधारण स्थिति से निपटने के लिए राज्यों के लिए भी एक विशेष वित्तीय पैकेज की घोषणा किये जाने की जरुरत है।

वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री से किसान के कैश-ट्रांसफर की पहली किस्त जारी करने की घोषणा की। हैरानी की बात है कि, जब इस योजना को वित्त मंत्री द्वारा शुरू किया गया था तब यह दावा किया गया था की 14.5 करोड़ किसान इस से लाभान्वित हुए और अब यह कहा जा रहा है की 8.6 करोड़ किसानों को इस से लाभ होगा। इस बात की कोई व्याख्या नहीं है कि लगभग 6 करोड़ किसान जो लाभान्वित होने वाले थे वे कहां गायब हो गए। अभूतपूर्व आर्थिक संकट को देखते हुए, हम मांग करते हैं कि इस वर्ष की सभी तीन किस्तों को तुरंत दिया जाए। बीते दौर में, प्रधानमंत्री-किसान कैश-ट्रांसफर के कार्यान्वयन के साथ एक गंभीर समस्या यह रही है कि बड़ी संख्या में किसानों को इससे बाहर रखा गया है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका लाभ पट्टेदार किसानों और भूमिहीन खेत मजदूर सहित सभी खेती करने वाले परिवारों तक पहुंचे। उन्हें एकत्र या विपणन नहीं किया जा सकता है, साथ ही साथ आय, हानि से पीड़ित ग्रामीण कारीगरों को भी मुआवजा दिया जाना चाहिए।

वित्त मंत्री ने मनरेगा के तहत मजदूरी में 182 रुपये से 202 रुपये वृद्धि की घोषणा भी की। इस तथ्य के अलावा कि यह बहुत मामूली वृद्धि है, यह स्पष्ट नहीं है कि लॉक-डाउन की अवधि में यह किसी को कैसे फायदा पहुंचाएगी क्योंकि किसी को भी कोई काम नहीं दिया जा सकता है। सरकार को इसके बजाय मनरेगा के तहत बेरोजगारी भत्ते के भुगतान के प्रावधान का उपयोग करना चाहिए। मनरेगा जॉब कार्ड में पंजीकृत सभी मजदूरों को संबंधित राज्य में प्रचलित न्यूनतम मजदूरी की दर से या 300 रुपये प्रति दिन जो भी अधिक हो, के हिसाब से लॉक-डाउन की अवधि के लिए बेरोजगारी भत्ता का भुगतान किया जाना चाहिए।

वर्तमान में, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) में लगभग 71 करोड़ प्राथमिकता वाले घर और लगभग 9 करोड़ अंत्योदय अन्न योजना (AAY) वाले घर शामिल हैं। लेकिन लगभग 25 फीसदी ग्रामीण परिवारों और 50 फीसदी शहरी परिवारों को एनएफएसए से बाहर रखा गया है। कोरोनावायरस महामारी के कारण कियें गए अभूतपूर्व लॉक-डाउन में, इनमें से कई को भी खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ेगा। इसके मद्देनजर, यह जरूरी है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ का विस्तार सभी घरों तक बढ़ाया जाए और प्रति माह दाल, तेल, नमक और चीनी के साथ 5 किलो अनाज का एक सार्वभौमिक अधिकार प्रदान किया जाए।

जिन राहत उपायों की घोषणा की गई है उनमें से कई के कार्यान्वयन के बारे में भी गंभीर चिंताएं हैं। वित्त मंत्री ने उल्लेख किया कि निर्माण से जुड़ें मजदूरों को राज्य सरकारों द्वारा भवन – निर्माण मजदूरों के कल्याण कोष का उपयोग कर मदद दी जाएगी, पर यह स्पष्ट नहीं है कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाएगा कि बड़ी संख्या में निर्माण मजदूरों को इस मदद से बाहर नहीं रखा जाएगा।

वित्त मंत्री द्वारा 2000 रूपये दियें जाने के राहत उपाय की घोषणा के अलावा, कोई भी अन्य घोषणा किसानों द्वारा सामना की जा रही विशिष्ट समस्याओं का समाधान नहीं करती हैं। बिहार के बड़े हिस्सों में, रबी फसलों की कटाई की जा रही है या होनी है। कटाई के लिए अक्सर प्रवासी मजदूरों सहित बड़ी संख्या में मजदूरों को एक साथ काम करने की आवश्यकता होती है। इसी तरह, विपणन कार्यों के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों की आवश्यकता होती है। बिहार के किसानों को फल, सब्जियां, दूध, मछली, अंडे और मुर्गी जैसे नाशवर उत्पादो को बेचने की भी जरूरत है। बाजारों के बंद होने से, किसान बेचने में असमर्थ हैं, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादों की कीमतों में गिरावट आई है। जबकि खुदरा कीमतें आसमान छू रही हैं। उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला में इस तरह के व्यवधान के कारण बहुत अधिक नुकसान होने की संभावना है। इन नुकसान की तुलना में, प्रधानमंत्री -किसान के कैश-ट्रांसफर के तहत प्रदान किया जा रहा 2000 रूपये की राशी बहुत ही मामूली है। सरकार को यह घोषणा करनी चाहिए कि कृषि गतिविधियों या बाज़ारों में व्यवधान के कारण होने वाली किसी भी नुकसान को कृषि बीमा योजनाओं के अंतर्गत कवर किया जाएगा और इसका लाभ उन किसानों को भी दिया जाएगा जो पहले से ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं के तहत नामांकित नहीं हैं।

बिहार के चीनी मिल मालिकों के यहां किसानों के अरबों रुपए बकाया है। उनके पैसे ब्याज सहित अविलंब दिया जाय। जो चीनी मिल ऐसा नहीं करते उन पर सख्ती बरती जाए। यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाए कि, किसानों और मेहनतकश जनता को बिना किसी उत्पीड़न या भ्रष्टाचार के इन कदमों का लाभ मिले।

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