कबूलनामा
कबूलनामा
जे टी न्यूज़
तलाशे दिल,
कोई ऐसा ठौर,
जो करे आत्मविभोर।
फिर से शायद,
बुने “बचकाना”,
शरारतों का ताना-बाना।
बैठे छोड़ जिन्हें,
समझ नामाकूल,
चाहे उन्हें करें कबूल।
देतीं जो लुत्फ,
“हर्जाने” के बिना,
करें माफ़ सब कहा सुना।
रखना यक़ीन,
ये हसीं मिज़ाज,
माने कर नव आगाज।
दम पर अपने,
ख़्वाब तू देखना,
चोटिल होकर भी चलना।
मदमस्त बयार,
भांति वक्त-बेवक्त,
बहना बनकर सशक्त।
सब एक जैसी,
नई पुरानी जगह,
सीख जीना वजह बेवजह।
ये ही फैसले,
सुनायेंगे “तराने”,
बन नित्य नये बहाने।
आयेंगे करके,
खिसके जो कभी,
लौट आयेंगे, देखना तभी।
बरसों-बरस,
जो गये थे भूल,
होता देख”गिल”तुझे मक़बूल।
नवनीत गिल
