भारत और नेपाल के मैत्रीपूर्ण संबंधों का प्रतीक जयनगर-जनकपुर नैरोगेज रेलवे

भारत और नेपाल के मैत्रीपूर्ण संबंधों का प्रतीक जयनगर-जनकपुर नैरोगेज रेलवे जे टी न्यूज़, जयनगर/नेपाल : भारत और नेपाल के मैत्रीपूर्ण संबंधों का प्रतीक रही जयनगर-जनकपुर नैरोगेज रेलवे न केवल एक परिवहन प्रणाली थी, बल्कि यह दो देशों की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता की मिसाल भी थी। इस ऐतिहासिक रेलवे लाइन की शुरुआत 20वीं सदी की शुरुआत में हुई थी, जब नेपाल में सड़क परिवहन का अभाव था और जनकपुरधाम जैसे धार्मिक नगर को भारत से जोड़ने का कोई सुविधाजनक मार्ग नहीं था। यह रेलवे लाइन भाप इंजन से चलने वाली नैरोगेज ट्रेन के रूप में प्रसिद्ध रही, जो कोयला और पानी से चलती थी। वर्तमान में यह रेलवे डीजल इंजन द्वारा संचालित होती है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक विरासत आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।

इतिहास:

प्रारंभ और उद्देश्य:

इस रेलवे का निर्माण 1927-1937 के बीच हुआ था। ब्रिटिश भारत सरकार ने इस लाइन को भारतीय सीमावर्ती शहर जयनगर से शुरू कर नेपाल के जनकपुरधाम तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। इसका मूल उद्देश्य जनकपुर की तीर्थयात्रा को सुगम बनाना था, जो कि हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थल है — माना जाता है कि यह माता सीता का जन्मस्थान है। साथ ही यह रेलवे लकड़ी, कृषि उत्पाद और निर्माण सामग्री को नेपाल से भारत लाने और भारत से नेपाल भेजने का साधन भी बन गया।

नैरोगेज और भाप इंजन:

रेलवे को नैरो गेज (2 फीट 6 इंच चौड़ी पटरियाँ) पर बिछाया गया था, जो हल्के ढांचे और कम लागत के कारण इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त था। इस मार्ग पर चलने वाले भाप इंजन (steam locomotives) कोयले और पानी की सहायता से चलते थे। इंजन को हर कुछ किलोमीटर पर पानी और कोयला भरने के लिए रोका जाता था। ट्रेन की गति धीमी होती थी, लेकिन इसका सफर बेहद रोचक और यादगार होता था, विशेषकर ग्रामीण और धार्मिक यात्रियों के लिए।

रूट विवरण:

इस ऐतिहासिक नैरोगेज रूट की लंबाई लगभग 52 किलोमीटर थी, जिसमें जयनगर, बिजलपुरा, खजुरी, महोत्तरी, जनकपुर जैसे प्रमुख स्टेशन आते थे। यह मार्ग दो देशों की सीमाओं को जोड़ने वाला एकमात्र रेलवे संपर्क था, जो दोनों देशों के आम नागरिकों को जोड़ता था।

पतन और पुनरुद्धार:

सेवाओं का अवरोध:

समय के साथ, विशेष रूप से 1990 के दशक के बाद, इस रेलवे की हालत जर्जर होने लगी। भाप इंजनों का रखरखाव कठिन और महंगा हो गया, साथ ही तकनीकी संसाधनों की कमी और राजनीतिक अस्थिरता ने रेलवे की स्थिति को और भी कमजोर कर दिया। 2000 के दशक की शुरुआत में यह रेलवे मार्ग पूरी तरह से बंद हो गया। पुराने भाप इंजन और नैरोगेज डिब्बे खस्ताहाल अवस्था में पड़े रहे, विशेषकर बिजलपुरा और जनकपुर में।

भारत-नेपाल मैत्री संघ के अंतर्गत पुनर्निर्माण:

रेलवे की ऐतिहासिक और सामाजिक महत्ता को देखते हुए, भारत और नेपाल सरकारों ने भारत-नेपाल मैत्री परियोजना के अंतर्गत इस रेलवे मार्ग के पुनर्निर्माण का निर्णय लिया। इस बार इसे नैरोगेज की जगह ब्रॉड गेज (5 फीट 6 इंच) में बदला गया और डीजल इंजन चालित ट्रेनें चलाई गईं। भारत सरकार के IRCON (Indian Railway Construction Company) ने इसका निर्माण कार्य संभाला।

वर्तमान स्थिति:

डीजल इंजन और ब्रॉड गेज:

आज जयनगर से कुर्था (नेपाल) तक डीजल इंजन वाली ब्रॉड गेज ट्रेनों का संचालन हो रहा है। ट्रेन आधुनिक सुविधाओं से लैस है और नियमित सेवा प्रदान करती है। आगे इसे भंगहा से बर्दीबास तक विस्तारित किया जा रहा है। इस परियोजना के तहत रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण, ट्रैक का सुधार, और सुरक्षा मानकों का सख्ती से पालन किया गया है।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव:

इस रेलवे सेवा ने नेपाल के मधेश क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास में अहम योगदान दिया है। व्यापारियों, किसानों, मजदूरों और तीर्थयात्रियों को अब कम समय में सुरक्षित यात्रा का माध्यम उपलब्ध हुआ है। साथ ही भारत-नेपाल के रिश्तों को और मजबूती मिली है।

चुनौतियाँ और भविष्य:

चुनौतियाँ:

सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा को लेकर संवेदनशीलता बनी रहती है।

नेपाल के अंदर राजनीतिक अस्थिरता और भूमि अधिग्रहण की समस्याएँ निर्माण में रुकावट डालती हैं।

जनकपुर के आगे रेलवे विस्तार कार्य अभी अधूरा है।

भविष्य की योजनाएँ:

इस रूट को आगे बर्दीबास और अन्य नेपाली शहरों से जोड़ने की योजना है।

भविष्य में इस रेलवे को इलेक्ट्रिक लाइन से जोड़ने की भी संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं, जिससे यह अधिक पर्यावरण अनुकूल और किफायती हो सकेगा।

 

निष्कर्ष:

जयनगर-जनकपुर नैरोगेज भाप इंजन रेलवे केवल एक परिवहन प्रणाली नहीं थी, बल्कि भारत और नेपाल की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक थी। आज जब यह रेलवे डीजल इंजन और ब्रॉड गेज में परिवर्तित हो चुकी है, तब भी पुराने भाप इंजनों की स्मृतियाँ, रेल की सीटी, और कोयले की गंध उन लाखों यात्रियों की यादों में बसी हुई है जिन्होंने इस पर यात्रा की थी।

भारत-नेपाल मैत्री रेलवे आज भी उस साझा इतिहास की एक जीवित मिसाल है, जहाँ सीमाएँ नहीं, बल्कि संबंध यात्रा करते हैं।

Related Articles

Back to top button