पुरातात्विक स्थल पांडवस्थान,एक परिचय

जेटी न्यूज़
*समस्तीपुर* :

समस्तीपुर जिले के दलसिंहसराय रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर की दूरी पर पंर या पांडवस्थान स्थित है। दलसिंहसराय स्थित पांडवस्थान लगभग 38 एकड़ में फैला हुआ है। यहां खुदाई के दौरान नगर के अवशेष मिले हैं। यहां के मिले अवशेष बेगूसराय, हसनपुर, कुमार एवं पटना संग्रहालय में संरक्षित है। यहां सबसे अधिक कुषाण कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह स्थल तीन तरफ से एक विशाल जल स्रोत से घिरा है।इस स्थल के नजदीक ही वलान नदी बहती है।


इतिहास एवं धरोहर
वर्ष 2002 में हुए पुरातात्विक उत्खनन में कुषाण कालीन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। यह उत्खनन 750×400 मीटर में हुआ है। यहां दीवारें मिली जो 45 सेंटीमीटर से लेकर 1 मीटर चौड़ी थी।एक मृदभांड के टुकड़े पर ब्राह्मी लिपि का अभिलेख मिला था । यहां 15 स्तंभों का भी पता चला था । यहां की ईट (2’x1’x3′) की दीवारें है। इसे 3000 से 4000 वर्ष पुरानी ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता के रूप में चिन्हित किया गया है । खुदाई में मिले ब्राह्मी अभिलेख, राजाओं की तस्वीर युक्त तांबे के सिक्के, तांबे की कटोरियां, मिट्टी के बर्तन, हाथी दांत, मोती,औजार,मुहर, गोमेद पत्थर,काले रंग की चमकीला बर्तन, कुषाण कालीन सिक्के, कृष्ण लोहित मृदभांड, स्टैंड थाली, घड़ा इत्यादि का जांच कराई गई।

लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पूरावनस्पति विज्ञान संस्था में रेडियो कार्बन डेटिंग से जांच में 3600 वर्ष पुरानी बताई गई है ।ये पुरातत्त्व स्थल चारों तरफ से 2 मीटर की ऊंचाई वाली चैरों से घिरा हुआ है। यहां मिले कुछ अवशेषों का रेडियोकार्बन डेटिंग चिरांद के अवशेषों से मेल खाता है। यहां कुषाण, शुंग, गुप्त काल के अवशेष मिलें हैं । ये स्थल लगभग 5000 से 6000 साल पुराना इतिहास को छुपाया हुआ है। यहां पांच बार उत्खनन का कार्य किया गया। पहला उत्खनन डॉक्टर सीताराम राय की अगवानी में 1971 से में किया गया था। यहां से मिले मृणपूराअवशेषों में नाग सर्प जैसी आकृति भी मिली है ,इससे पता चलता है कि यह नाग पूजन करते थे।

यहां के उत्खनन से दो चरण में निर्माण की ईंट मिली है पहला 42x22x5 सेंटीमीटर और दूसरा 38 x 22 x 5 सेंटीमीटर का। यहां से कई अभिलेख प्राप्त हुए हैं जो कुषाण कालीन है। इन सभी अभिलेख पर नाम अंकित है जिसमें दो पर “पुलकस” अंकित है। कुषाण कालीन अनवेंशनो से पता चलता है कि यह शहर लगभग 200 एकड़ तक फैला था। किले बंदी नहीं होने के कारण यह संकेत मिलता है कि यह पुरास्थल कोई राजगढ़ ना होकर एक व्यापारिक नगर था। यहां की वर्तमान आबादी 18वीं शताब्दी में यहां बसी थी।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस स्थल को पर्यटन स्थल का दर्जा देने की बात कही थी।यहां करीब साढे चार बीघा खेती की नापी पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रशासन ने करवाई थी। जिन स्थानों पर खोदाई हुई थी वहां आसपास के किसान खेती कर रहे हैं।

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