ऑनलाइन शिक्षा परंपरागत कक्षा की पढ़ाई का विकल्प नहीं – राम नंदन कार्यालय, जेटी न्यूज बेगूसराय। माना कि आज डिजिटल युग है, परन्तु ऑनलाइन पढ़ाई परंपरागत शिक्षण का विकल्प नहीं हो सकती है। उक्त बातें दरभंगा स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्यासी शिक्षाविद ई राम नंदन सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि, वर्ग में छात्र एवं शिक्षक आमने-सामने संवाद स्थापित करते हैं जिससे छात्रों और शिक्षकों का मानसिक जुड़ाव होता है साथ ही शिक्षक और छात्रों के बीच तारतम्यता बनी रहती है। वर्ग शिक्षण में छात्रों को सामूहिकता का बोध भी होता है। ई सिंह ने कहा कि कोरोनावायरस के कारण देश भर के स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में विकल्प के तौर पर ऑनलाइन कक्षाएं चल रही है। वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को एक अहम कड़ी बना दिया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश में एक बड़े तबके के पास ना तो स्मार्टफोन है, ना ही कंप्यूटर और ना ही इंटरनेट की सुविधा। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस” (NSSO) के आंकड़े के अनुसार केवल 23.8 प्रतिशत भारतीय घरों में ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। इनमें ग्रामीण इलाकों के लोग सबसे पीछे हैं। शहरी घरों में इंटरनेट की उपलब्धता 42 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण घरों में मात्र 14.2 प्रतिशत ही। केवल 8 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहां कंप्यूटर एवं इंटरनेट दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं। पूरे देश में मोबाइल फोन की उपलब्धता 78 प्रतिशत आंकी गई है और इसमें शहर और गांव में भारी अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में 57 प्रतिशत लोगों के पास ही मोबाइल है। कुछ समय पहले शिक्षा को लेकर सर्वे करने वाली संस्था “प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन” की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 59 प्रतिशत युवाओं को कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है। इंटरनेट के इस्तेमाल की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है, लगभग 64 प्रतिशत युवाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि देश के प्राइवेट और सरकारी स्कूलों की सुविधाओं में काफी अंतर है। सरकारी संस्था “ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड” (BIS) के आंकड़ों के अनुसार सरकारी स्कूलों में गरीब अभिभावक ही अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। 2011 से 2018 तक 2.4 करोड़ स्कूली बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में दाखिला लिया है। ऐसी स्थिति में लगभग 12 करोड़ यानी लगभग 57.5 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसकी वजह यह है कि सरकारी स्कूलों में अभी तक बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। ऐसी सूरत में सरकारी स्कूल कैसे ऑनलाइन क्लास की सुविधा जुटा पाएंगे? हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि शिक्षा पर हर बच्चों का समान अधिकार है और शिक्षा सबको मिलनी ही चाहिए।

ऑनलाइन शिक्षा परंपरागत कक्षा की पढ़ाई का विकल्प नहीं – राम नंदन

बेगूसराय से रामाधार की रिपोर्ट
बेगूसराय। माना कि आज डिजिटल युग है, परन्तु ऑनलाइन पढ़ाई परंपरागत शिक्षण का विकल्प नहीं हो सकती है। उक्त बातें दरभंगा स्नातक निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्यासी शिक्षाविद ई राम नंदन सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि, वर्ग में छात्र एवं शिक्षक आमने-सामने संवाद स्थापित करते हैं जिससे छात्रों और शिक्षकों का मानसिक जुड़ाव होता है साथ ही शिक्षक और छात्रों के बीच तारतम्यता बनी रहती है। वर्ग शिक्षण में छात्रों को सामूहिकता का बोध भी होता है। ई सिंह ने कहा कि
कोरोनावायरस के कारण देश भर के स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में विकल्प के तौर पर ऑनलाइन कक्षाएं चल रही है। वर्चुअल कक्षाओं ने इंटरनेट को एक अहम कड़ी बना दिया है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश में एक बड़े तबके के पास ना तो स्मार्टफोन है, ना ही कंप्यूटर और ना ही इंटरनेट की सुविधा। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस” (NSSO) के आंकड़े के अनुसार केवल 23.8 प्रतिशत भारतीय घरों में ही इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है। इनमें ग्रामीण इलाकों के लोग सबसे पीछे हैं। शहरी घरों में इंटरनेट की उपलब्धता 42 प्रतिशत है, जबकि ग्रामीण घरों में मात्र 14.2 प्रतिशत ही। केवल 8 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहां कंप्यूटर एवं इंटरनेट दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं। पूरे देश में मोबाइल फोन की उपलब्धता 78 प्रतिशत आंकी गई है और इसमें शहर और गांव में भारी अंतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में 57 प्रतिशत लोगों के पास ही मोबाइल है। कुछ समय पहले शिक्षा को लेकर सर्वे करने वाली संस्था “प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन” की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 59 प्रतिशत युवाओं को कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है।

इंटरनेट के इस्तेमाल की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है, लगभग 64 प्रतिशत युवाओं ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं किया है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि देश के प्राइवेट और सरकारी स्कूलों की सुविधाओं में काफी अंतर है।
सरकारी संस्था “ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड” (BIS) के आंकड़ों के अनुसार सरकारी स्कूलों में गरीब अभिभावक ही अपने बच्चों को पढ़ाते हैं।
2011 से 2018 तक 2.4 करोड़ स्कूली बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़कर निजी स्कूलों में दाखिला लिया है।
ऐसी स्थिति में लगभग 12 करोड़ यानी लगभग 57.5 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। इसकी वजह यह है कि सरकारी स्कूलों में अभी तक बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है।
ऐसी सूरत में सरकारी स्कूल कैसे ऑनलाइन क्लास की सुविधा जुटा पाएंगे? हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि शिक्षा पर हर बच्चों का समान अधिकार है और शिक्षा सबको मिलनी ही चाहिए।

 

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