जीतन राम’ को देना पड़ा था इस्तीफा ‘मेवालाल’ पर मेहरबानी क्यों…?

 

*नीतीश के फैसले पर हतप्रभ हैं लोग*

*किस मजबूरी के तहत नियुक्ति और निर्माण घोटाला के आरोपी को बनाया गया मंत्री*

जेटीन्यूज़
भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर स्थित सबौर के पूर्व कुलपति और तारापुर के विधायक मेवालाल चौधरी को नीतीश सरकार में जदयू के कोटे से कैबिनेट मिनिस्टर बनाए जाने पर लोगों को बड़ी हैरानी महज इसलिए हो रही है कि बिहार के लोग अब तक उस बातों को नहीं भूला पाए हैं कि इसी नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल के दौरान 2005 में जीतनराम मांझी को अनुसूचित जाति जनजाति विभाग के मंत्री पद का शपथ लेने के 7 दिनों के बाद ही तब इस्तीफा देना पड़ा था, जब यह बात प्रकाश में आया कि उनपर पूर्व का भ्रष्टाचार के संबंध में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो में कोई मुकदमा लंबित है। उस समय सुशासन सरकार की नई धार थी। बाद में केस से आरोप मुक्त होने पर पुनः मांझी को 2008 में मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। मेवालाल बिहार कृषि विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति और भवन निर्माण में घोटाला करने का केस पुलिस और निगरानी में आज भी लंबित है। वे हाईकोर्ट से जमानत पर हैं लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी उदारता दिखाते हुए उन्हें मंत्री कैसे बना दिया…?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस फैसले पर लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह मुख्यमंत्री के स्वभाव और कार्यशैली के विरुद्ध है। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री श्री कुमार के पास आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई,जिसके चलते घोटाले,जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोपी रहे मेवालाल चौधरीं को मंत्री बनाने के लिए वे मजबूर हो गए। क्या ये कुशवाहा वोटरों को साधने की कोशिश है या कुछ और…? लोगों का मानना है कि भ्रष्टाचार से समझौता नीतीश कुमार के स्वभाव का कभी हिस्सा नहीं रहा। जैसा कि वे अक्सर बोलते भी हैं कि करप्शन से वे कभी कम्प्रमाइज नहीं कर सकते!

घोटाला उजागर होने पर लालू से अलग हुए

इससे पूर्व रेलवे घोटाले में लालूप्रसाद और उनके परिवार विशेषकर उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव का नाम आने के बाद महागठबंधन सरकार से नीतीश कुमार अलग हो गए थे। उसी नीतीश कुमार ने मेवालाल को अपने कैबिनेट में जगह कैसे दे दी…लोगों के मन में यह सवाल एक चर्चा का विषय‌ बना हुआ है।

मेवालाल चौधरी से क्या हैं संबंध

जानकार बताते है कि मेवालाल चौधरी से नीतीश कुमार का परिचय उस समय से है, जब वे केंद्र में कृषि मंत्री हुआ करते थे और केंद्र में मेवालाल हॉर्टिकल्चर कमिश्नर हुआ करते थे। जब नीतीश बिहार में मुख्यमंत्री बने, तो मेवालाल राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कुलपति बने। फिर 2010 में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति बने।

171 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति में घोटाला

बिहार कृषि विश्वविद्यालय,भागलपुर- सबौर में कुलपति रहते हुए मेवालाल चौधरी 171 सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के घोटाले में फंसे। वे,और उनके सहयोगी नियमों को ताक पर रख नियुक्ति करने के आरोपित हैं । इसके अलावा उन पर भवन निर्माण में घोटाला करने का का केस निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने दर्ज किया था।

जदयू एमएलसी ने उजागर किया था घोटाला

गौरतलब हो कि जदयू के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र के एमएलसी डॉ. संजीव प्रसाद सिंह ने ही मेवालाल चौधरी का घोटाला उजागर किया था। उन्होंने पूरी नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ बिहार सरकार और राज्यपाल को तथ्यों के साथ लिखित शिकायत दी थी। उनके अलावे दर्जनों उम्मीदवारों ने भी राजभवन को इनकी शिकायत भेजी थी।

हाईकोर्ट के जज की रिपोर्ट पर दर्ज हुआ था केस

तत्कालीन राज्यपाल ने घोटाला की जांच के लिए पटना हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज को जांच का जिम्मा दिया था। जज ने महीनों जांच के उपरांत राज्यपाल को जो रिपोर्ट दिया, उसमें घोटाले की बात साबित हुई थी। इसके बाद भागलपुर के सबौर थाना में मेवालाल समेत अन्य कई लोगों के खिलाफ कृषि विश्वविद्यालय की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई थी। मामले की जांच के लिए उस समय के आला पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर एसआईटी का गठन किया गया था। इस केस में नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े बिहार कृषि विश्वविद्यालय के दो सीनियर अधिकारी जेल जा चुके हैं। इस दौरान मेवालाल चौधरी तारापुर से जदयू के टिकट पर विधायक बन गए। उसके बाद राजनीतिक प्रभाव से जांच की प्रक्रिया को बंद करा दिया गया। बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कई पदाधिकारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय में हुए दोनों घोटाले बड़े संगीन है,जिनमें 25 से अधिक लोगों की गर्दन फंसी हुई है।

Website editor:- NEHA KUMARI

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