ममता दीदी आप जरा सम्भल -सम्भल के फैसले ले – खबरी लाल
नई दिल्ली – आजकल भारतीय राजनीति के पंडितओ ‘ राजनीतिक विशलेषगो व जानकारो मे पश्चिमी बंगाल की राजनीति गतिविधियो पर ध्यान का केद्र बना हुआ है। कई राज्य मे होने वाले विधान सभा के चुनावो मे पश्चिम बंगाल सम्भवत कुछ महीने के होने चुनाव के मद्दे नजर राज्य की वर्तमान की गतिविधि चर्चा मे बनी है ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से ही बंग भुमि स्वतंत्रतासेनानी,क्रान्तिकारी,कर्मवीरो की कर्म भुमि के लिए जाने जाता है। रविन्द्र नाथ टगौर ” नेता जी सुभाष चंद्रबोस इसका प्रत्यक्ष उद्धाहरण है। देश मे राजनीति मे बंगाल की राजनीति भारतीय राजनीति व केद्र की सरकार मे हमेशा ही अंहम भुमिका रही है।
बंगाल की राजनीति मे इन दिनो मे बदलाव की विगुल केद्र सरकार की केन्द्रीय मंत्री के लगातार तुफानी दौरा / तीखी प्रहार से ऐसा प्रतीत होता है कि बर्तमान मे सतारूढ भाजापा की केन्द्र सरकार किसी भी हालत मे बंगाल मे होने वाली अगामी विधान सभा मे की सत्ता पर अपना विजय पताका फहराने का दढ़ से संकल्प ले चुका है।
इसका जीता जागता उदाहरण विगत दिनो संसद मे पेस किये 2021-2022 के बजट मे राज्य के हिस्से मे आई राशि ‘ कई लोक लुभावने नई परियोजना की घोषणा ‘ पार्टी के शीर्षक नेतत्व का बंगाल की रणनीति को असली जामा पहनाना है।
वही राज्य मे टी एम सी सतारूढ ममता बनर्जी की सरकार व पार्टी पर पकड़ ढीली नजर आ रही है।
इन दिनो पश्चिम बंगाल में बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति, हत्या लूटपाट का माहौल बढ़ते जाना और एक के बाद एक नेता का टीएमसी छोड़ कर जाना आगामी विधान सभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बन गई है।
ऐसे विषम परिस्थित मे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को शासन के हालात को काबू में करना चाहिए नहीं तो उनके अन्य नेता भी उन्हें अकेला छोड़ दूसरे दलों में चले जाएंगे। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को एक और झटका लगा है. टीएमसी के राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने इस्तीफा दिया है। दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि राज्य मेजिस प्रकार से हिंसा हो रही है, मुझे यहाँ बैठे-बैठे बहुत अजीब लग रहा है ।मुझसे ये देखा नहीं जा रहा है । ऐसे मेहम करें तो क्या करें । प्रत्येक पार्टी के भी कुछ नियम होते हैं ।
आज पार्टी के आला कमान को
सोचना चाहिए कि उनकी पार्टी से लगातार लोग बाहर क्यों चले जा रहे हैं। ममता दीदी को अपनी अडियल सैवये को छोड कर पार्टी व बंगाल की जनता के हितो के बारे सोचना चाहिए ।
भाजपा के वोट बैंक में कोई दल सेंध लगाने की स्थिति में नहीं है। फिर भी उसके खिलाफ साझा लड़ाई को ममता दीदी तैयार नहीं है। उनकी हठधर्मिता की वजह से कांग्रेस और वाम पंथी दल एक गठबंधन से चुनाव लड़ेगे। इससे राज्य में सेकुलर वोटों का बंटवारा होना निश्चित है। तृणमूल कांग्रेस अपनी छोटी सोच की वहज से सबको साथ लेकर चलने में नाकाम हो गई है।
पार्टी में ही नहीं प्रशासन में असंतोष की स्थिति बन गई है। जिस पर वक्त रहते उन्हें गंभीरता से विचार करना चाहिए। क्या टीएमसी अपने लक्ष्य से कहीं भटकी तो नहीं? त्रिवेदी ने कहा कि सब राजनीति में आते हैं क्योंकि हमारे लिए देश पहले होता है, हम रविंद्रनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस और खुदीराम बोस के देश से आते हैं. स्वामी विवेकानंद कहा करते थे ‘.’ हम पार्टी में हैं तो सीमित हैं. घुटन महसूस हो रही है कि कुछ कर नहीं पा रहे. मुझसे बंगाल की हिंसा देखी नहीं जा रही।
अब पं बंगाल की राजनीति पर गहरी नजर व पैनी पकड रहने का राजनीतिक पण्डितओ को चिन्ता सताने लगी है कि क्या पं० बंगाल की राजनीति की बागडोर इस बार बहाँ की मतदाता किसे सोपेगी
क्या ममता दीदी बंगाल की जनता को समझा बुझा कर पुनः सिंहासन पर कब्जा कर लेगी ।
या धार्मिक भावनाओ व के टम्प कार्ड डाल कर कमल खिलेगा
ऐसे विषम परिस्थित में ममता को सम्भल – सम्भल कर कदम उठाने चाहिए। उनकी एक छोटी सी भुल ममता व बंगाल की राजनीति के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।यह तो अभी भविष्य के अधर मे अटका है, लेकिन जिस तरह आये दिनो बंगाल को लेकर राज्य मे सता रूढ ममता की सरकार व केद्र सरकार के मध्य व्यानवाजी /राजनीतिक उथल पुथल बंगाल की जनता व भारतीय राजनीति के लिए शुभ संकेत नही है।