गुनाहों की माफी मांग पुरखों की कब्रों पर फातेहा पढ़ें लोग

जेटी न्यूज
मोतिहारी।पु0च0
पूर्वी चंपारण मोतिहारी शहर में शब-ए-बारात काफी अच्छे से पूरी रात इबादत करके मनाया गया।मुस्लिम शब-ए-बारात को रात भर तिलावत, ज़ियारत करते हैं. शब-ए-बारात सिर्फ गुनाहों की माफ़ी और मरहूमों के लिए दुआओं की रात नहीं है, बल्कि कौन पैदा होगा, किसकी इस दुनिया से रुखसती होगी. किसे दुनिया में क्या हासिल होगा. कितनी रोजी मिलेगी. किसके गुनाह बख्श दिए जाएंगे. यानी हर मुसलमान की तकदीर इस रात तय हो जाएगी, ऐसा माना जाता है कि सिर्फ गुनाह ही माफ़ नहीं होंगे, बल्कि अल्लाह द्वारा अपने हर बंदे के लिए साल भर में होने वाले काम बांट दिए जाएंगे. पूरे साल का हिसाब-किताब भी अल्लाह द्वारा इस रात को किया जाएगा.
शब-ए-बारात की रात को किया होता है।

शब-ए-बारात की रात अपने लिए नहीं बल्कि जो दुनिया से जा चुके हैं. उनके लिए भी दुआएं मांगी जाती हैं. खुद के लिए उनसे माफ़ी मांगते हैं और उन्हें जन्नत नसीब हो, उनकी रूह को सुकून मिले, इसके लिए अल्लाह से दरख्वास्त करते हैं. इसीलिए कब्रिस्तान जाकर अपने पूर्वजों की कब्र पे दुआ करते हैं।
शब-ए-बारात कब मनाया जाता है
मुस्लिम कैलेंडर के मुताबिक शाबान माह की 14 तारीख को शब-ए-बरात मनाई जाती है। शब-ए-बारात दो शब्दों, शब और बारात से मिलकर बना है, जहां शब का अर्थ रात से है वहीं बारात का मतलब बरी होना है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है।ऐसे मनाया जाता है शब-ए-बारात

शब-ए-बारात पर मुस्लिम समाज के लोग मस्जिदों और कब्रिस्तानों में जाकर अपने और पूर्वजों के लिए खुदा से इबादत करते हैं। घरों को विशेषरूप से सजाया और संवारा जाता है। मस्जिद में नमाज पढ़कर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगी जाती है। घरों में पकवान जैसे हलवा, बिरयानी, आदि बनाया जाता है। इबादत के बाद इसे गरीबों में बांटा जाता है। शब-ए-बारात में मस्जिदों और कब्रिस्तानों में खास तरह की सजावट की जाती है। कब्रों पर चिराग जलाकर उनके लिए मगफिरत की दुआंए मांगी जाती हैं। इस्लाम में इसे चार मुकद्दस रातों में से एक माना जाता है, जिसमें पहली आशूरा की रात, दूसरी शब-ए-मेराज, तीसरी शब-ए-बारात और चौथी शब-ए-कद्र होती है।

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