“सर्वौषधीनां अमृतं प्रधानम् ʼʼ सभी औषधियों में अमृता (गिलोय) प्रधान है

जेटी न्युज
मोतिहारी।पु0च0
प्राचीन काल से ही अमृता (गिलोय) का उपयोग आध्यात्मिक क्रिया-कलापों तथा प्राकृतिक आयुर्वेदिक औषधि के रूप में किया जाता है। संस्कृत में इसे अमृता,गुडुची,मधुपर्णी,अमृत वल्लरी आदि अनेक नामों से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और इस अमृत की बूँदे जहाँ जहाँ छलकीं वहाँ वहाँ अमृता (गिलोय) की उत्पत्ति हुई। अमृत से पैदा होने के कारण इसका नाम अमृता पड़ा। उक्त जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।उन्होंने दूसरे आख्यान पर चर्चा करते हुए कहा कि भगवान श्रीरामचन्द्र जी की पत्नी माता सीता का रावण के द्वारा हरण कर लेने के बाद श्रीराम ने बानरी सेनाओं से युक्त होकर रावण को युद्ध में मारा।

रावण के मारे जाने पर देवराज इन्द्र श्रीराम जी पर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस युद्ध में जो कोई बन्दर रावण की सेना द्वारा मारे गए थे,उन्हें अमृत की वर्षा करके जिन्दा कर दिया। उसके बाद जिन स्थानों पर बानरों के शरीर से अमृत की बूँदे गिरी वहाँ वहाँ पर अमृता (गिलोय) औषध पैदा हुयी। यह इसकी अमरत्व ग्राह्य विशेषता को बताता है। आयुर्वेद में इसलिए इसे अमृता कहा गया है।आयुर्वेद के विशेषज्ञों के अनुसार गिलोय एक ऐसी लता है जिसे आप सौ बीमारियों की एक दवा कह सकते हैं।सर्वौषधीनाममृतं प्रधानम् ʼʼ अर्थात् सभी औषधियों में अमृता (गिलोय) को प्रधान माना गया है।

यह एक ऐसी औषधि है जो व्यक्ति को अनेकों बीमारियों से रक्षा करती है।आधुनिक शोध और अध्ययन के अनुसार गिलोय सबसे अधिक लाभदायक एंटीबायोटिक भी मानी जाती है,क्योंकि वायरस के संक्रमण को भी मिटा देती है। इसकी एक विशेषता है कि यह जिस पेड़ पर चढती है,उस वृक्ष के गुण भी इसके अन्दर आ जाते हैं। इसलिए नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय सबसे अच्छी मानी जाती है।गिलोय रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रसिद्ध है। इसका सेवन कोरोना वायरस को काफी हद तक कम कर सकता है।

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