सामाजिक परिवर्तन के पुरोधा लालू प्रसाद यादव : नाम ही काफी है

सत्येंद्र प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार
लालू प्रसाद यादव। देश- दुनिया में नाम ही काफी है… यह केवल नाम नहीं बल्कि सोशल इंजीनियरिंग व जस्टिस का वह ब्रांड है; जो सदी के किसी खास महानायक को दी जाती है। इस नाम का जप से राजनेताओं की पॉलिटिक्स की रफ्तार बढ़ जाती है। सन् 74 के आंदोलन से उभरे गरीबों व शोषित समाज के मसीहा के रूप में प्रचलित राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की आज 74 वें जन्मदिन है। 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज जिले के फुलवरिया में जन्मे इस शख्स ने न केवल बिहार बल्कि देश व दुनिया में सामाजिक, राजनीतिक व मैनेजमेंट के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया। हावर्ड यूनिवर्सिटी इनके मैनेजमेंट स्किल से इतने ज्‍यादा प्रभावी हुए कि यूनिवर्सिटी की एक टीम भारत भेजकर इनके मैनेजमेंट स्किल्‍स का अध्‍ययन भी करवाया। फिर लालू प्रसाद यादव ने एक बार हावर्ड और वार्टन के छात्रों को संबोधित भी किया। यह संबोधन उन्होंने अंग्रेजी में नहीं बल्कि हिन्‍दी में किया, जो बिहार ही नहीं पूरे देश की जनता के लिए गर्व की बात थी।
हालांकि वे चारा घोटाले समेत कई मामलों में वे जेल कि सजा काट चुके हैं और कुछ में बेल पर हैं। इसके बावजूद गरीब व बहुसंख्यक शोषित समाज के लिए आज भी वे मसीहा ही हैं। यह अलग बात है कि कई अन्य राजनेता भी चारा घोटाले में शामिल थे, लेकिन वे येन केन प्रकेन बचे रहे। दबंगों के वर्चस्व का परिणाम और जो पकड़ा जाता है वही चोर… वाली कहावत यहां चरितार्थ होने की बात कही जाती है।

बता दें कि लालू प्रसाद यादव का प्रारंभिक जीवन अभावों और गरीबी के बीच गुजरा था; इसलिए वे गरीबों व शोषित समाज के हर दुख दर्द को वे महसूस करते हैं। वे पढ़ लिखकर डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें मेढ़क की चीर फाड़ करना पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से एल.एल.बी की डिग्री ली। इसके बाद पटना यूनिवर्सिटी के बीएन कॉलेज से राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की।

जेपी आंदोलन ने दी नई पहचान
सन 1970 में लालू प्रसाद यादव ने पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (PUSU) के महासचिव के रूप में छात्र राजनीति की शुरुआत की। 1973 में इसके अध्यक्ष बने और 1974 में जय प्रकाश नारायण के ‘बिहार आंदोलन’ में शामिल हो गए। यही से उनकी राजनीतिक उत्थान का सफर शुरू हुआ। जेपी आंदोलन के बाद 1977 के आम चुनाव में वह पहली बार सांसद बने। बाद में 1980-85 में वह विधायक बने। बाद में 1990 में वह मुख्यमंत्री बने। 1996 में वे चारा घोटाले में फंसे।
लालू प्रसाद की अहमियत क्यों:

वर्तमान समय में लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर हैं। देश व राज्य में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर एक बार फिर माहौल गरम है। लालू प्रसाद यादव का जेल से बाहर होने से सत्ता की गलियारों में हड़कंप मचा है। लोगों ने लालू प्रसाद यादव को जिस मुद्दे पर बिहार में 15 साल की सत्ता से बेदखल किया था, आज फिर जेडीयू- भाजपा की लगातार 16 साल की सरकार में वर्चस्व पर है। इससे इतिहास की पुनरावृत्ति की प्रबल संभावना देखी जा रही है। महंगाई, अफसरशाही, भ्रष्टाचार, तानाशाही आदि मुद्दों पर एनडीए गठबंधन के कई दल नाराज़ चल रहे हैं। समय समय पर बिहार व केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर तेज करते रहते हैं। इनमें हम के सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, वीआईपी के सुप्रीमो मुकेश सहनी का नाम प्रमुख है। अगर ये दोनों अपने 4-4 विधायकों के साथ अलग हो जाय तो सत्तासीन जेडीयू -बीजेपी की नईया डूब सकती है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जोड़ तोड की राजनीति में माहिर हैं, लेकिन लालू प्रसाद यादव भी मैनेजमेंट गुरु के रूप में जाने जाते हैं। बिहार में राजद गठबंधन के पास अभी 110 सीट हैं। ऐसे में सत्ता में आने के लिए कम से कम 13 विधायकों की जरूरत है। वहीं ओवैसी की पार्टी AIMIM की पांच सीटों जोड़ दिया जाय तो 14 सीट बढ़ जाएगी। यह बढ़त राजद गठबंधन को सत्ता वापसी के लिए पर्याप्त है।

Edited By :- savita maurya

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