*गांधी और सावरकर*  

*गांधी और सावरकर*  

प्रभुराज नारायण राव 

भाजपा पोषित तथाकथित इतिहासकार विक्रम संपत के हवाले से सावरकर के जन्मदिन पर एक समारोह में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी ने सावरकर को बड़ा भाई कहा और उनके कहने पर सावरकर ने माफीनामा दिया । इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी थे । ये तो हिटलर का प्रचार मंत्री गोयबल्स के उस विचार को चरितार्थ कर दिया कि एक झूठ को सौ बार बोलने से सच हो जाता है ।

जबकि जुलाई 1911 में सावरकर की प्रथम गिरफ्तारी के मात्र एक महीने बाद अगस्त में सावरकर ने वायसराय को पहला माफीनामा पत्र दिया । 1913 में दूसरा माफीनामा पत्र दिया और इस तरह 6 बार ब्रिटिश हुकूमत को सावरकर ने माफीनामा लिखा । अंतिम माफीनामा में छोटे भाई को भी अंग्रेजों का सहयोग करने के शर्त पर आखिर उन्हें कालापानी से रिहाई मिल ही गई और अपना नाम सावरकर ने अंग्रेजों की चाटुकारी करने तथा देश की आजादी की लड़ाई से अलग होकर अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के तहत हिंदू राष्ट्रवाद की मांग करके आजादी की लड़ाई को कमजोर करने की अंग्रेजपरस्ती में लग गए। जब आप हिंदु राष्ट्रवाद की बात करते हैं , तो यहां पैदा लिए मुस्लिम और ईसाई का राष्ट्रवाद क्यों नहीं होगा । इससे फायदा किसी को हो । मगर नुकसान हमारे देश का होगा ।

मोहन दास करमचंद गांधी लंदन से बैरिस्टरी पास करने के बाद 1909 से 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे । तो 1911 में गांधी से सावरकर कैसे मिले ?

यह झूठ मात्र के सिवाय कुछ भी नहीं है ।

1915 में अफ्रीका से भारत आने के बाद गांधी जी को कांग्रेस ने भारत में रहकर आजादी की लड़ाई को बढ़ाने का सुझाव दिया । इस बीच बिहार के चम्पारण जिला के किसान राजकुमार शुक्ला के प्रयास से अप्रैल 1917 में गांधी चम्पारण आए । यहां के किसान नील की खेती और तीन कठिया प्रणाली यानी एक बिगहा में तीन कट्ठा में नील की खेती करना अनिवार्य था । फिर नील बेचने के लिए कोई बाजार भी नहीं था । इसलिए चम्पारण में नील की खेती के विरुद्ध आन्दोलन चरम पर था । उस घड़ी में 14 अप्रैल 1917 को गांधी चम्पारण आए । किसानों की भारी गोलबंदी को देख मोतिहारी कलक्टर ने बिहार गवर्नर के निर्देश पर 11 सदस्यीय एग्रेरियन कमिटी का गठन किया । जिसका सदस्य गांधी जी भी बनाए गए । तीन कठिया की खेती पर रोक लग गई । चम्पारण के किसानों ने गांधी को महात्मा के नाम से संबोधित किया । अब गांधी पूरे देश में महात्मा के नाम से पुकारे जाने लगे । सच यह की सर्वमान्य नेता के रुप में उनकी पहचान बन गई ।

तो प्रश्न यह है कि 1909 से 1915 तक जब गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे और उनकी कोई इस देश में पहचान भी नहीं थी । तो गांधी ने कैसे और कब सावरकर को माफीनामा देने को कहा ?

एक बार चन्द्रशेखर आजाद ने सावरकर से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई के लिए हथियार की मांग की तो सावरकर ने अंग्रेजों के फूट डालने वाली नीतियों के आधार पर हिंदुराष्ट्र के लिए काम करने के शर्त पर हथियार देने को कहा । इस पर चंद्रशेखर आजाद ने सावरकर को गद्दार कहा था ।(यशपाल के सिंहावलोकन से)

जब कमिश्नर को बांबे में गोली मारना था । कमिश्नर का ट्रांसफर बांबे हो गया था । दुर्गा भाभी उसे मारने के लिए बांबे गई । चंद्रशेखर आजाद के खत के सहारे दुर्गा भाभी अपने मासूम बच्चे को सावरकर के पास रखकर , कमिश्नर को मारने के लिए चल पड़ी । गोली चली लेकिन कमिश्नर को नहीं लगी । वहां से भागने के क्रम में ट्रेन पकड़कर वह इलाहाबाद आ गई ।

दुर्गा भाभी महान क्रान्तिकारी भगवती चंद्र बोहरा की पत्नी थी । उनके बेटे को लाने के लिए चंद्रशेखर आजाद के खत को लेकर एक साथी गया और सावरकर को चिट्ठी देकर बच्चे की मांग की , तो सावरकर के संडास वाली पाखाना को साफ करने वाली मेस्टरिन अपने घर से उस बच्चे को लेकर आई । यह सुन चंद्रशेखर आजाद गुस्से में बौखलाकर सावरकर को गोली मारने के लिए चल पड़े । काफी मशक्कत के बाद शान्त हुए ।(यशपाल के सिंहावलोकन से)

वैसे देशद्रोही की जन्म दिन आर एस एस , भाजपा और मोदी सरकार द्वारा मना कर जनता के सामने क्या परोसना चाहते हैं । यह सर्वविदित है कि राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में आर एस एस और सावरकर कि हिंदू महासभा की भूमिका अंग्रेज पक्षीय रहा है। उनका एक भी कोई कार्यकर्ता देश के लिए शहादत नहीं दिया और खुद हिंदू महासभा के अलमदार सावरकर की गिरफ्तारी के बाद 6 बार माफीनामा का खत लिखकर वायसराय को भेजा गया और तब अंडमान निकोबार की काला पानी से उनकी रिहाई हुई ।

दूसरी तरफ देश की आजादी के लिए भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद , राजगुरु सुखदेव , आशफाकउल्ला खां , बिस्मिल जैसे लाखों लोगों ने कुर्बानियां दी। लाखों लोग जेल के सलाखों के अंदर पूरी जवानी बिता दी । कामरेड शिव वर्मा जिन्हें अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी । वे देश को आजादी मिलने के बाद 1953 में रिहा हुए । मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रथम पोलितब्यूरो के सभी 9 सदस्य कम से कम 6 साल का जीवन जेलों की चहारदीवारी में गुजारे । लंदनतोड सिंह यानी हरकिशन सिंह सुरजीत जिन्होंने लंदन के अंग्रेज कार्यालय पर झंडा फहरा दिया । नाम पूछने पर बताया लंदन तोड़ सिंह ।

फिर संघिओं को जेल जाने और आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने से कौन रोक रहा था । आखिर किस सोच के तहत मुक्ति आन्दोलन में संघियों ने भाग नहीं लिया और आदर्श के रुप में कुछ बचा है , तो वह है अंग्रेज चाटुकार सावरकर ?

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