विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग में मनाया गया विद्यापति स्मृति पर्व

विश्वविद्यालय के मैथिली विभाग में मनाया गया विद्यापति स्मृति पर्व

जे टी न्यूज़, दरभंगा

जिस तरह संस्कृत साहित्य में महाकवि कालिदास हैं वैसे ही मैथिली साहित्य में कवि कोकिल विद्यापति। विद्यापति मैथिली के पर्याय बन चुके हैं। विद्यापति के गीत छौ शताब्दी तक लोगों के कंठ में सुरक्षित रहा जो उनके लोकप्रियता को दर्शाता है यह बातें विश्वविद्यालय मैथिली विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रमण झा ने विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश झा की अध्यक्षता में आयोजित विद्यापति स्मृति पर्व दिवस के अवसर पर कही। केन्द्रीय पुस्तकालय के अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय मैथिली विभाग के प्राचार्य प्रो. दमन कुमार झा ने कहा कि विद्यापति की गीत विद्वान से मूर्ख तक सब समझते थे। उन्होंने विशेष कर जन सामान्य की रुचि को देखते हुए देसिल बयना में रचना की। उन्होंंने कहा कि असम, बंगाल, उड़ीसा, नेपाल तथा बिहार आदि स्थानों पर इनके रचनाओं का प्रभाव पड़ा।

दूरस्थ शिक्षा के निदेशक , सिंडिकेट सदस्य तथा विभागीय प्रोफेसर डा. अशोक कुमार मेहता ने कहा कि विद्यापति की कालजयी रचना सर्वहारा वर्गों की प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने विद्यापति की लोकप्रियता पर प्रकाश देते हुए स्वरचित गीत “हम छी मैथिल मैथिली भाषी मिथिला केर संतान “को सस्वर गाते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित किया। गीतकार विद्यापति को गीत से श्रद्धांजलि देने के कारण श्रोता गण विमुग्ध हो उठे। मैथिली विभागाध्यक्ष ने अपनी अध्यक्षीय भाषण में विद्यापति की रचनाओं पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर विभागीय शोध छात्र-छात्राओं ने भी विद्यापति के संबंध में अपने-अपने विचार रखे जिनमे प्रमुख हैं- नीतू कुमारी, दीपक कुमार, दीपेश कुमार, राज्यश्री कुमारी आदि।
इस कार्यक्रम के अवसर पर उर्दू विभागाध्यक्ष के अतिरिक्त शालिनी कुमारी, डा. बिष्णु प्रसाद मंडल, हरेराम मंडल, अनिल कुमार, खगेन्द्र झा, लाल बाबू यादव आदि उपस्थित थे।

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