*बिक गई अनिल अंबानी की कर्ज में डूबी कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड*

*बिक गई अनिल अंबानी की कर्ज में डूबी कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड*

जेटी न्यूज।

नई दिल्ली::- अनिल अंबानी की कर्ज में डूबी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड कंपनी अब मुंबई के उद्योगपति निखिल वी. मर्चेंट के नाम हो जाएगी। उद्योगपति निखिल वी. मर्चेंट ने नीलामी प्रक्रिया में सबसे बड़ी बोली लगाकर ये बीड जीत ली है। रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड को पिपावाव शिपयार्ड के नाम से भी जाना जाता है।

सूत्रों के अनुसार निखिल मर्चेन्ट और उनके सहयोगी की तरफ से समर्थित कंसोर्टियम हजेल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड ने तीसरे दौर में सबसे बड़ी बोली लगाई और बिड जीत ली।

कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) ने पिछले महीने ही इस कंपनी की नीलामी की प्रक्रिया शुरू की थी। इस दौरान कमेटी ने इस प्रक्रिया में शामिल हो रही सभी कंपनियों से उच्च प्रस्तावों की मांग थी। अब इस बीड को हेजल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड ने रिलायंस नवेल के लिए अपनी बोली को 2400 से बढ़ाकर 2700 करोड़ रुपये कर दिया।

आईडीबीआई बैंक (IDBI) रिलायंस नेवल की लीड बैंक है जिसके नेतृत्व में बैंकों के एक समूह ने रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड को कर्ज दिया था। आईडीबीआई बैंक ने पिछले साल नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की अहमदाबाद शाखा में कंपनी से ऋण वसूली के लिए मामला दायर करवाया था। इस मामले के जरिए आईडीबीआई बैंक कंपनी से 12,429 करोड़ रुपये की वसूली करना चाहती थी।

जिन बैंकों से रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ने कर्ज लिया है उसमें SBI का 1,965 करोड़ रुपये, जबकि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का 1,555 करोड़ रुपये बकाया है।

अनिल अंबानी की रिलायंस नेवल कंपनी के लिए तीन बड़ी बीड लगाई गई थीं जिनमें दुबई की एक एनआरआई समर्थित कम्पनी भी शामिल थी। इस कंपनी ने 100 करोड़ की बोली लगाई थी। इसके बाद दूसरी बोली स्टील टाइकून नवीन जिंदल ने 400 करोड़ रुपये की लगाई थी। हालांकि, इन दोनों से अधिक बोली लगाकर निखिल वी. मर्चेंट ने बाजी जीत ली।

बता दें कि रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड का नाम पहले रिलायंस डिफेन्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड था। अनिल अंबानी के अधिग्रहण से पहले नौसेना ने वर्ष 2011 में पाँच युद्धपोतों के विनिर्माण के लिए इस कंपनी के साथ एक डील की थी। तब इस कंपनी के मालिक निखिल गांधी थे। इस कंपनी को वर्ष 2015 में अनिल अंबानी ने अधिग्रहित किया था और इसका नाम बदल दिया था।

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